भोलानाथ बचपन में कैसे-कैसे नाटक खेला करता था? इससे उसका कैसा व्यक्तित्व उभरकर आता है ?

भोलानाथ बचपन में तरह-तरह के नाटक खेला करते थे। चबूतरे का एक कोने को ही नाटकघर बना लिया जाता था। बाबूजी जिस छोटी चौकी पर बैठकर नहाते थे, उसे रंगमंच के रूप में काम में लिया जाता था। सरकंडे के खम्भों पर कागज का चंदोआ उस रंगमंच पर तान दिया जाता था। वहीं पर मिठाइयों की दुकान लगाई जाती इस दुकान में चिलम के खोचे पर कपड़े के थालों में ढले के लड्डू, पत्तों की पूरी कचौरिया, गीली मिट्टी की जलेबियाँ, फूटे घड़े के टुकड़ों के बताशे आदि मिठाइयाँ सजाई जातीं। ठीकरों के बटखरे और जस्ते के छोटे टुकड़ों के पैसे बनते। इससे भोलानाथ का यह व्यक्तित्व उभरकर आता है कि वह घर की अनावश्यक वस्तुओं को ही खिलौने बना लेते थे। आज की तरह वे दिखावे से कोसों दूर थे।भोलानाथ बचपन में तरह-तरह के नाटक खेला करते थे। चबूतरे का एक कोने को ही नाटकघर बना लिया जाता था। बाबूजी जिस छोटी चौकी पर बैठकर नहाते थे, उसे रंगमंच के रूप में काम में लिया जाता था। सरकंडे के खम्भों पर कागज का चंदोआ उस रंगमंच पर तान दिया जाता था। वहीं पर मिठाइयों की दुकान लगाई जाती इस दुकान में चिलम के खोचे पर कपड़े के थालों में ढले के लड्डू, पत्तों की पूरी कचौरिया, गीली मिट्टी की जलेबियाँ, फूटे घड़े के टुकड़ों के बताशे आदि मिठाइयाँ सजाई जातीं। ठीकरों के बटखरे और जस्ते के छोटे टुकड़ों के पैसे बनते। इससे भोलानाथ का यह व्यक्तित्व उभरकर आता है कि वह घर की अनावश्यक वस्तुओं को ही खिलौने बना लेते थे। आज की तरह वे दिखावे से कोसों दूर थे।

Comments

Popular posts from this blog

Class 11 & 12 project file front page download project file photo pdf

Class 12 Political science Board Exam question paper 2023 set no. 2 CBSE BOARD