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Showing posts from May 17, 2021

"जब खाएगा बड़े-बड़े कौर तब पाएगा दुनिया में ठौर" पंक्ति के कथन का संदर्भ लिखकर बताइए कि "माता का आँचल पाठ में वर्णित माता अपने पुत्र को किस भाव से खिलाती थीं और इससे क्या शिक्षा ग्रहण करते हैं?

माता अपने पुत्र को इस भाव से खिलाती थी कि उन्हें लगता था कि मर्द बच्चों को खाना खिलाने का ढंग नहीं जानते। बच्चों का पेट तो माँ के हाथ से खाने पर ही भरता है भोलानाथ का पेट भरा हुआ होने पर भी वह अलग-अलग पक्षियों के नाम लेकर दही-चावल के बड़े-बड़े कौर उसके मुँह में डालकर उसे यह कहती कि जल्दी से खा लो नहीं तो पक्षी उड़ जाएंगे और बच्चा उनके उड़ने से पहले खा लेता। माँ के अनुसार बच्चा बड़े-बड़े कौर खाकर ही दुनिया में अपना एक निश्चित स्थान बना पाएगा। वे अपने पति से कहती है कि आप तो छोटे-छोटे कौर बनाकर बच्चे के मुँह में देते हैं, इससे थोड़ा सा खाकर ही बच्चा सोच लेता है कि उसने बहुत खा लिया और उसका पेट भर गया। माता का मन ममता से परिपूर्ण होता। इससे हम यह शिक्षा ग्रहण करते हैं कि माँ का मन बड़ा ही कोमल और ममता से भरा हुआ होता है। उसका मन तब तक सन्तुष्ट नहीं होता है जब तक कि वह अपने बच्चे को अपने हाथों से न खिला ले। अतः हमें भी अपनी माँ का उसी प्रकार ध्यान रखना चाहिए जिस प्रकार माँ हमारा ध्यान करती है। 

उत्साह कविता में बादल के माध्यम से कवि निराला के जीवन की झलक मिलती है। इस कथन से आप कितने सहमत / असहमत हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।

'उत्साह कविता से निराला के जीवन की झलक मिलती है। निराला एक क्रांतिकारी कवि थे। वे समाज के लोगों में नवीन उत्साह जगाना चाहते थे। स्वाभिमानी निराला वज्र तुल्य कठोर थे तो भिक्षुओं, मजदूरों, निर्धनों के प्रति उनके मन में करुणा का सागर भी लहराता था।

नवाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा, नमक-मिर्च बुरका, अंतत: सूधकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा? उनका ऐसा करना उनके कैसे स्वभाव को इंगित करता है?

नवाब साहब द्वारा दिए गए खीरा खाने के प्रस्ताव को लेखक ने अस्वीकृत कर दिया। खीरा खाने की इच्छा तथा सामने वाले यात्री के सामने अपनी झूठी साख बनाए रखने की उलझन में नवाब साहब ने खीरा खाने की सोची परन्तु उसे तुच्छ दिखाने के इरादे से नवाब साहब ने खीरा यत्नपूर्वक काटा और सूंघ कर ही उसका स्वाद लेते हुए उसकी एक-एक फाँक को खिड़की से बाहर फेंक दिया नवाब के इस कार्य से ऐसा प्रतीत होता है कि वे प्रदर्शनवादी प्रवृत्ति के थे और नजाकत नफासत दिखाने के लिए कुछ भी कर सकते थे।

बालगोबिन भगत के व्यक्तित्व की दो विशेषताएँ लिखिए

बालगोबिन भगत के व्यक्तित्व की दो विशेषताएँ गृहस्थ होते हुए भी साधुओं वाला जीवन सांसारिक वस्तुओं से मोह न होना, संतोषी प्रवृत्ति