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Showing posts from December 9, 2021

भाव स्पष्ट कीजिए बिहसि लखनु बोले मृदु बानी अहो मुनीसु महाभट मानी पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू चहत उड़ावन फूंकि पहारू

परशुराम जी की बातें सुनकर लक्ष्मण हँसकर मीठी वाणी में प्यार से कहते हैं कि मैं जानता हूँ कि आप एक महान योद्धा है। लेकिन मुझे बार बार आप ऐसे कुल्हाड़ी दिखा रहे हैं जैसे कि आप किसी पहाड़ को फूंक मारकर उड़ा देना चाहते हैं। ऐसा कहकर लक्ष्मण एक ओर तो परशुराम का गुस्सा बढ़ा रहे है और शायद दूसरी ओर उनकी आंखों पर से परदा हटाना चाह रहे हैं।

माँ का अपनी पुत्री का कन्यादान करने का दुःख क्यों प्रामाणिक स्वाभाविक था?

'माँ को अपनी पुत्री का कन्यादान करने का दुःख प्रमाणिक, स्वाभाविक था क्योंकि उसकी पुत्री (लड़की) अत्यंत भोली भाली, सरल तथा ससुराल में मिलने वाले दुःखों के प्रति अनजान thi। उस समय माँ को यह लगता है कि लड़की उसकी अन्तिम पूंजी है क्योंकि अपने सभी संस्कारों को माँ अपनी बेटी में भरती है। उसे तो वैवाहिक सुखों के बारे में बस थोड़ा सा ज्ञान है।

"मानवीय करुणा की दिव्य चमक" शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालिए।

फादर कामिल बुल्के मानवीय करुणा से ओतप्रोत थे। इनके हृदय में पीड़ित व्यक्तियों के लिए करुणा और स्नेह की भावना थी। प्रभु में उन्हें गहरी आस्था थीं। वे दुःखी व्यक्ति को अपार ममता व शांति प्रदान करते थे। एक बार रिश्ता बनाकर उसे जीवनभर निभाते थे। फादर दृढ़ संकल्प और मानवीय गुणों के कारण शीर्षक को सार्थकता प्रदान करते हैं।

देशप्रेम की भावना किसी भी व्यक्ति में हो सकती है उसके लिए हथियार उठाना जरूरी नहीं है 'नेताजी का चश्मा' पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

प्रश्न: देशप्रेम की भावना किसी भी व्यक्ति में हो सकती है उसके लिए हथियार उठाना जरूरी नहीं है 'नेताजी का चश्मा' पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए। उत्तर: चश्मेवाला कभी सेनानी नहीं था, वह गरीब व अपाहिज था, लेकिन उसके मन में देशभक्ति की असीम भावना थी। बिना चश्मे की मूर्ति को देखकर दुःखी होना और उनके प्रति सम्मान की भावना के कारण मूर्ति पर चश्मा लगा देना उसकी देशभक्ति को दर्शाता है। अतः स्पष्ट है कि देशप्रेम की भावना के लिए हथियार उठाना जरूरी नहीं है।

लेखक नवाब साहब के जबड़ों के स्फुरण को देखकर क्या अनुभव कर रहे थे?

प्रश्न: लेखक नवाब साहब के जबड़ों के स्फुरण को देखकर क्या अनुभव कर रहे थे? अपने सामने खीरों को देखकर मुँह में पानी आने पर भी उन्होंने खीरे खाने के लिये नवाब साहब के अनुरोध को स्वीकृत क्यों नहीं किया? उत्तर : लेखक नवाब साहब के जबड़ों के स्फुरण को देखकर उनकी वास्तविक स्थिति को समझ चुके थे। वे उनकी झूठी शान की असलियत को भांप गए थे। खीरा खाने के लिए ये आरंभ में मना कर चुके थे। अतः मुँह में पानी आने पर भी अपने आत्मसम्मान की खातिर उन्होंने खीरा खाने के अनुरोध को स्वीकार नहीं किया।

लड़के के देहान्त के बाद बालगोबिन भगत ने पतोहू को कि बात के लिये बाध्य किया? उनका यह व्यवहार उनके किस प्रकार के विचार का प्रमाण है?

लड़के के देहांत के बाद जैसे ही श्राद्ध की अवधि समाप्त हुई वैसे ही बालगोदिन भगत ने पतोहू के भाई को बुला भेजा और उसे यह आदेश दिया गया कि वह पतोहू का पुनर्विवाह करवा दे । उन्होंने अपनी इसी इच्छा के साथ पतोहू को उसके भाई के साथ उसके मायके भेज दिया। यह व्यवहार उनकी रूढ़िवादी प्रगतिशील विचारधारा का परिचायक होने के साथ-साथ विधवा विवाह के समर्थक होने पर भी बल देता है।