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Showing posts from January 7, 2022

फादर बुल्के की अंतिम यात्रा पर उमड़ती हुई भीड़ और तरल आँखों को देखकर आपके मन में क्या आश्चर्य होता है?

फादर बुल्के की अंतिम यात्रा में दूर दूर से लोग शामिल होने आए। उनकी मृत्यु का दुखद समाचार जिसने भी सुना यह अपने को रोक न सका। शव यात्रा के इस जन सैलाब को देखकर और रोती हुई प्रत्येक आंखों को देखकर लेखक के मुह से निकल पड़ा कि नम आंखों को गिनना स्याही फैलाने जैसा है। उनकी इस शव यात्रा में जैनेंद्र कुमार, विजेंद्र कुमार, अजीत कुमार, डॉ निर्मला जैन, मसीही समुदाय के लोग, पादरी गण, साधुओं द्वारा धारण किए जाने वाले गेरूए वस्त्र पहने इलाहाबाद से प्रसिद्ध विज्ञान शिक्षक डॉक्टर सत्य प्रकाश और डॉक्टर रघुवंश जैसे महान शिक्षाविद शामिल हुए। इस भीड़ को देख कर अनुमान लगाया जा सकता है कि इस व्यक्ति से लोग कितने प्रभावित थे। फादर का अपने प्रियजनों के प्रति प्रेम, स्नेह, ममता और अपनत्व की भावना लोगों को अपनी ओर खींच लाई, जो किसी आश्चर्य से कम न था।

हालदार साहब को पानवाले की कौन-सी बात अच्छी नहीं लगी और क्यों?

हालदार साहब द्वारा कैप्टन के बारे में पूछने पर पानवाला कहता है कि कैप्टन तो लंगड़ा है, वह फौज़ में क्या जाएगा। वह तो पागल है, पागल। पानवाले के द्वारा कैप्टन का इस प्रकार मजाक उड़ाया जाना हालदार साहब को अच्छा नहीं लगा क्योंकि शारीरिक रूप से असमर्थ होते हुए भी कैप्टन के मन में नेताजी के प्रति सम्मान की भावना थी। नेताजी की चश्माविहीन मूर्ति उसे आहत करती थी इसलिए वह उस पर चश्मा लगा देता था।

लखनवी अंदाज़ पाठ के अनुसार बताइए कि नवाब साहब ने खीरे किस उद्देश्य से खरीदे थे?

लखनवी अंदाज़ पाठ के अनुसार बताइए कि नवाब साहब ने खीरे किस उद्देश्य से खरीदे थे? वे कितने खीरे थे और लेखक के उस डिब्बे में दाखिल होते समय वे किस स्थिति में रखे रहे? इस दृश्य से किस बात का अनुमान किया जा सकता है? नवाब साहब ने संभवतया खीरे सफर में समय व्यतीत करने के उद्देश्य से खरीदे होंगे। खीरे दो थे। लेखक के उस डिब्बे में दाखिल होते समय ये बर्थ पर एक साफ तौलिए पर रखे हुए थे। इस दृश्य से नवाब साहब की नजाकत और लखनवी संस्कृति का अनुमान लगाया जा सकता है।