माँ का अपनी पुत्री का कन्यादान करने का दुःख क्यों प्रामाणिक स्वाभाविक था?

'माँ को अपनी पुत्री का कन्यादान करने का दुःख प्रमाणिक, स्वाभाविक था क्योंकि उसकी पुत्री (लड़की) अत्यंत भोली भाली, सरल तथा ससुराल में मिलने वाले दुःखों के प्रति अनजान thi। उस समय माँ को यह लगता है कि लड़की उसकी अन्तिम पूंजी है क्योंकि अपने सभी संस्कारों को माँ अपनी बेटी में भरती है। उसे तो वैवाहिक सुखों के बारे में बस थोड़ा सा ज्ञान है।

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