नदियों का निरादर

आज देश के सामने नदियों के अस्तित्व का बड़ा सवाल खड़ा है । कारण , देश की 70 फीसदी नदियाँ प्रदूषित हैं और मरने के कगार पर हैं । यह उस देश में हो रहा है , जहाँ नदियों के किनारे बड़े - बड़े नगर सभ्यताएँ विकसित हुई हैं , जहाँ कुंभ जैसे विशाल मेले लगते हैं । जहाँ वेदकाल से नदियों , पहाड़ों , जंगलों , पशु - पक्षियों के सह - अस्तित्व की बात कही गई है । विकास और उपभोग की प्रवृत्ति ने प्रकृति के ताने - बाने को छिन्न - भिन्न कर डाला है । सबसे पूज्य नदियाँ गंगा - यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के लिए हमने 15 अरब रूपए खर्च किए , फिर भी उनकी हालत बदतर है । कहते हैं , पानी अपना रास्ता खुद तलाश लेता है । आखिर , क्यों तलाशना पड़ता है , पानी को रास्ता ? उत्तर स्पष्ट है - उसे कहीं । रोका जा रहा है या फिर उसे रास्ता नहीं दिया जा रहा है और इसी की परिणति है - पानी का रौद्र रूप - बाढ़ । आज हमने नदियों पर तमाम बाँध बनाकर उनकी निरंतर बहने की प्रवृत्ति को रोकने की कोशिश की है । यदि हम किसी के स्वभाव से छेड़छाड़ करेंगे तो दुष्परिणाम ही मिलेगा । हमने इन नदियों के किनारों के जंगली झाड़ियों , घास के मैदानों को नष्ट कर दिया , वहाँ खेती करना शुरू कर दिया या फिर बसना शुरू कर दिया । उसी का नतीजा सामने है । जो जंगल , वृक्ष , मिट्टी को जकड़े हुई थी , वो जकड़न खत्म हो गई । परिणाम स्वरूप जल - धाराओं ने किनारों को काटना शुरू कर दिया । आज बाढ़ आना सामान्य बात हो गई है । ये विकराल रूप धारण कर रही है , क्योंकि पहाड़ों पर कटते हुए जंगल की वजह से , मैदानी क्षेत्रों में नदियों के किनारे खेती होने से इन नदियों के भीतर सिल्ट और मिट्टी इकट्ठी होती जा रही है । इनकी गहराई समाप्त होती जा रही है , तो बाढ़ की स्थिति पैदा ही होगी । हमने छोटी नदियों को लगभग समाप्त कर दिया है , उनके किनारों पर मनुष्य ने कब्जा कर लिया है । ये छोटी नदियाँ बारिश के पानी को संरक्षित रखने के अतिरिक्त पूरे वर्ष जानवरों के लिए तथा सिंचाई के लिए जल की उपलब्धता बनाए रखती थीं और बड़ी नदियों को पोषित भी करती थीं , ताकि वह जल सागर तक पहुँच सके । अगर इन नदियों को इनका रास्ता मिल जाए , इनके किनारों को छेड़ा न जाए तो कभी नाराज नहीं होगी , सिर्फ बारिश के दिनों में थोड़ा नुकसान कर सकती हैं । तब ये अबाध गति से आगे बढ़ते हुए , मिट्टी को उपजाऊ बनाते हुए हमें तोहफा ही देंगी । बांधों के निर्माण ने कहीं - कहीं तबाही और बढ़ा दी है । जब पानी के दबाव में बांध टूटते है तो सुरक्षित इलाकों में भी भयंकर तबाही मचती है । कुल मिलाकर यदि हम नदियों के सिकुड़ते किनारों को रोक लें , प्रदूषण न फैलायें , इनके रास्तों को इनकी गहराई दें , तो ये नदियाँ भागती हुई सागर से मिलने को आतुर दिखाई देंगी और सदा के लिए भारतीय नक्शे पर कायम रहेंगी ।

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