1. राष्ट्रीय स्वाधीनता के संघर्ष के निर्णायक काल में लिखी जा रही प्रगतिवादी कविता में स्वाधीनता के प्रति समर्पण और सहयोग का भाव विद्यमान है।
2. प्रगतिवादी हिंदी कविता राजनीतिक तौर पर मार्क्सवादी विचारधारा का साहित्यिक अवतार है।
3. प्रगतिवादी कविता में जनसामान्य की चिंता और जनसंघर्ष के प्रति समर्थन का स्वर प्रमुख है।
4. अन्य कलाओं की तरह कविता को भी जागरूकता और परिवर्तन का अस्त्र मानने वाले प्रगतिवादी कवियों के यहाँ शोषक वर्ग के प्रति घृणा और शोषितों के प्रति सहयोग, समर्थन तथा क्रांतिकारी बदलावों के प्रति एक उम्मीद मौजूद है।
5. यथार्थ की विडंबना के प्रति जागरूक इस दौर के कवि व्यंग्य में अग्रणी हैं।
6. आम जनजीवन के चित्र चाहे वह किसान हो, मजदूर हो, संघर्षशील स्त्री हो या दाने-दाने को मोहताज भिखारी- सब प्रगतिवादी हिंदी कविता के केंद्र में हैं।
7. गांव की चौपाल हो, खेत-खलिहान में कार्यरत किसान हो, फैक्ट्री या शहरी वातावरण में कार्यरत श्रमिक वर्ग हो या फटेहाल स्त्री हो या अवोध वचपन- ये सब प्रगतिवादी कविता की चिंता और चिंतन में महत्वपूर्ण हैं।
8. प्रतिवादी कविता प्राचीन और जर्जर रूढ़ियों को ध्वस्त कर एक नया समाज बनाने की इच्छुक है जहाँ मनुष्य द्वारा मनुरू को शोषण न हो, आर्थिक आधार पर शोषण न हो और हर मेहनतकश को उसका वाजिब हक मिले। शासन व्यवस्था तथा उत्पादन की साधनों पर राज्य और समाज का हक हो, व्यक्ति-विशेष का नहीं।