भाव स्पष्ट कीजिए बिहसि लखनु बोले मृदु बानी अहो मुनीसु महाभट मानी पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू चहत उड़ावन फूंकि पहारू

परशुराम जी की बातें सुनकर लक्ष्मण हँसकर मीठी वाणी में प्यार से कहते हैं कि मैं जानता हूँ कि आप एक महान योद्धा है। लेकिन मुझे बार बार आप ऐसे कुल्हाड़ी दिखा रहे हैं जैसे कि आप किसी पहाड़ को फूंक मारकर उड़ा देना चाहते हैं। ऐसा कहकर लक्ष्मण एक ओर तो परशुराम का गुस्सा बढ़ा रहे है और शायद दूसरी ओर उनकी आंखों पर से परदा हटाना चाह रहे हैं।

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