"क्या है कोरोना वायरस, क्या हैं इसके लक्षण..

कोरोना वायरस के कहर से मरने वालों की संख्या 259 को पार कर गई है. अब तक 22 देशों में इसके संक्रमण के करीब 11800 मामले सामने आए हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन पहले ही इसे इमर्जेंसी घोषित कर चुका है. भारत में भी अब तक इसके दो मामले सामने आए हैं.
स्वास्थ्य अधिकारियों के लिए इसे फैलने से रोकना एक बड़ी चुनौती बन गई है. हालांकि, चीन इसे रोकने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रहा है. दुनिया भर में कोरोना वायरस के केस लगातार सामने आने के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्लूएचओ ने कोरोना वायरस को अंतर्राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया है.

☞"चीन से बाहर 22 देशों में कोरोना वायरस के कई मामलों की पुष्टि हुई है. इन देशों में थाईलैंड, जापान, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी और संयुक्त अरब अमीरात शामिल हैं.

✅️"क्या है कोरोना वायरस...?

☞"कोरोना वायरस (सीओवी) का संबंध वायरस के ऐसे परिवार से है, जिसके संक्रमण से जुकाम से लेकर सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्या हो सकती है. इस वायरस को पहले कभी नहीं देखा गया है. इस वायरस का संक्रमण दिसंबर में चीन के वुहान में शुरू हुआ था. डब्लूएचओ के मुताबिक, बुखार, खांसी, सांस लेने में तकलीफ इसके लक्षण हैं. अब तक इस वायरस को फैलने से रोकने वाला कोई टीका नहीं बना है.

✅️"क्या हैं इस बीमारी के लक्षण....?

☞"इसके संक्रमण के फलस्वरूप बुखार, जुकाम, सांस लेने में तकलीफ, नाक बहना और गले में खराश जैसी समस्या उत्पन्न होती हैं. यह वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है. इसलिए इसे लेकर बहुत सावधानी बरती जा रही है. यह वायरस दिसंबर में सबसे पहले चीन में पकड़ में आया था. इसके दूसरे देशों में पहुंच जाने की आशंका जताई जा रही है.

✅️"क्या हैं इससे बचाव के उपाय....?

☞"स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय ने कोरोना वायरस से बचने के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं. इनके मुताबिक, हाथों को साबुन से धोना चाहिए.

☞"अल्‍कोहल आधारित हैंड रब का इस्‍तेमाल भी किया जा सकता है. खांसते और छीकते समय नाक और मुंह रूमाल या टिश्‍यू पेपर से ढककर रखें.

☞" जिन व्‍यक्तियों में कोल्‍ड और फ्लू के लक्षण हों उनसे दूरी बनाकर रखें.

☞"अंडे और मांस के सेवन से बचें. जंगली जानवरों के संपर्क में आने से बचें.

☞" अजीबोगरीब जंगली जीव
चीन में इस वायरस के चलते पर्यटकों की संख्या घट सकती है. इसका सीधा असर चीन की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा. पहले ही चीन की अर्थव्यवस्था सुस्ती के दौर में है.
कई देशों ने अपने नागरिकों से कोरोना प्रभावित वुहान नहीं जाने के लिए कहा है. कई देशों ने वुहान से आने वाले लोगों पर भी प्रतिबंध लगा दिया है. रूस ने चीन के साथ अपने पूर्वी बॉर्डर को भी बंद कर दिया है.

☞"लगभग 18 साल पहले सार्स वायरस से भी ऐसा ही खतरा बना था. 2002-03 में सार्स की वजह से पूरी दुनिया में 700 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी. पूरी दुनिया में हजारों लोग इससे संक्रमित हुए थे. इसका असर आर्थिक गतिविधियों पर भी पड़ा था.


