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Showing posts from November 22, 2021

नाक मान-सम्मान व प्रतिष्ठा का द्योतक है। यह बात पूरी व्यंग्य रचना में किस तरह उभरकर आई है? लिखिए।

नाक मान-सम्मान एवं प्रतिष्ठा का सदा से ही प्रतीक रही हैं। इसी नाक को विषय बनाकर लेखक ने देश की सरकारी व्यवस्था, मंत्रियों, अधिकारियों एवं कर्मचारियों की गुलाम मानसिकता पर करारा प्रहार किया है। स्वतंत्रता प्राप्ति के संघर्ष में अंग्रेजों की करारी हार को उनकी नाक कटने का प्रतीक माना, तथापि स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भी भारत में स्थान स्थान पर अंग्रेजी शासकों की मूर्तियाँ स्थापित हैं, जो स्वतंत्र भारत में हमारी गुलाम या परतंत्र मानसिकता को दिखाती हैं। हिंदुस्तान में जगह- जगह ऐसी ही नाके खड़ी इन नाकों तह यहाँ के लोगों के हाथ पहुँच गए थे, तभी तो जार्ज पंचम की नाक गायब हो गयी थी। जॉर्ज पंचम की मूर्ति की नाक एकाएक गायब होने की खबर ने सरकारी महकमों की रातों की नींद उड़ा दी सरकारी महकमें रानी एलिजाबेथ के आगमन से पूर्व किसी भी तरह जार्ज पंचम की नाक लगवाने का हर संभव प्रयास करते हैं। इसी प्रयास में वह देश के महान देशभक्तों एवं शहीदों की नाक तक को उतार लाने का आदेश दे देते हैं किन्तु उन सभी की नाक जार्ज पंचम की नाक से बड़ी निकली, यहाँ तक कि बिहार में शहीद बच्चों तक की नाक जार्ज पंचम से बड़ी नि...

भोलानाथ बचपन में कैसे-कैसे नाटक खेला करता था? इससे उसका कैसा व्यक्तित्व उभरकर आता है ?

भोलानाथ बचपन में तरह-तरह के नाटक खेला करते थे। चबूतरे का एक कोने को ही नाटकघर बना लिया जाता था। बाबूजी जिस छोटी चौकी पर बैठकर नहाते थे, उसे रंगमंच के रूप में काम में लिया जाता था। सरकंडे के खम्भों पर कागज का चंदोआ उस रंगमंच पर तान दिया जाता था। वहीं पर मिठाइयों की दुकान लगाई जाती इस दुकान में चिलम के खोचे पर कपड़े के थालों में ढले के लड्डू, पत्तों की पूरी कचौरिया, गीली मिट्टी की जलेबियाँ, फूटे घड़े के टुकड़ों के बताशे आदि मिठाइयाँ सजाई जातीं। ठीकरों के बटखरे और जस्ते के छोटे टुकड़ों के पैसे बनते। इससे भोलानाथ का यह व्यक्तित्व उभरकर आता है कि वह घर की अनावश्यक वस्तुओं को ही खिलौने बना लेते थे। आज की तरह वे दिखावे से कोसों दूर थे।भोलानाथ बचपन में तरह-तरह के नाटक खेला करते थे। चबूतरे का एक कोने को ही नाटकघर बना लिया जाता था। बाबूजी जिस छोटी चौकी पर बैठकर नहाते थे, उसे रंगमंच के रूप में काम में लिया जाता था। सरकंडे के खम्भों पर कागज का चंदोआ उस रंगमंच पर तान दिया जाता था। वहीं पर मिठाइयों की दुकान लगाई जाती इस दुकान में चिलम के खोचे पर कपड़े के थालों में ढले के लड्डू, पत्तों की पूरी कचौरिया...