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Q. Difference between Flora and fauna by prince nishad

Flora  - The term flora is used to denote plants of a particular region or period. They make their food by photosynthesis. Fauna- The species of animals are referred to as fauna. They cannot make their own food and herbivore animals are dependent on flora for food.

The Youth in Nazi Germany Ch Nazism and rise of Hitler class 9

He felt a strong Nazi society could be established only by teaching the children Nazi ideology. All schools were 'cleansed' and purified which means that teachers who were Jews or seen as 'politically unreliable' were dismissed. Children were first segregated and German and Jewish children could not sit together or play together. The Jews and undesirable children were thrown out of schools and later on killed in gas chambers.  Good German children were subjected to a process of Nazi schooling, a period of ideological training. School text books were rewritten and Racial Science introduced to justify Nazi ideas of race. Children were taught to be loyal and submissive, hate Jews and worship Hitler. Youth organisations promoted the spirit of National Socialism among the youth. Ten year old children had to join Jungvolk' and at 14 years of age all children had to join the Nazi youth organisation 'Hitler Youth'.

1905 की क्रांति Revolution of 1905 class 9

वर्ष 1904 रूसी श्रमिकों के लिए विशेष रूप से बुरा था।  आवश्यक वस्तुओं की कीमतें बढ़ीं और वास्तविक मजदूरी में 20 प्रतिशत की गिरावट आई। रूसी श्रमिकों की विधानसभा के चार सदस्यों को बर्खास्त करने के कारण, औद्योगिक कार्रवाई का आह्वान किया गया था। सेंट पीटर्सबर्ग में 1,10,000 कर्मचारी हड़ताल पर चले गए, काम के दिन को आठ घंटे तक कम करने और वेतन में वृद्धि और कामकाजी परिस्थितियों में सुधार की मांग की।

नदियों का निरादर

आज देश के सामने नदियों के अस्तित्व का बड़ा सवाल खड़ा है । कारण , देश की 70 फीसदी नदियाँ प्रदूषित हैं और मरने के कगार पर हैं । यह उस देश में हो रहा है , जहाँ नदियों के किनारे बड़े - बड़े नगर सभ्यताएँ विकसित हुई हैं , जहाँ कुंभ जैसे विशाल मेले लगते हैं । जहाँ वेदकाल से नदियों , पहाड़ों , जंगलों , पशु - पक्षियों के सह - अस्तित्व की बात कही गई है । विकास और उपभोग की प्रवृत्ति ने प्रकृति के ताने - बाने को छिन्न - भिन्न कर डाला है । सबसे पूज्य नदियाँ गंगा - यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के लिए हमने 15 अरब रूपए खर्च किए , फिर भी उनकी हालत बदतर है । कहते हैं , पानी अपना रास्ता खुद तलाश लेता है । आखिर , क्यों तलाशना पड़ता है , पानी को रास्ता ? उत्तर स्पष्ट है - उसे कहीं । रोका जा रहा है या फिर उसे रास्ता नहीं दिया जा रहा है और इसी की परिणति है - पानी का रौद्र रूप - बाढ़ । आज हमने नदियों पर तमाम बाँध बनाकर उनकी निरंतर बहने की प्रवृत्ति को रोकने की कोशिश की है । यदि हम किसी के स्वभाव से छेड़छाड़ करेंगे तो दुष्परिणाम ही मिलेगा । हमने इन नदियों के किनारों के जंगली झाड़ियों , घास के मैदानों को नष...