कोरोना वायरस के लक्षणों में नाक बहना, खांसी, गले में खराश, कभी-कभी सिरदर्द और बुखार शामिल है, जो कुछ दिनों तक रह सकता है।

कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों के लिए यह घातक है। बुजुर्ग और बच्चे इसके आसान शिकार हैं।

 निमोनिया, फेफड़ों में सूजन, छींक आना, अस्थमा का बिगड़ना भी इसके लक्षण हैं।
क्या है इसका इलाज

इसका अभी तक कोई इलाज नहीं है। न तो कोरोना वायरस ( CoV ) की कोई वैक्सीन बनी है और न ही 2019-nCoV की। इससे बचने का यही तरीका है कि ऐहतियात बरतें। किसी बीमार, झुकाम, निमोनिया से ग्रसित व्यक्ति के संपर्क में आने से बचें।

 मास्क पहनें। अपनी आंखों, नाक और मुंह को न छुएं। हाथों को बार बार अच्छे से साबुन से धोएं।
बचने के उपाय

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने अथवा उसे कम करने के लिए कुछ एहतियात बरतने को कहा है, जिसे संयुक्त राष्ट्र ने भी ट्वीट किया है। ट्वीट में कोरोना वायरस के संक्रमण के खतरे को कम करने के उपाय बताए गए हैं।

एडीसन का पूरा नाम थॉमस एल्वा एडीसन था

प्रस्तावना:- प्रस्तुत पाठ में बच्चों को महान् वैज्ञानिक टामस एल्वा एडीसन की जीवनी तथा उनके द्वारा किए गए आविष्कारों के विषय में जानकारी दी गई है ।

एडीसन एकमात्र ऐसे वैज्ञानिक हुए हैं जिन्होंने 1000 से अधिक आविष्कार किए । आओं देखें कि बचपन मे अच्छा स्वास्थ्य न होने पर भी एडीसन इतने महान वैज्ञानिक कैसे बने । आज मानव विज्ञान के युग में रह रहा है । विज्ञान ने मानव के जीवन को सरल एवं सुगम बना दिया है । बिजली , मोटर , टेलीविजन , टेलिफोन , रेडियो , वायुयान , जलयान , रॉकेट उपग्रह , कंप्यूटर और न जाने कितनी वस्तुएँ विज्ञान की ही देन है । आज हम इनके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते । इस समय भी जब आप यह पुस्तक पढ़ रहे होंगे , संसार के विभिन्न देशों में विज्ञान के नए - नए आविष्कार हो रहे होंगे । बच्चो ! विज्ञान के क्षेत्र में एक ऐसा भी वैज्ञानिक हुआ है जिसके अदभत कारनामों से संसार चकित रह गया । उस वैज्ञानिक का नाम था — एडीसन ।

 एडीसन का पूरा नाम थॉमस एल्वा एडीसन था । उसका जन्म अमेरिका के मलीन नामक शहर में 11 फरवरी , सन् 1847 में हुआ था । उसके पिता का नाम सैमुअल एडीसन था । वह सेना में नौकरी करते थे । एडीसन की माता का नाम लैंसी इलियट था , जो एक विद्यालय में अध्यापिका थीं । बचपन में एडीसन का स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता था । किंतु उनकी बुद्धि तेज तथा शक्ति अद्वितीय थी । वह हर वस्तु को बड़ी ध्यान से देखता और उसके विषय में जानने का प्रयत्न करता । वह बार - बार प्रश्न करता और जब तक उत्तर से संतुष्ट न हो जाता , तब तक पूछता रहता था । उसके कुछ प्रश्न तो इतने अटपटे होते कि लोगों को क्रोध आ जाता । ऐसी ही एक घटना का वर्णन हम यहाँ कर रहे हैं ।

 एक बार कक्षा में अध्यापिका बच्चों को पक्षियों के बारे में कुछ बता रही थी । तभी एडीसन ने खड़े होकर उनसे प्रश्न पूछा - " मैडम ! हम पक्षियों की तरह क्यों नहीं उड़ सकते ? " अध्यापिका ने उत्तर दिया - " क्योंकि हमारे पंख नहीं होते , जबकि पक्षियों के पंख होते हैं । एडीसन इस उत्तर से संतुष्ट नहीं हुआ । उसने फिर पूछा " मैडम ! पंख तो पतंग के भी नहीं होते । फिर वह कैसे . उड़ती है ? ऐसा अटपटा प्रश्न सुनकर सारे बच्चे खिलखिलाकर हँसने लगे । अध्यापिका को क्रोध आ गया । उन्होंने सोचा कि एडीसन ने यह प्रश्न उन्हें चिढ़ाने के लिए पूछा था । परिणाम यह हुआ कि एडीसन को विद्यालय से निकाल दिया गया । इस घटना के समय एडीसन की आयु केवल आठ वर्ष की थी । इसके बाद वह विद्यालय नहीं गया । उनकी शिक्षा घर पर ही माता की देख - रेख में हुई । बचपन में एडीसन को जेब खर्च के जो पैसे मिलते उनसे वह खिलौने खरीदता और उन पर वह विज्ञान के परीक्षण करता । पुत्र के इस शौक को देखकर उसकी माता बड़ी प्रसन्न होती । उसे अपने पुत्र से बड़ी - बड़ी आशाएँ थी , इसलिए वह एडीसन को सदा प्रोत्साहित करती रहती थीं । जैसे - जैसे एडीसन बड़ा होने लगा , वैसे - वैसे उसकी आवश्यकतााएँ भी बढ़ने लगी । वह नए नए प्रयोगों के लिए और सामान खरीदना चाहता था । परंत उसके माता - पिता की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि उस और पैसा है सके । इसलिए एडीसन ने बारह वर्ष की आय में रेलगाडी में सब्जी तथा समाचार - पत्र बचना प्रारंभ कर दिया ।

