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खिलजी के अधीन विस्तार : दक्कन और दक्षिण की ओर विस्तार Expansion Under The Khaljis : Deccan and Southward Expansion

दक्कन में देवगिरी को अलाउद्दीन ने 1296 ई. में कारा के गवर्नर के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान लूट का स्वाद चखा था। दक्कन में अगला सैन्य अभियान अलाउद्दीन ने 1306-7 में देवगिरी के राय राम चंद्र देव के खिलाफ फिर से योजना बनाई थी। इसका तात्कालिक कारण 1296 में दिल्ली को वार्षिक कर भेजने में अनावश्यक रूप से लंबा विलंब था। दक्कन अभियान की कमान मलिक काफ़ूर को दी गई और सहायता प्रदान करने के लिए ऐनुल मुल्क मुल्तानी और अलप खान को निर्देश भेजे गए। राम चंद्र देव ने केवल एक कमज़ोर प्रतिरोध किया क्योंकि उन्होंने व्यक्तिगत सुरक्षा के आश्वासन के तहत शाही सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। हालाँकि, उनका बेटा सेना के एक हिस्से के साथ भाग गया। राम चंद्र देव को सुल्तान ने बहुत सम्मान दिया और सुल्तान को नियमित और समय पर वार्षिक कर के भुगतान के आश्वासन के बदले में देवगिरी की गद्दी पर वापस बिठाया। राय ने अपनी बेटी की शादी भी सुल्तान से कर दी। ऐसा प्रतीत होता है कि अलाउद्दीन की नीति देवगिरी को अपने अधीन करने की नहीं थी, बल्कि इसे एक संरक्षित राज्य के रूप में बनाए रखने और राज्य से जितना संभव हो सके उतना धन इकट्...

What is Self Management in Emotional intelligence

Self-management in emotional intelligence refers to the ability to recognize, understand, and regulate one's own emotions effectively. It involves being aware of your emotional state, managing your impulses, and maintaining a balanced and composed demeanor even in challenging situations. Self-management is crucial for making sound decisions, handling stress, and maintaining positive relationships both personally and professionally. It includes skills such as emotional regulation, adaptability, resilience, and the ability to stay focused on long-term goals despite short-term challenges. Developing self-management skills is key to fostering emotional intelligence and achieving personal and professional success.

समकालीन हिंदी कविता की प्रवृत्तियाँ Samkalin yugeen hindi kavita ki pravrttiyaan

1. समकालीन कविता में विषय के स्तर पर पर्याप्त वैविध्य दिखाई पड़ता है गांव से लेकर शहर, महानगर, किसान-मजदूर से लेकर मध्यवर्गीय मूल्यों में दवा शहरी और हाशिये पर का समाज तथा इन सभी वर्गों की अनगिनत कहानियाँ, अनगिनत राग-द्वेष और समस्याएँ सब इस कविता में हैं। 2. विभिन्न विमशों- स्त्री विमर्श, दलित विमर्श, आदिवासी विमर्श, अल्पसंख्यक विमर्श इत्यादि तथा सांप्रदायिकता, नस्लवाद इत्यादि को लेकर महत्त्वपूर्ण वैचारिक कविताएँ लिखी जा रही हैं। 3. समकालीन कविता का कवि छोटी-छोटी बातों और विभिनन भावों को लेकर कविता लिखता है। 4. रूमानी इंद्रधनुष हो या नफरत और फरेब, अमीरी और विलासिता का चकाचौंध हो या गरीबी और फटेहाली का दर्द, एकता का आवाहन हो या नफरत और घृणा की खेती- यह सब समकालीन कविता में मौजूद हैं। 5. समकालीन कविता में व्यक्त यथार्थ प्रायः हमारे हमारे बीच का या हमारे आस-पास का होता है जिसे व्यक्त करने में भावों, अनुभूतियों और वैचारिक तत्परता का आवेग होता है। 6. विकास और सुविधाओं की अपाधापी में लगातार पीछे छूटते अतीत की सामूहिकता और अपनेपन के दर्द को अनेकशः देखा जा सकता है। सभ्य होते समाज की असभ्यता, ब...

नई कविता की प्रवृत्तियाँ Nai yugeen hindi kavita ki pravrttiyaan

 1. नयी कविता का कवि जड़ीभूत सौंदर्याभिरुचियों पर प्रहार करती है। 2. नयी कविता जीवन की समस्याओं को बौद्धिक दृष्टि से देखने और मिटाने पर जोर देती है। 3. नयी कविता का कवि सामाजिक राजनीतिक स्थितियों तथा यौन कुंठा को बेबाक ढंग से अभिव्यक्त करता है। 4. वर्तमान क्षण के सघन और संपूर्ण अनुभूति को नयी कविता व्यक्त करती है। 5. नयी कविता आकर्षण को ही नहीं विकर्षण को भी व्यक्त करती है। यह अगर रिझाती है तो सताती भी कम नहीं है। 6. दो विश्वयुद्धों की विभीषिका और अनकही पीड़ा को भी नयी कविता व्यक्त करती है। संसार भर में सांस्कृतिक विघटन और मूल्यहीनता का जो दौर रहा उसे बहुत कुछ इसमें साकार किया गया है। 7. अस्तित्ववाद के प्रभाव में नयी कविता में अकेलापन, त्रास, आत्महत्या को चाह, बुरे सपने, सड़ांध भी कई वार आते हैं। 8. नयी कविता मोहभंग की कविता है। मोहभंग आजादी के दौरान जवां हुए सपनों से, आजाद भारत की राजनीतिक व्यवस्था से और आदमी की नयी निर्मित होती परिभाषा और उसके गिरते कद से।

