इस पाठ में बच्चों की जो दुनिया ग्रामीण जीवन पर आधारित है। ग्रामीण परिवेश में चारों ओर उगी फसलें, उनके दूधभरे दाने युगती चिडियाँ, बच्चों द्वारा उन्हें पकड़ने का असंभव प्रयास, उन्हें उड़ाना, माता द्वारा बलपूर्वक बच्चे को तेल लगाना, चोटी बांधना, कन्हैया बनाना, साथियों के साथ मस्तीपूर्वक खेलना, आम के बाग में वर्षा में भीगना, बिच्छुओं का निकलना, मूसन तिवारी को चिढाना, चूहे के बिल में पानी डालने की कोशिश के वक्त अचानक से शर्प का निकल आना और बच्चे का भागते हुए पिता की जगह माँ के आँचल में छिप जाना। यह सब हमारे अथवा वर्तमान दौर के किसी भी शिशु के जीवन से बिलकुल भिन्न है। वर्तमान में अधिकांश माँ-बाप नौकरी करते हैं और इसी कारण से उन्हें अपने बच्चों के साथ वक्त बिताने का समय नहीं मिलता। आज छोटी से उम्र के बच्चों को उस उम्र में जब उन्हें अपने माता-पिता के साथ वक्त बिताना चाहिए, अपने नन्हे साथियों के साथ खेलना चाहिए, उन्हें उस उम्र में स्कूल में धकेल दिया जाता है। बच्चे क्रिकेट, वॉलीबॉल, कंप्यूटर गेम, वीडियो गेम, लूडो आदि खेलते हैं। जिस धूल में खेलकर ग्रामीण बच्चे बड़े होते हैं तथा मजबूत बनते हैं। उ...