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साना-साना हाथ जोड़ि में कहा गया है कि कटाओ पर किसी दुकान का न होना वरदान है, ऐसा क्यों? भारत के अन्य प्राकृतिक स्थानों को वरदान बनाने में नवयुवकों की क्या भूमिका हो सकती है? स्पष्ट कीजिए।

अपनी प्राकृतिक सुन्दरता के कारण कटाओ को भारत का स्विट्जरलैण्ड कहा जाता है या यो भी कह सकते हैं कि यह उससे भी कहीं अधिक सुन्दर है। इसकी यह सुन्दरता इसलिए भी विद्यमान है क्योंकि यहाँ एक भी दुकान नहीं है। क्योंकि दुकानें प्रदूषण फैलाने का एक जरिया बन जाती हैं। लोग सामान खरीदते और कचरे को वहीं पड़ा छोड़ देते; जिसके कारण इसकी सुन्दरता नष्ट हो जाती। दुकानदार भी इस और कोई ध्यान नहीं देते। बिखरा कचरा गंदगी को बढ़ावा देता है। जिससे अन्य सैलानियों को भी गंदगी का सामना करना पड़ता है। भारत के अन्य प्राकृतिक स्थानों को भी इसी के समान सुन्दर बनाने के लिए नवयुवकों के द्वारा जनजागरण के कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए। प्रकृति का महत्व समझाया जाए जिसके माध्यम से प्राकृतिक स्थानों के महत्व को स्पष्ट किया जाना चाहिए। लोगों को यह समझाना चाहिए कि उन्हें प्राकृतिक सौन्दर्य को बर्बाद नहीं करना चाहिए अपितु प्राकृतिक संपदा का समुचित उपयोग सिखाया जाए जिससे आने वाली पीढ़ी इसका सदुपयोग कर सके।

आज की पत्रकारिता आम जनता विशेषकर युवा पीढ़ी पर क्या प्रभाव डालती है?

आज की पत्रकारिता युवा पीढ़ी पर निम्नलिखित प्रभाव डालती है a. आज की युवा पीढ़ी नए चकाचौंध से तुरत प्रभावित होती है। यदि सामने वाला व्यक्ति पश्चिमी सभ्यता से ज्यादा प्रभावित है तो स्वाभाविक रूप से वह युवा उनके रहन-सहन का वर्णन करेगा जिसका प्रभाव उसके जीवन पर भी स्वाभाविक रूप से परेगा ही। b. इससे समाज का संतुलन बिगड़ने और आदर्शों को नुकसान पहुंचने का डर रहता है। इस तरह की पत्रकारिता युवा पीढ़ी को भ्रमित एवं कुंठित करती है। जैसा सर्विदित है कि युवा पीढ़ी देश की रीढ़ है, उसके कमजोर होने से देश का संतुलन बिगड़ जाएगा युवा पत्र-पत्रिकाओं को पढ़कर चर्चित हस्तियों के खान-पान एवं पहनावे को अपनाने पर मजबूर हो जायेंगे। वे अपनी इन इच्छाओं की पूर्ति के लिए उचित-अनुचित मार्ग अपनाने में भी संकोच नहीं करेंगे। इससे दिखावा, बनावटीपने और हिंसा आदि बढ़ेगी, क्योंकि पत्रकारिता दबंग और अपराधी छवि वाले व्यक्तियों को नायक की तरह प्रस्तुत करती है।

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'माता का आँचल' पाठ के आधार पर भोलानाथ के बाबू जी के पूजा-पाठ की रीति पर टिप्पणी कीजिये।

भोलानाथ के बाबू जी रोज प्रातः काल उठकर अपने दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर नहाकर पूजा करने बैठ जाते ये रामायण का पाठ करते पूजा-पाठ करने के बाद वे राम-नाम लिखने लगते अपनी रामनामा बही पर हजार राम नाम लिखकर वे उसे पाठ करने की पोथी के साथ बाँधकर रख देते। इसके बाद पाँच सौ बार कागज के छोटे-छोटे टुकड़ों पर राम-नाम लिखकर उन्हें आटे की गोलियों में लपेटते और उन गोलियों को लेकर गंगा जी की ओर चल पड़ते। वहां एक-एक आटे की गोलियों को मछलियों को खिलाने लगते इससे हमें यह प्रेरणा मिलती है कि हमें सभी जीवों पर दया दिखानी चाहिए। मछलियों को आटे की गोलियां खिलाना, चींटी, गाय, कुत्ते, आदि सभी को भोजन देना चाहिए तथा सभी जीवों के प्रति प्रेम की भावना रखनी चाहिए।

