द्विवदी युगीन हिंदी कविता की प्रवृत्तियाँ

1. पद्य की भाषा के रूप में खड़ी बोली के प्रयोग को शुरू करने का हो प्रयास भारतेंदु युग में हुआ उसे इस युग के रचनाकारों ने महत्वपूर्ण दिशा दी।

2. राष्ट्रभक्ति का स्वर द्विवेदीयुगीन कविता का केंद्रीय स्वर है। पराधीनता को सबसे बड़ा अभिशाप बताते हुए इस युग के कवियों ने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए आत्मोत्सर्ग की प्रेरणा दी।

3. पौराणिक, ऐतिहासिक कथा प्रसंगों के माध्यम से लोकप्रिय चरित्रों को नये राष्ट्रीय कलेवर में पेश कर राष्ट्रीयता के संघर्ष को आमजन तक पहुँचाने का भरसक प्रयास इन कवियों ने किया।

4. मानवीय भावों को केन्द्र में रखते हुए उसके सुख-दुःख और संघर्षों को महत्व देकर मानव मात्र की वरावरी के नारे को प्रचारित किया गया। किसानों की दुर्दशा हो या विधवा का कष्टमय जीवन, ये सभी कवियों की चिंता के केंद्र में बने रहे।

5. द्विवेदी युग में वर्ण्य विषय में अपार वैविध्य और विस्तार आया। जीवन और जगत के सभी अवयव, सभी दृश्य और भाव कविता के विषय बने।

6. कविता को लोक शिक्षा का माध्यम मानने वाले द्विवेदी युगीन कवियों ने आदर्शवादी और नीतिपरक कथाओं और चरित्रों की उद्भावना की।

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