 समय का सदुपयोग करने के लिए उसने रेलगाड़ी में एक छोटी - सी प्रयोगशाला बना ली । एक बार प्रयोगशाला में परीक्षण करते समय रेलगाड़ी के डिब्बे में आग लग गई । क्रोध में आकर गार्ड ने एडीसन को कनपटी पर इतना जोर से घुसा मारा कि वह एक कान से बहरा हो गया । यह बहरापन स्थाई हो गया और एडीसन को जीवन भर एक कान से कम सनाई देने लगा । जब एडीसन बड़े हुए तो उन्हें नए - नए प्रयोगों के लिए काफी धन की आवश्यकता पड़ी । धन की पूर्ति के लिए वे न्यूयॉर्क चले गए । वहाँ उनके एक मित्र ने उन्हें एक कारखाने में नौकरी दिला दी । एक दिन अचानक कारखाने की मख्य मशीन में कुछ खराबी आ गई । कारखाने के इंजीनियरों तथा मिस्त्रियों ने बहुत प्रयत्न किए लेकिन वे मशीन को ठीक न कर सके । कारखाने का सारा कारोबार ठप्प हो गया । तब एडीसन ने मैनेजर से मशीन ठीक करने की अनमति माँगी । एडीसन ने अपनी कुशलता का परिचय देते हुए मशीन को तुरंत ठीक कर दिया । एडीसन के इस कार्य में प्रसन्न होकर मैनेजर ने उसे सभी कर्मचारियों का इंचार्ज बना दिया । एडीसन का मासिक वेतन भी बढ़ाकर 300 डॉलर कर दिया । थोडे दिनों बाद ही एडीसन ने संकेत भेजने की एक ऐसी मशीन का आविष्कार किया कि लोग उसे देखकर दंग रह गए । इस अद्भुत आविष्कार के लिए उन्हें चालीस हजार डॉलर पुरस्कार में मिले । धीरे - धीरे एडीसन की आर्थिक समस्या हल होती चली गई ।

 उन्होंने एक निजी प्रयोगशाला स्थापित कर ली और भाँति - भाँति के प्रयोग करने लगे । अगले कुछ वर्षों में उन्होंने कई आविष्कार किए , जिससे उन्हें धन के साथ - साथ प्रतिष्ठा की भी प्राप्ति हुई । धन का उपयोग एडीसन ने मैंग्लोपार्क में एक विशाल कारखाने की स्थापना में किया । इस कारखाने में वह नित्य नए यंत्र बनाने लगे । उनके नित्य नए यंत्र को देखकर लोग एडीसन को ' मैंग्लोपार्क का जादूगर कहने लगे । गो गाई या एडीसन में एक विशेषता यह थी कि वे अपने कर्मचारियों के साथ मित्रों जैसा बर्ताव करते थे । वे उनके साथ भोजन करते तथा उनके कार्यक्रमों में भाग लेते । मालिक और नौकर में कोई भेद भाव नहीं था । _ _ _ एडीसन प्रतिदिन बीस - बीस घंटे काम करते थे । उन्हें नए आविष्कार करने की इतनी चाह थी कि रबड़ के पौधों की खोज के लिए 80 वर्ष की आयु में उन्होंने वनस्पति शास्त्र का गहन अध्ययन किया । उन्हें अपने उद्देश्य में सफलता भी मिली ।

