स्वतंत्र भारत में अंग्रेजी का मोह निबंध लेखन Essay writing on the temptation of English in independent India

संकेत - बिंदु : 1 . अंग्रेजी का वर्चस्व 2 . अंग्रेजी का बढ़ता प्रचलन 3 . हिंदीभाषी जनमानस 4 . हिंदी की दुर्दशा 5 . अंग्रेजी के पक्षधर 6 . संपर्क भाषा 7 . उपसंहार

अंग्रेज़ी का वर्चस्व - भारत को स्वतंत्र हए लगभग 66 वर्ष व्यतीत हो गए , किंतु भारत में अंग्रेजी का मोह निरंतर बढ़ता जा रहा है । भारत की राष्ट्रभाषा के पद पर हिंदी को प्रतिष्ठित करने का कार्य संविधान ने तो कर दिया , पर हमारे शोषस्थ नेताओं ने पहले पंद्रह वर्ष तक और फिर अनिश्चित काल तक हिंदी को वनवास दे दिया । सरकारी कामकाज की भाषा अंग्रेज़ी ही बनी हुई है । आज सभी स्थानों पर अंग्रेज़ी का वर्चस्व बना हुआ है । नवयुवकों में भी अंग्रेजी के प्रति मोह बढ़ता जा रहा है । आखिर ऐसा क्यों है ? ।

अंग्रेज़ी का बढ़ता प्रचलन - स्वतंत्र भारत में अंग्रेजी भाषा का व्यापक रूप से प्रचार क्यों हो रहा है ? अपने देश में 22 समृद्ध एवं संविधान स्वीकृत भाषाओं के रहते हुए भी विदेशी भाषा के प्रति इस अंधमोह का क्या कारण है ? स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमारे देश में अंग्रेज़ी के प्रति नई पीढ़ी में मोह बढ़ा है , और सामान्य व्यवहार में उसके प्रयोग में भी वृद्धि हुई है । छोटे - छोटे कस्बों और नगरों में अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों की बाढ़ - सी आ गई है । कॉन्वेंट नाम से घर - घर में स्कूल खुल गए हैं । यह अंग्रेज़ी के प्रति मोह का ही परिणाम है । दूसरी ओर यह आवाज भी बुलंद हो रही है कि हमारे विद्यालयों में अंग्रेजी भाषा का स्तर दिन - प्रतिदिन गिर रहा है । पहले जमाने के मैट्रिक परीक्षा पास छात्र के बराबर आज बी०ए० परीक्षा पास छात्र अंग्रेज़ी नहीं जानता । एक ओर अंग्रेजी का व्यापक प्रचार और दूसरी ओर अंग्रेज़ी ज्ञान के स्तर में गिरावट दोनों बातें एक - दूसरे के विपरीत हैं किंतु तथ्य यह हैं कि दोनों बातें सत्य हैं । प्रचार - प्रसार में बाढ़ है , ज्ञान - स्तर में गिरावट ।

 हिंदीभाषी जनमानस - कहते हैं कि भाषा व्यवहार से , बोलने और लिखने से आती है । आज के हमारे नवयुवक जो अंग्रेजी के मोहपाश में फँसे हैं और अपनी मातृभाषा की उपेक्षा कर अंग्रेजी बोलने में गौरव का अनुभव करते हैं . शुद्ध अंग्रेज़ी क्यों नहीं जानते ? कारण स्पष्ट है , अंग्रेज़ी का मोह तो उनमें है , किंतु शुद्ध एवं व्याकरणसम्मत परिमार्जित भाषा सीखने के लिए परिश्रम का अभाव है । भाषा ज्ञान के लिए जिस प्रकार के कठोर परिश्रम की अपेक्षा होती है , वह इन नवयुवकों में लक्षित नहीं होता । फलतः अंग्रेज़ी के नाम पर जिस भाषा का प्रयोग वे लोग करते हुए पाए जाते हैं , वह अंग्रेज़ी न होकर अंग्रेज़ी का विकृत रूप है । अंग्रेजों के खानसामे और मुंशी लोग भी इनसे अच्छी अंग्रेजी बोल लेते थे । विदेशी शासन जब किसी देश को जीतकर अपने शासन में लेते हैं तब वे सबसे पहले विजित देश की भाषा के स्थान पर अपनी भाषा को शासन की भाषा बनाते हैं । भाषा के माध्यम से विदेशी अपनी सभ्यता और संस्कृति की छाप विजित देश पर छोड़ते हैं । ब्रिटिश शासनकाल में अंग्रेज़ों ने अंग्रेज़ी भाषा को हमारे देश की शासन - भाषा बनाया था , जो अभी तक हमारे यहाँ प्रचलित है । अब हमारा देश स्वतंत्र है , अत : हमें अपने राष्ट्र की भाषाओं को अपनाना चाहिए । राष्ट्रीय गौरव और स्वाभिमान के लिए यह आवश्यक है ।