व्यावहारिक कौशल

आज दौर ऐसा नहीं है, जिसमें आप सिर्फ विवेकपूर्ण डिग्री और तकनीकी ज्ञान के बाद ही किसी अच्छी नौकरी के लिए योग्य हो जाएं।  वर्तमान में साफ्ट स्किल पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।  इसी कारण आज लगभग 75 प्रतिशत व्यक्ति ज्यादा सफल माने जाते हैं।  जीवन में मनुष्य की इन्हीं व्यक्तिगत विशेषताओं जैसे - संवाद, भाषा, आत्मविश्वास और सकारात्मक गुणों के बारे में जाना जाता है।  आज इसे 'इंप्लाइंग स्किल्स' या 'की स्किल्स' भी कहते हैं।  यह वे व्यावहारिक गुण है जो हमें भीड़ से अलग करते हैं।  इसमें यह माना जाता है कि हम किस तरह का संवाद कर सकते हैं, प्रेजेंटेशन व रिपोर्ट तैयार करते हैं, समस्याओं को सुलझा सकते हैं, टीम के साथ काम कर सकते हैं, तनाव से निपट सकते हैं, नए सीख सकते हैं व समय के अनुकल हैं।  खुद को बदल सकते हैं।  आज के आर्थिक युग में कंपनियों को लगता है कि सॉफ्ट स्किल्स वाले लोग ही उन्नति में बेहतर योगदान दे सकते हैं और विश्व स्तरीय स्पर्धा में भी शामिल हो सकते हैं।  आविष्कारो से भी साबित हो चका है कि जिन लोगों का उत्कृष्ट प्रदर्शन रहा है, उनमें स...

मोबाइल और इंटरनेट के बिना

जैसे रोशनी की तरह बिन सूरज  पानी बिन चाँद  वैसे मोबाइल बिन हम जै पंख विहीन पंक्षी  दन्त विहीन हस्ती  वैसे मोबा जैसे रोशनी की तरह बिन सूरज  पानी बिन चाँद  वैसे मोबाइल बिन हम जै पंख विहीन पंक्षी  दन्त विहीन हस्ती  वैसे मोबाइल बिन हम  जैसे हृदय बिन धड़कन  पुर्जो बिन मशीन  वैसे इंटरनेट बिन हम  जैसे पानी बिन बादल  खुशबू बिन फूल  वैसे मोबाइल बिन हम Thanks for read इल बिन हम  जैसे हृदय बिन धड़कन  पुर्जो बिन मशीन  वैसे इंटरनेट बिन हम  जैसे पानी बिन बादल  खुशबू बिन फूल  वैसे मोबाइल बिन हम Thanks for read

अपठित गद्यांश class 9 cbse board hindi

महानगरीय जीवन में प्राय : ऐसा होता है कि हम लंबे समय तक अपने निकट के पड़ोसियों का चेहरा तक नहीं देख पाते । बस कुछ आवाजें हमें उनसे जोड़ती रहती हैं । कुछ साल पहले की बात है । जब मैं एक बार एक सोसायटी में किराए पर रहने गया , तो सुबह - शाम एक स्त्री के पूजा करने और भजन गाने की तेज़ आवाज सुनाई पड़ती थी । ऐसा लगता था कि वह महिला इस बात से बेपरवाह है कि उसकी आवाज आसपास भी पहुँच । रही है और लोगों की दिनचर्या में व्यवधान डाल रही है । समझ में नहीं आता था कि आवाज़ किस फ्लैट से आती है । शुरू - शुरू में तो उसके बेसुरे भजन पर हँसी और गुस्सा भी आया कि आखिर वह कैसी महिला है जिसे इस बात की चिंता ही नहीं है कि लोग क्या कहेंगे । खैर , एक दिन पता चला कि वह ठीक सामने वाले फ्लैट में ही रहती है । मेरी पत्नी ने बताया कि वह दिनभर पूजा - अर्चना में लगी रहती है । कभी ज़ोर - जोर से मंत्रोच्चार करती है तो कभी भजन गाने लगती है । उत्सुकतावश मैंने अपनी बॉलकनी से उन लोगों को देखा । मेरे सामने पति - पत्नी और दो बच्चों का एक खुशहाल परिवार था । अगले दिन मेरी छुट्टी थी । उस दिन एक विचित्र बात हुई । उस महिला ने प्रार्थना...