 उन्होंने अमेरिका में ही उगने वाला एक ऐसा पौधा खोज निकाला , जिसके रसीले पदार्थ से रबड़ बनाई जा सके । एडीसन के महत्त्वपूर्ण आविष्कारों में एक आविष्कार था ग्रामोफोन का । एडीसन इसे - ' बोलने वाली मशीन ' कहते थे । ग्रामोफोन की विश्व भर में इतनी चर्चा हुई कि स्वयं अमेरिका के राष्ट्रपति ने इसे देखने और सुनने की इच्छा प्रकट की । एडीसन ने राष्ट्रपति भवन जाकर उनके सामने मशीन क गुणों का प्रदर्शन किया । ग्रामोफोन के आविष्कार से एडीसन का नाम सारे संसार में प्रसिद्ध हो गया ।

 एडीसन को जिस आविष्कार के लिए सबसे अधिक जाना जाता है , वह है बिजली के बल्ब का आविष्कार । इसका आविष्कार उन्होंने सन् 1879 में किया । जिस समय एडीसन बिजली के बल्ब के आविष्कार पर प्रयोग कर रहे थे , तो अनेक वैज्ञानिकों ने उनकी खिल्ली उड़ाई । उनका मानना था कि बिजली से प्रकाश उत्पन्न करना संभव नहीं है । परंतु एडीसन अपने काम में लगे रहे । कई वर्षों परिश्रम तथा एक हजार से भी अधिक प्रयोग करने के बाद अन्ततः उन्हें सफलता मिल ही गई । जनवरी सन् 1880 में अपनी प्रयोगशाला में पहली बार बिजली का बल्ब जलाकर एडीसन ने मानों सारे संसार को जगमगा दिया हो ।

एडीसन के आविष्कारों की सूची में एक हजार से भी अधिक आविष्कार शामिल हैं । इसी कारण उन्हें ' फादर ऑफ इवेंशन ' के नाम से भी जाना जाता है । 84 वर्ष की आयु में सन् 1931 में संसार को प्रकाश देने वाली यह ज्योति सदा के लिए बुझ गई । किंतु मानव - कल्याण के लिए उन्होंने जो आविष्कार किए , वे संसार को सदा प्रकाशमान करते रहेंगे ।

परिवार नियोजन पर निबंध लेखन । Essay writing on family planning

संकेत बिंदु : 1 . भयावह आँकड़े 2 . समस्याओं की जननी 3 . परिवार कल्याण योजना 4 . भारत सरकार का सहयोग 5 . उपसंहार

भयावह आँकड़े - भारत में जनसंख्या वृद्धि दर 2 . 4 प्रतिशत है जो देखने में तो कम लगती है परंतु परिणाम बड़े गंभीर देती है । इसका मुख्य कारण यह है कि यहाँ लगभग 73 प्रतिशत जनसंख्या प्रजनन योग्य है । तुलनात्मक दृष्टिकोण से भारत की जनसंख्या में केवल एक दशक में जापान की जनसंख्या के बराबर बढ़ोतरी हो जाती है . भारत की एक दशक में बढ़ी हुई जनसंख्या ब्रिटेन की जनसंख्या की दुगुनी , फ्रांस की जनसंख्या की तीन गुनी , कनाडा की जनसंख्या की पाँच गुनी , अमेरिका की आधी जनसंख्या के बराबर है । प्रत्येक चार वर्ष में भारत की जनसंख्या इंग्लैंड की जनसंख्या के बराबर बढ़ जाती है । भारत की जनसंख्या वृद्धि की यह भयावह स्थिति केवल भारत में ही नहीं वरन संपूर्ण विश्व भर में सनसनी फैला रही है । प्रायः भारत में जनसंख्या वृद्धि के वही कारण हैं जो प्रत्येक अल्पविकसित देश के संबंध में बताए जाते हैं ।