प्रयोगवादी हिंदी कविता की प्रवृत्तियाँ Prayogwadi yugeen hindi kavita ki pravrttiyaan

1. प्रयोगवादी कविता शहरी मध्यवर्ग को केंद्र में रख कर लिखी गयी है। 2. अपने व्यक्तिगत सुखों-दुखों और संवेदनाओं को काव्य सत्य मानकर उन्हें नये-नये माध्यमों से व्यक्त करने की कोशिश इस कविता में हुई। 3. इस कविता में एक वर्ग उन कवियों का भी था जो अपने समाजवादी विश्वासों को अपने संस्कारों में ढालकर कविता लिख रहा था, ऐसे कवियों के यहाँ सामाजिक और जीवन मूल्यों से जुड़े प्रगतिशील विचारों का प्राधान्य रहा। 4. इस दौर के कवियों में अधिकांशतः अनास्थामूलक स्वर सुने जा सकते हैं। यह कवि ईश्वर, धर्म, नैतिकता के प्रति गंभीर नहीं दिखता। 5. सूक्ष्म से सूक्ष्म चीजों पर लेखन और अभिव्यक्ति इस कविता में है। 6. प्रयोगवादी कवि क्षण के महत्व को महिमामंडित करते हुए विराट और सनातन का अस्वीकार करता है। 7. प्रयोगवादी कवियों ने शब्दों में नए अर्थ भरने की कोशिश की। भाषा, भाव, प्रतीकों इत्यादि में नवीन प्रयोग इस दौर की उपलब्धि हैं।

प्रगतिवादी हिंदी कविता की प्रवृत्तियाँ Pragatiwad yugeen hindi kavita ki pravrttiyaan

 1. राष्ट्रीय स्वाधीनता के संघर्ष के निर्णायक काल में लिखी जा रही प्रगतिवादी कविता में स्वाधीनता के प्रति समर्पण और सहयोग का भाव विद्यमान है। 2. प्रगतिवादी हिंदी कविता राजनीतिक तौर पर मार्क्सवादी विचारधारा का साहित्यिक अवतार है। 3. प्रगतिवादी कविता में जनसामान्य की चिंता और जनसंघर्ष के प्रति समर्थन का स्वर प्रमुख है। 4. अन्य कलाओं की तरह कविता को भी जागरूकता और परिवर्तन का अस्त्र मानने वाले प्रगतिवादी कवियों के यहाँ शोषक वर्ग के प्रति घृणा और शोषितों के प्रति सहयोग, समर्थन तथा क्रांतिकारी बदलावों के प्रति एक उम्मीद मौजूद है। 5. यथार्थ की विडंबना के प्रति जागरूक इस दौर के कवि व्यंग्य में अग्रणी हैं। 6. आम जनजीवन के चित्र चाहे वह किसान हो, मजदूर हो, संघर्षशील स्त्री हो या दाने-दाने को मोहताज भिखारी- सब प्रगतिवादी हिंदी कविता के केंद्र में हैं। 7. गांव की चौपाल हो, खेत-खलिहान में कार्यरत किसान हो, फैक्ट्री या शहरी वातावरण में कार्यरत श्रमिक वर्ग हो या फटेहाल स्त्री हो या अवोध वचपन- ये सब प्रगतिवादी कविता की चिंता और चिंतन में महत्वपूर्ण हैं। 8. प्रतिवादी कविता प्राचीन और जर्जर रूढ़ियो...

छायावादी हिंदी कविता की प्रवृत्तियाँ Chhayawad yugeen hindi kavita ki pravrttiyaan

1. राष्ट्रीयता और स्वाधीनता की चेतना के साथ जनजागरण की देशव्यापी लहर को आमजन तक कविता के माध्यम से पहुंचाने का कार्य छायावादी कविता ने किया। 2. नागरिक स्वतंत्रता की भावना और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की पुकार के साथ व्यक्तिगत स्वाधीनता की भावना को भी छायावाद में प्रमुखता मिली। 3. पुरातन सामाजिक रूढ़ियों, पवित्रतावादी नैतिक बंधकों और आचार-व्यवहार के विरुद्ध विद्रोह का स्वर छायावादी कविता में मौजूद है। 4. रोमांटिसिज्म, प्रेम और प्रणय के चित्र इस दौर की कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों में से हैं। यह प्रेम व्यक्तिगत राग की अभिव्यक्ति मात्र न होकर सामंतवादी दृष्टि और बंधनों के विरुद्ध विद्रोह का जयघोष भी है। 5. प्रकृति का उन्मुक्त चित्रण जितना छायावाद में हुआ इतना हिंदी कविता केकिसी भी दौर में नहीं हुआ। यह प्रकृति सिर्फ प्रणय की स्थली न होकर स्वछंदता, गतिशीलता और मनुष्य अंतर्मन का विस्तार भी है। प्रकृति के साथ जितने भी तरह के चित्र, भाव और संबंध मानव जीवन के हो सकते हैं, वे बस इस कविता में मौजूद हैं। 6. आंतरिक स्पर्श से पुलकित भावों को स्थान देने के लिए प्रचुर कल्पनाशीलता छायावादी काव्य की विशे...

