बचपन का दौर | बचपन की यादें कविता | childhood memories

मैं प्रिंस अपने ब्लॉग में आपका स्वागत करता हूं । आज मै आपके लिए एक कविता के साथ हाजिर हूं जिसका नाम बचपन का दौर (बचपन की यादें कविता ) है । बचपन ही केवल एक ऐसा समय होता है जब हमें किसी की चिंता फिक्र नहीं होती है । घर में क्या चल रहा और दुनिया में क्या हो रहा है इससे हमें कोई मतलब नहीं होता है । हम तो केवल अपने में ही मदमस्त हैं । छोटी– छोटी चीजों के लिए मम्मी से जिद करना कि हमेंं केवल यही चाहिए । अपने परिवार से रूठना मनाना यह तो बचपन में कितना अच्छा लगता है । अपने दोस्तों के साथ खेलते कूदतेेे दिन कैसे पार गया पता ही नही चलता है और शाम को भोजन करते ही नींद का आना यही तो जिंदगी थी ।
अगर हम अपने बचपन की यादों को सोचते है तो कितना अच्छा लगता है मन करता है एक बार और बचपन कि जिंदगी जीने को मिल जाती ।

बचपन की यादें कविता

वो बचपन का दौर जो बीता,
जिंदगी का सबसे पल था वो मीठा,
कितनी प्यारी लगती थी दादी और नानी,
जो हमको सुनाती थी किरसे और कहानी,
छोटी – सी खुशियों में हँसना और रो देना
घर वाले भी हमसे करते थे दिल्लगी ।

कहते मीठा फिर खिलाते जो तीखा,
वो बचपन का दौर जो बीता,
कभी बनना था डॉक्टर,
तो कभी बनना था मास्टर ।

पल हर पल बदलते थे सपने,
कोई थे भैया तो कोई थे चाचा,
हर कोई जैसे लगता था अपना,
छोटी-सी मुश्किल में चेहरा होता जो फीका,
वो बचपन का दौर जो बीता ।

पापा से डरना पर माँ से जो लड़ना,
करके गुस्ताखी फिर उलझन में पड़ना,
न कोई गम था न कोई डर था,
बस खेल - खिलौनों की थी फिकर,
बचपन का हर पल होता है अनूठा,
वो बचपन का दौर जो बीता ।

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