समस्याओं की जननी - ऋग्वेद का यह कथन पूर्णरूपेण सत्य है कि , " जहाँ प्रजा का आधिक्य होगा , वहाँ निश्चय ही दुख और कष्ट की मात्रा भी अधिक होगी । " आज भारत की बढ़ती जनसंख्या ने अनेक आर्थिक , सामाजिक , राजनीतिक समस्याओं को जन्म दिया है , यही कारण है भारत में चहुँ ओर निराशा , अशिक्षा , निर्धनता , बेरोजगारी , भूख , नैतिक पतन , सामाजिक व पारिवारिक कलह , निम्न स्वास्थ्य , आतंकवाद , उग्रवाद ही दिखाई पड़ रहा है ।

परिवार कल्याण योजना - छोटे परिवार को आदर्श परिवार के रूप में स्वीकार करना ही परिवार नियोजन है । इसे स्वेच्छा से कानूनी परिवार के रूप में स्वीकार करना ही परिवार नियोजन है । यह स्वेच्छा , कानूनी या सामाजिक प्रेरणाओं से होता है - विवाहित दंपति द्वारा अपने परिवार को सीमित रखना व बच्चों के जन्म में समय - अंतराल को बढ़ाना ही परिवार नियोजन संबंधी सेवाओं - गर्भ - निरोधकों की उपलब्धि बढ़ाना , नलबंदी व नसबंदी को प्रोत्साहित करना व लोकप्रिय बनाना , परिवार नियोजन कार्यक्रम स्वीकार करने वाले नागरिकों को वित्तीय प्रोत्साहन देना व आत्म - संयम बरतने को प्रोत्साहित करना भी इसमें सम्मिलित है ।

भारत सरकार का सहयोग - परिवार नियोजन कार्यक्रम का मूल उद्देश्य था - जन्म दर को 40 प्रति हज़ार से घटाकर 21 प्रति हज़ार पर लाना तथा इसी उद्देश्य की प्राप्ति हेतु छोटे परिवार को आदर्श परिवार के रूप में स्वीकृत कराना , विवाहित दंपतियों को परिवार नियोजन के उपायों का बोध कराना तथा गर्भ निरोधकों को पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराना जैसे कार्यक्रमों को चलाया गया । इस संबंध में भारत सरकार ने परिवार नियोजन का संदेश घर - घर पहुँचाने हेतु जन - प्रचार के सभी माध्यमों समाचार - पत्रों , पत्रिकाओं , रेडियो , दूरदर्शन , फ़िल्मों आदि का विस्तृत प्रयोग किया , ग्रामीण व नगरीय सभी क्षेत्रों में गर्भ - निरोधकों का संभरण ( सप्लाई ) बढ़ाया ।

उपसंहार - भारत की जनता का अशिक्षित होना , रूढ़िवादिता , धार्मिक संस्कार आदि कारणों से परिवार नियोजन कार्यक्रम के वांछित परिणाम नहीं मिल पा रहे हैं । इसमें सुधार किए बिना शून्य जनसंख्या वृद्धि दर के मूल लक्ष्य तक पहुँचना कठिन हो जाएगा ।

युवा पीढ़ी में असंतोष पर निबंध लेखन । Essay writing on dissatisfaction among younger generation

संकेत - बिंदु : 1 . भूमिका 2 . असंतोष का कारण एवं निदान 3 . उपसंहार

भूमिका - वास्तव में दिशाविहीन युवा पीढ़ी को अपने लक्ष्य का बोध शिक्षा कराती है किंतु आज की शिक्षा इस उद्देश्य की पूर्ति में मापदंड के घट जाने से लाचार - सी हो गई है । आज शिक्षा पाकर भी युवा वर्ग बेकारी की भट्टी में झुलस रहा है । वह न अपना ही हित सोच पा रहा है और न राष्ट्र का ही । इस स्थिति में असंतोष उसके हृदय में जड़े जमाता जा रहा है ।

