समकालीन हिंदी कविता की प्रवृत्तियाँ Samkalin yugeen hindi kavita ki pravrttiyaan

1. समकालीन कविता में विषय के स्तर पर पर्याप्त वैविध्य दिखाई पड़ता है गांव से लेकर शहर, महानगर, किसान-मजदूर से लेकर मध्यवर्गीय मूल्यों में दवा शहरी और हाशिये पर का समाज तथा इन सभी वर्गों की अनगिनत कहानियाँ, अनगिनत राग-द्वेष और समस्याएँ सब इस कविता में हैं।
2. विभिन्न विमशों- स्त्री विमर्श, दलित विमर्श, आदिवासी विमर्श, अल्पसंख्यक विमर्श इत्यादि तथा सांप्रदायिकता, नस्लवाद इत्यादि को लेकर महत्त्वपूर्ण वैचारिक कविताएँ लिखी जा रही हैं।
3. समकालीन कविता का कवि छोटी-छोटी बातों और विभिनन भावों को लेकर कविता लिखता है।
4. रूमानी इंद्रधनुष हो या नफरत और फरेब, अमीरी और विलासिता का चकाचौंध हो या गरीबी और फटेहाली का दर्द, एकता का आवाहन हो या नफरत और घृणा की खेती- यह सब समकालीन कविता में मौजूद हैं।
5. समकालीन कविता में व्यक्त यथार्थ प्रायः हमारे हमारे बीच का या हमारे आस-पास का होता है जिसे व्यक्त करने में भावों, अनुभूतियों और वैचारिक तत्परता का आवेग होता है।
6. विकास और सुविधाओं की अपाधापी में लगातार पीछे छूटते अतीत की सामूहिकता और अपनेपन के दर्द को अनेकशः देखा जा सकता है। सभ्य होते समाज की असभ्यता, बर्बरता और क्रूरता को लेकर भी समकालीन कवि चिचंतित हैं।
7. आर्थिक उदारीकरण ने सिर्फ वायुमंडल में ही प्रदूषण के कारक नहीं बढ़ाए हैं बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक और वैचारिक स्तर पर दिवालिएपन की जिस संस्कृति को जन्म दिया है और बढ़ाया है वह चिंताजनक है। इस पर समकालीन कविता लगातार विचार करती है।

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