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Showing posts from December 18, 2019

नदियों का निरादर

आज देश के सामने नदियों के अस्तित्व का बड़ा सवाल खड़ा है । कारण , देश की 70 फीसदी नदियाँ प्रदूषित हैं और मरने के कगार पर हैं । यह उस देश में हो रहा है , जहाँ नदियों के किनारे बड़े - बड़े नगर सभ्यताएँ विकसित हुई हैं , जहाँ कुंभ जैसे विशाल मेले लगते हैं । जहाँ वेदकाल से नदियों , पहाड़ों , जंगलों , पशु - पक्षियों के सह - अस्तित्व की बात कही गई है । विकास और उपभोग की प्रवृत्ति ने प्रकृति के ताने - बाने को छिन्न - भिन्न कर डाला है । सबसे पूज्य नदियाँ गंगा - यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के लिए हमने 15 अरब रूपए खर्च किए , फिर भी उनकी हालत बदतर है । कहते हैं , पानी अपना रास्ता खुद तलाश लेता है । आखिर , क्यों तलाशना पड़ता है , पानी को रास्ता ? उत्तर स्पष्ट है - उसे कहीं । रोका जा रहा है या फिर उसे रास्ता नहीं दिया जा रहा है और इसी की परिणति है - पानी का रौद्र रूप - बाढ़ । आज हमने नदियों पर तमाम बाँध बनाकर उनकी निरंतर बहने की प्रवृत्ति को रोकने की कोशिश की है । यदि हम किसी के स्वभाव से छेड़छाड़ करेंगे तो दुष्परिणाम ही मिलेगा । हमने इन नदियों के किनारों के जंगली झाड़ियों , घास के मैदानों को नष...