असंतोष का कारण एवं निदान - इस असंतोष का मुख्य कारण आज की समस्याओं का सही समाधान न होना है । आज इस रोग से देश का प्रत्येक विश्वविद्यालय पीड़ित है । आज इस असंतोष के कारण युवा - शक्ति का उपयोग राष्ट्रहित में नहीं हो रहा है । युवा पीढ़ी में असंतोष के कारण निदान सहित इस प्रकार हैं : विद्यार्थी का कार्य अध्ययन के साथ - साथ राष्ट्र - जीवन का निर्माण करना भी है किंतु वह असंतोष में बह जाने से भटक जाता है । देश से प्रेम करना उसका कर्तव्य होना चाहिए । आज हृदयहीन शिक्षकों के कारण युवा - शक्ति उपेक्षा का विषपान कर रही है । आज सरकार की लाल फीताशाही विद्यार्थियों को और अधिक भड़का रही है । शिक्षा का दूसरा दोष उद्देश्य रहित होना है । आज का युवक , शिक्षा तो ग्रहण करता है किंतु वह स्वयं यह नहीं जानता कि उसे शिक्षा पूर्ण करने के बाद क्या करना है । स्वतंत्र व्यवसाय के लिए कोई शिक्षा नहीं दी जाती । आज सरकार को अध्ययन के उपरांत कोई प्रशिक्षण देकर विद्यार्थी को अपने कार्य में लगाना चाहिए ।
आज हृदयहीन शिक्षकों के कारण युवा - शक्ति उपेक्षा का विषपान कर रही है । आज सरकार की लाल फीताशाही विद्यार्थियों को और अधिक भड़का रही है । शिक्षा का दूसरा दोष उद्देश्य रहित होना है । आज का युवक , शिक्षा तो ग्रहण करता है किंतु वह स्वयं यह नहीं जानता कि उसे शिक्षा पूर्ण करने के बाद क्या करना है । स्वतंत्र व्यवसाय के लिए कोई शिक्षा नहीं दी जाती । आज सरकार को अध्ययन के उपरांत कोई प्रशिक्षण देकर विद्यार्थी को अपने कार्य में लगाना चाहिए । आज़ादी के बाद हमारे राष्ट्रीय कर्णधारों ने लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपनाया । ये नेता भ्रष्ट तरीकों से अनाप - शनाप धन व्यय कर शासन में पहुँचते हैं । फिर स्वयं को जनता का प्रतिनिधि न समझकर राजपुत्र समझते हैं । इस अकड़ को देखकर युवा पीढ़ी में आग भड़क उठती है । अत : नेता को नम्रतापूर्वक छात्रों को समझाकर किसी उत्पन्न समस्या का समाधान करना चाहिए ।
ये दोनों युवा पीढ़ी के लिए वरदान के साथ - साथ अभिशाप भी हैं । जहाँ एक विश्वविद्यालय के विद्यार्थी असंतुष्ट हुए , वहाँ समाचार - पत्रों एवं आकाशवाणी के माध्यम से यह खबर सभी जगह फैल जाती है , जिससे युवा पीढ़ी में आक्रोश भड़क उठता है । सरकार को ऐसे समाचार - पत्रों पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए । आज शासन सत्ता के विरोधी दल विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों को भड़काकर अपना उल्लू सीधा करने में लगे हैं ।

उपसंहार - आज युवा पीढ़ी में सांस्कृतिक संस्कारों का अभाव है जिनके कारण वे दूसरों को अपने से अलग समझकर उन पर आक्रोश करते हैं । अत : विश्वविद्यालयों में भी नैतिक शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए । आज के युग में भारत की शिक्षा प्रणाली विश्व में सबसे अधिक विकृत है । इसलिए हमारे राष्ट्र निर्माताओं को यह दृढ़ संकल्प कर लेना चाहिए कि वे विश्वविद्यालयों का सुधार करें ताकि युवा पीढ़ी में असंतोष न बढ़ सके ।

स्वतंत्र भारत में अंग्रेजी का मोह निबंध लेखन Essay writing on the temptation of English in independent India

संकेत - बिंदु : 1 . अंग्रेजी का वर्चस्व 2 . अंग्रेजी का बढ़ता प्रचलन 3 . हिंदीभाषी जनमानस 4 . हिंदी की दुर्दशा 5 . अंग्रेजी के पक्षधर 6 . संपर्क भाषा 7 . उपसंहार

अंग्रेज़ी का वर्चस्व - भारत को स्वतंत्र हए लगभग 66 वर्ष व्यतीत हो गए , किंतु भारत में अंग्रेजी का मोह निरंतर बढ़ता जा रहा है । भारत की राष्ट्रभाषा के पद पर हिंदी को प्रतिष्ठित करने का कार्य संविधान ने तो कर दिया , पर हमारे शोषस्थ नेताओं ने पहले पंद्रह वर्ष तक और फिर अनिश्चित काल तक हिंदी को वनवास दे दिया । सरकारी कामकाज की भाषा अंग्रेज़ी ही बनी हुई है । आज सभी स्थानों पर अंग्रेज़ी का वर्चस्व बना हुआ है । नवयुवकों में भी अंग्रेजी के प्रति मोह बढ़ता जा रहा है । आखिर ऐसा क्यों है ? ।