उन 'घटनाओं को याद करके लिखिए जब आपने अन्याय का प्रतिकार किया हो।

मैंने अन्याय का प्रतिकार किया है। ऐसा अवसर मेरी जिन्दगी में अपने विद्यार्थी जीवन में अपनी 8वीं कक्षा की पढ़ाई करने के दौरान आया मुझे अपने विद्यालय के ठीक ठाक छात्र होने पर उस वर्ष की आगामी सरस्वती पूजन हेतु राशि एकत्र करने का मुख्य जिम्मा सौंपा गया था। मैंने खुशी-खुशी विभिन्न कक्षाओं में जा जाकर राशि एकत्र करनी शुरू की। जब राशि पूर्ण होने को आई तब अचानक हमारे क्लास टीचर ने मुझसे कैम्पस के अन्दर ही उचित स्थान पर सारे पैसे ले लिये और उन्होंने मुझे अब आगे चन्दा एकत्र करने के प्रभार से मुक्त कर दिया। उनका मेरे एक बच्चा होने के कारण मुझ पर विश्वास नहीं था कि यह बच्चा इस दायित्व को निभा नहीं पाएगा। मैं अन्दर ही अन्दर बहुत अधिक व्यथित हो गया। इस बात पर नहीं कि चंदा एकत्रित करने से मुझे रोक दिया गया है बल्कि इस कारण कि मुझे बच्चा समझने पर रोक दिया गया। इस कारण रो पड़ा और व्यथित हो गया। प्रतिकार के रूप में मैंने अन्य शिक्षकों और अन्य लोगों से इसके बारे में शिकायत दर्ज कराई।

लेखक के स्मृति पटल पर उस संन्यासी के कौन-कौन से चित्र बार-बार उभरते हैं? मानवीय करुणा की दिव्य चमक पाठ के आधार पर लिखिए।

'मानवीय करुणा की दिव्य चमक पाठ के आधार पर लेखक के स्मृति पटल पर सन्यासी फादर बुल्के के अनेक चित्र उभर कर सामने आते हैं। जो लेखक के मन मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ते हैं। फादर का प्रभावशाली व्यक्तित्व- गोरा रंग, नीली आंखें, भूरी दाढी, लंबा कद, सफेद चोगा उन्हें उनकी सादगी की याद दिलाता है। फादर के अंदर मानवीय गुणों का भंडार था। वह प्रेम और करुणा की सजीव मूर्ति थे सन्यासी होकर भी संबंधों की अंतरंगता को बनाए रखते थे। प्रिय जनों के प्रति प्रेम, स्नेह, अपनत्व की भावना उनके अंदर समाई हुई थी। हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखने की उनकी तीव्र इच्छा थी। उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से शोध प्रबंध 'रामकथा: उत्पत्ति और विकास की रचना की। वे सुख में शुभाशीष तथा दुख में सांत्वना के जादू भरे शब्दों से दूसरों को शांति प्रदान करने का अद्भुत गुण रखते थे। यही बातें लेखक के स्मृति पटल पर बार बार घूमती हैं।

चौराहे पर लगी मूर्ति के प्रति आपके एवं दूसरे लोगों के क्या उत्तरदायित्व होने चाहिए?

चौराहे पर लगी मूर्ति के प्रति हमारे तथा अन्य लोगों के निम्नलिखित उत्तरदायित्व होने चाहिए - 1. हमें उस मूर्ति का सम्मान करना चाहिए। 2. मूर्ति की सुरक्षा करनी चाहिए। 3. समय-समय पर वहाँ इस प्रकार के आयोजन करवाने चाहिए जिससे भावी पीढ़ी उनके कार्यों को जान सके। 4. उनकी देखभाल की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।