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नीचे दिए गए समाचार को पढ़िए इसे पढ़कर जो भी विचार आपके मन में आते हैं, उन्हें किसी समाचार पत्र के संपादक को पत्र के रूप में लिखिए।

सेवा में, सम्पादक दैनिक जागरण भवन, नई दिल्ली विषय - चिड़ियाघर में घटित हृदयविदारक मौत महोदय, निवेदन है कि अपने सम्मानित दैनिक समाचार पत्र के न्यूज आइटम में नीचे लिखे समाचार को स्थान देकर अनुगृहीत करें कल मंगलवार को दिल्ली के चिड़ियाघर में सफेद बाघ के हाथों वहाँ घुमने आये एक युवक की मौत हो गई जो हृदय विदारक घटना है। सुरक्षा के घेरे में ऐसी दुःखदायी मौत प्रबन्धन की लापरवाही और उनकी व्यवस्था पर सवाल खड़ा करती हैं। पशु तो बेचारे मासूम होते हैं वे नाहक ही किसी पर हमला करते जरूर इसके पीछे कोई कारण रहा होगा। कृपया अपने समाचार पत्र के माध्यम से पुनरावृत्ति को रोकने हेतु केन्द्र सरकार के सम्बन्धित विभाग को लिखने का कष्ट करें ताकि वास्तविक कारण का पता लग सके और जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्यवाही हो सके। धन्यवाद भवदीय विनोद कुमार पालम, दिल्ली

आए दिन चोरी और झपटमारी के समाचारों को पढ़कर जो विचार आपके मन में आते हैं, उन्हें किसी समाचार पत्र के संपादक को पत्र के रूप में लिखिए।

सेवा में, सम्पादक, नव भारत टाइम्स, नई दिल्ली विषय -क्षेत्रीय चोरी और झपटमारी जैसे अपराधों के संबंध में महोदय, मै आपके प्रतिष्ठित समाचार पत्र का नियमित पाठक हूँ। आपके समाचार पत्र के माध्यम से में जिम्मेदार अधिकारियों का ध्यान इस विकराल समस्या की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ जिससे हम सब पीड़ित हैं। हमारे क्षेत्र में आजकल चोरियाँ तथा महिलाओं की चेन झपटना, उनके साथ अभद्र व्यवहार करना, इस प्रकार के अपराध तेजी से बढ़ते ही जा रहे हैं। जहाँ सुनो वहीं पर ऐसी घटनाएँ रोज पढ़ने और देखने को मिलती है। इन्हीं घटनाओं से समाचार पत्र पूरा भरा रहता है। कल रात को मेरे पड़ोस के लाला रामलाल जी के यहाँ भारी चोरी की वारदात हो गयी। चोरों ने योजनबद्ध तरीके से अपना काम किया जिसे देख कर जनता और पुलिस दोनों की आँखे खुली रह गई। आए दिन क्षेत्रों में कोई-न-कोई चोरी होती रहती है। लोग शराब पीकर चोरी व झपटमारी करते हैं तथा पुलिस सिर्फ तमाशा देखती रहती है। अगर किसी के खिलाफ कार्यवाही हो गई तो अगले ही दिन यह खुलेआम घूमता पाया जाता है। पीड़ित को कोई इंसाफ मिलता हो ऐसा दिखाई नहीं देता। कृपया हमारे इस पत्र को अपने समाचार पत्र म...

भाव स्पष्ट कीजिए बिहसि लखनु बोले मृदु बानी अहो मुनीसु महाभट मानी पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू चहत उड़ावन फूंकि पहारू

परशुराम जी की बातें सुनकर लक्ष्मण हँसकर मीठी वाणी में प्यार से कहते हैं कि मैं जानता हूँ कि आप एक महान योद्धा है। लेकिन मुझे बार बार आप ऐसे कुल्हाड़ी दिखा रहे हैं जैसे कि आप किसी पहाड़ को फूंक मारकर उड़ा देना चाहते हैं। ऐसा कहकर लक्ष्मण एक ओर तो परशुराम का गुस्सा बढ़ा रहे है और शायद दूसरी ओर उनकी आंखों पर से परदा हटाना चाह रहे हैं।

माँ का अपनी पुत्री का कन्यादान करने का दुःख क्यों प्रामाणिक स्वाभाविक था?

'माँ को अपनी पुत्री का कन्यादान करने का दुःख प्रमाणिक, स्वाभाविक था क्योंकि उसकी पुत्री (लड़की) अत्यंत भोली भाली, सरल तथा ससुराल में मिलने वाले दुःखों के प्रति अनजान thi। उस समय माँ को यह लगता है कि लड़की उसकी अन्तिम पूंजी है क्योंकि अपने सभी संस्कारों को माँ अपनी बेटी में भरती है। उसे तो वैवाहिक सुखों के बारे में बस थोड़ा सा ज्ञान है।

"मानवीय करुणा की दिव्य चमक" शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालिए।

फादर कामिल बुल्के मानवीय करुणा से ओतप्रोत थे। इनके हृदय में पीड़ित व्यक्तियों के लिए करुणा और स्नेह की भावना थी। प्रभु में उन्हें गहरी आस्था थीं। वे दुःखी व्यक्ति को अपार ममता व शांति प्रदान करते थे। एक बार रिश्ता बनाकर उसे जीवनभर निभाते थे। फादर दृढ़ संकल्प और मानवीय गुणों के कारण शीर्षक को सार्थकता प्रदान करते हैं।

देशप्रेम की भावना किसी भी व्यक्ति में हो सकती है उसके लिए हथियार उठाना जरूरी नहीं है 'नेताजी का चश्मा' पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

प्रश्न: देशप्रेम की भावना किसी भी व्यक्ति में हो सकती है उसके लिए हथियार उठाना जरूरी नहीं है 'नेताजी का चश्मा' पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए। उत्तर: चश्मेवाला कभी सेनानी नहीं था, वह गरीब व अपाहिज था, लेकिन उसके मन में देशभक्ति की असीम भावना थी। बिना चश्मे की मूर्ति को देखकर दुःखी होना और उनके प्रति सम्मान की भावना के कारण मूर्ति पर चश्मा लगा देना उसकी देशभक्ति को दर्शाता है। अतः स्पष्ट है कि देशप्रेम की भावना के लिए हथियार उठाना जरूरी नहीं है।

लेखक नवाब साहब के जबड़ों के स्फुरण को देखकर क्या अनुभव कर रहे थे?

प्रश्न: लेखक नवाब साहब के जबड़ों के स्फुरण को देखकर क्या अनुभव कर रहे थे? अपने सामने खीरों को देखकर मुँह में पानी आने पर भी उन्होंने खीरे खाने के लिये नवाब साहब के अनुरोध को स्वीकृत क्यों नहीं किया? उत्तर : लेखक नवाब साहब के जबड़ों के स्फुरण को देखकर उनकी वास्तविक स्थिति को समझ चुके थे। वे उनकी झूठी शान की असलियत को भांप गए थे। खीरा खाने के लिए ये आरंभ में मना कर चुके थे। अतः मुँह में पानी आने पर भी अपने आत्मसम्मान की खातिर उन्होंने खीरा खाने के अनुरोध को स्वीकार नहीं किया।