द्विवदी युगीन हिंदी कविता की प्रवृत्तियाँ

1. पद्य की भाषा के रूप में खड़ी बोली के प्रयोग को शुरू करने का हो प्रयास भारतेंदु युग में हुआ उसे इस युग के रचनाकारों ने महत्वपूर्ण दिशा दी। 2. राष्ट्रभक्ति का स्वर द्विवेदीयुगीन कविता का केंद्रीय स्वर है। पराधीनता को सबसे बड़ा अभिशाप बताते हुए इस युग के कवियों ने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए आत्मोत्सर्ग की प्रेरणा दी। 3. पौराणिक, ऐतिहासिक कथा प्रसंगों के माध्यम से लोकप्रिय चरित्रों को नये राष्ट्रीय कलेवर में पेश कर राष्ट्रीयता के संघर्ष को आमजन तक पहुँचाने का भरसक प्रयास इन कवियों ने किया। 4. मानवीय भावों को केन्द्र में रखते हुए उसके सुख-दुःख और संघर्षों को महत्व देकर मानव मात्र की वरावरी के नारे को प्रचारित किया गया। किसानों की दुर्दशा हो या विधवा का कष्टमय जीवन, ये सभी कवियों की चिंता के केंद्र में बने रहे। 5. द्विवेदी युग में वर्ण्य विषय में अपार वैविध्य और विस्तार आया। जीवन और जगत के सभी अवयव, सभी दृश्य और भाव कविता के विषय बने। 6. कविता को लोक शिक्षा का माध्यम मानने वाले द्विवेदी युगीन कवियों ने आदर्शवादी और नीतिपरक कथाओं और चरित्रों की उद्भावना की।

भारतेंदु युगीन हिंदी कविता की प्रवृत्तियाँ Bhartendu yugeen hindi kavita ki pravrttiyaan

1. भारतेंदुयुगीन हिंदी कविता पहली चार सामंती अभिरुचि से निकल कर यथार्थबोध की कविता यन जाती है। 2. भक्ति, श्रृंगार और चमत्कार को काव्यधारा क्षीण होने लगती है और इस कविता के केंद्र में आम जनजीवन की चिंता प्रमुख होने लगती है। 3. यह कविता अपने स्वर्णिम अतीत के गौरव गान करने के साथ ही देश और समाज की वर्तमान दुर्दशा पर दुःख, आक्रोश और व्यंग्य भी करती है। 4. अंग्रेजी राज के प्रति विद्रोह का स्वर तो है परन्तु कहीं कहीं प्रशंसा का भाव भी दिखाई पड़ता है। राष्ट्रभक्ति और राजभक्ति का द्वंद्व कविताओं के केंद्र में हैं। 4. इस युग की कविता की एक और महत्वपूर्ण विशेषता स्वदेशी और निज भाषा की उन्नति पर बल देने का है। 5. परंपरागत रूढ़ियों, अंधविश्वास और जन्मगत भेदभाव का विरोध करते हुए जनजागरण का पुनीत कर्तवय यह कविता निभाती है। 6. कविता में खड़ी बोली को प्रतिष्ठित करने का भगीरथ प्रयास इस दौर में शुरू होता है। 7. मौलिक काव्य रचना के साथ साथ संस्कृत और अंग्रेजी से काव्यानुवाद भी प्रमुखता के साथ इस युग के कवियों ने किया जिससे हिंदी जगत को और अधिक समृद्धि मिली।

What is Political Theory and what is its relevance?

Political theory is a discipline which suggests the ways for maintaining law, order and peace in society. It is concerned with the general welfare of the citizens of the State. It is a disciplined investigation of political problems. Political theory plays an important role during the period of social turmoil and change. Relevance of Political theory 1. It helps in formulating the concepts, models and paradigms. 2. It makes the study of subjects systematic. 3. It helps in clarifying different socio-economic and political ideologies. 4. It gives us the theories of men/women, society, the State and historical development.  5. It tells us about the past, present and future of politics in a rational way. 6. It is an agency of reform, revolution and conservation. 7. It tells the common citizen about his/her rights and liberties and makes him/her understand the concept of justice, liberty and equality. 8. It evaluates the ongoing politics and suggests changes. 9. It guides the action of ...