हिंदी की दुर्दशा - मातृभाषा के प्रति हीनभाव और अंग्रेज़ी के प्रति उच्चभाव हमारी मानसिक दासता का प्रतीक । है । हमारे मन में आज भी अंग्रेज़ी वेशभूषा , रहन - सहन , खान - पान एवं अंग्रेजी भाषा का आतंक बना हुआ है । हम अंग्रेज़ियत को अपनी झूठी शान और दिखावटी दंभ की भाषा बनाए हुए हैं । चिरकाल तक पराधीन रहकर हमने राष्ट्रीयता के विधायक तत्वों को ही भुला दिया है । आधुनिकता के मोह में हमें स्वभाषा , स्वसंस्कृति और स्वसाहित्य के प्रति कोई मोह नहीं है । अंग्रेजी भाषा को ज्ञान - विज्ञान का वातायन कहा जाने लगा ; जो किसी भी तरह उचित नहीं है ।

अंग्रेज़ी के पक्षधर - अंग्रेज़ी के बढ़ते प्रभाव को तीन दृष्टियों से देखा जा सकता है । कुछ व्यक्ति विदेशी भाषा । सीखने के इच्छुक रहते हैं । वे अंग्रेज़ी भाषा भी नई भाषा सीखने के उद्देश्य से बोलते एवं प्रयोग में लाते हैं । परंतु इस दिशा में कठोर परिश्रम की आवश्यकता है । दूसरे वर्ग में वे व्यक्ति आते हैं जो विवशतावश अंग्रेजी का प्रयोग करते हैं । इन्हें कुछ छूट देनी होगी । पर तीसरा वर्ग हीनतावश हिंदी या अपनी मातृभाषा का प्रयोग न करके अंग्रेज़ी के प्रयोग में गर्व का अनुभव करता है । यह स्थिति अत्यंत चिंताजनक है ।

संपर्क भाषा - यह भी हमारा भ्रम है कि अंग्रेज़ी विश्व के अधिकांश देशों में बोली व समझी जाती है । इस भ्रम को तोड़ना आवश्यक है क्योंकि चीन , जापान , रूस , फ्रांस , जर्मनी , ईरान , ईराक , अफ़गानिस्तान , नेपाल आदि देशों में इस भाषा का प्रयोग नहीं होता । सभी स्वतंत्र देश अपनी भाषा का प्रयोग कर गौरव अनुभव करते हैं । अंग्रेज़ी के प्रयोग करने के कारण कई बार विदेशों में हमारी दशा दयनीय हो जाती है । स्वतंत्रता से पूर्व अंग्रेजी भाषा का प्रयोग सरकारी कार्यालयों , विश्वविद्यालयों तथा मंत्रालयों तक सीमित था । सार्वजनिक स्थलों पर मातृभाषा का ही प्रयोग होता था ।

उपसंहार - किंतु स्वतंत्रता के उपरांत अंग्रेजी का प्रयोग घटने के स्थान पर बढता ही चला गया । सावजानक स्थला पर भी अंग्रेजी का प्रभुत्व होता चला गया है । इससे हमारे राष्ट्रीय गौरव को बड़ी ठेस पहुंची है । इस स्थिति को बदलना होगा । राष्ट्रभाषा और मातृभाषा के प्रति स्वाभिमान की भावना जागृत करना नितांत आवश्यक है ।

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