गर्मी की उमस भगत जी के स्वरों को निढाल नहीं कर पाती थी, बल्कि उनके संगीत से वातावरण शीतल हो जाता था। अपने घर के आंगन में आसन जमा बैठते। गांव के कुछ संगीत प्रेमी भी उनका साथ देते। खंजड़ी और करतालों की संख्या बढ़ जाती। एक पद गोविंद जी कहते, पीछे उनकी मंडली उसे दूसरी बार तीसरी बार बोलती जाती। एक निश्चित ताल, एक निश्चित गति से धीरे धीरे स्वर ऊंचा होने लगता उस ताल- स्वर चढ़ाव के साथ श्रोताओं के मन भी ऊपर उठने लगते। धीरे धीरे मन तन पर हावी हो जाता अर्थात लोगों के मन के साथ साथ उनका शरीर भी झूमने लगता। एक क्षण ऐसा भी आता जब भगत जी नाच रहे होते तथा सभी उपस्थित लोगों के तन मन भी झूम रहे होते। सारा आंगन नृत्य और संगीत से भरपूर हो जाता तथा गर्मी की उमस भी शीतल प्रतीत होने लगती।