1. भारतेंदुयुगीन हिंदी कविता पहली चार सामंती अभिरुचि से निकल कर यथार्थबोध की कविता यन जाती है।
2. भक्ति, श्रृंगार और चमत्कार को काव्यधारा क्षीण होने लगती है और इस कविता के केंद्र में आम जनजीवन की चिंता प्रमुख होने लगती है।
3. यह कविता अपने स्वर्णिम अतीत के गौरव गान करने के साथ ही देश और समाज की वर्तमान दुर्दशा पर दुःख, आक्रोश और व्यंग्य भी करती है।
4. अंग्रेजी राज के प्रति विद्रोह का स्वर तो है परन्तु कहीं कहीं प्रशंसा का भाव भी दिखाई पड़ता है। राष्ट्रभक्ति और राजभक्ति का द्वंद्व कविताओं के केंद्र में हैं।
4. इस युग की कविता की एक और महत्वपूर्ण विशेषता स्वदेशी और निज भाषा की उन्नति पर बल देने का है।
5. परंपरागत रूढ़ियों, अंधविश्वास और जन्मगत भेदभाव का विरोध करते हुए जनजागरण का पुनीत कर्तवय यह कविता निभाती है।
6. कविता में खड़ी बोली को प्रतिष्ठित करने का भगीरथ प्रयास इस दौर में शुरू होता है।
7. मौलिक काव्य रचना के साथ साथ संस्कृत और अंग्रेजी से काव्यानुवाद भी प्रमुखता के साथ इस युग के कवियों ने किया जिससे हिंदी जगत को और अधिक समृद्धि मिली।