अंग्रेज़ी का बढ़ता प्रचलन - स्वतंत्र भारत में अंग्रेजी भाषा का व्यापक रूप से प्रचार क्यों हो रहा है ? अपने देश में 22 समृद्ध एवं संविधान स्वीकृत भाषाओं के रहते हुए भी विदेशी भाषा के प्रति इस अंधमोह का क्या कारण है ? स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमारे देश में अंग्रेज़ी के प्रति नई पीढ़ी में मोह बढ़ा है , और सामान्य व्यवहार में उसके प्रयोग में भी वृद्धि हुई है । छोटे - छोटे कस्बों और नगरों में अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों की बाढ़ - सी आ गई है । कॉन्वेंट नाम से घर - घर में स्कूल खुल गए हैं । यह अंग्रेज़ी के प्रति मोह का ही परिणाम है । दूसरी ओर यह आवाज भी बुलंद हो रही है कि हमारे विद्यालयों में अंग्रेजी भाषा का स्तर दिन - प्रतिदिन गिर रहा है । पहले जमाने के मैट्रिक परीक्षा पास छात्र के बराबर आज बी०ए० परीक्षा पास छात्र अंग्रेज़ी नहीं जानता । एक ओर अंग्रेजी का व्यापक प्रचार और दूसरी ओर अंग्रेज़ी ज्ञान के स्तर में गिरावट दोनों बातें एक - दूसरे के विपरीत हैं किंतु तथ्य यह हैं कि दोनों बातें सत्य हैं । प्रचार - प्रसार में बाढ़ है , ज्ञान - स्तर में गिरावट ।

 हिंदीभाषी जनमानस - कहते हैं कि भाषा व्यवहार से , बोलने और लिखने से आती है । आज के हमारे नवयुवक जो अंग्रेजी के मोहपाश में फँसे हैं और अपनी मातृभाषा की उपेक्षा कर अंग्रेजी बोलने में गौरव का अनुभव करते हैं . शुद्ध अंग्रेज़ी क्यों नहीं जानते ? कारण स्पष्ट है , अंग्रेज़ी का मोह तो उनमें है , किंतु शुद्ध एवं व्याकरणसम्मत परिमार्जित भाषा सीखने के लिए परिश्रम का अभाव है । भाषा ज्ञान के लिए जिस प्रकार के कठोर परिश्रम की अपेक्षा होती है , वह इन नवयुवकों में लक्षित नहीं होता । फलतः अंग्रेज़ी के नाम पर जिस भाषा का प्रयोग वे लोग करते हुए पाए जाते हैं , वह अंग्रेज़ी न होकर अंग्रेज़ी का विकृत रूप है । अंग्रेजों के खानसामे और मुंशी लोग भी इनसे अच्छी अंग्रेजी बोल लेते थे । विदेशी शासन जब किसी देश को जीतकर अपने शासन में लेते हैं तब वे सबसे पहले विजित देश की भाषा के स्थान पर अपनी भाषा को शासन की भाषा बनाते हैं । भाषा के माध्यम से विदेशी अपनी सभ्यता और संस्कृति की छाप विजित देश पर छोड़ते हैं । ब्रिटिश शासनकाल में अंग्रेज़ों ने अंग्रेज़ी भाषा को हमारे देश की शासन - भाषा बनाया था , जो अभी तक हमारे यहाँ प्रचलित है । अब हमारा देश स्वतंत्र है , अत : हमें अपने राष्ट्र की भाषाओं को अपनाना चाहिए । राष्ट्रीय गौरव और स्वाभिमान के लिए यह आवश्यक है ।

हिंदी की दुर्दशा - मातृभाषा के प्रति हीनभाव और अंग्रेज़ी के प्रति उच्चभाव हमारी मानसिक दासता का प्रतीक । है । हमारे मन में आज भी अंग्रेज़ी वेशभूषा , रहन - सहन , खान - पान एवं अंग्रेजी भाषा का आतंक बना हुआ है । हम अंग्रेज़ियत को अपनी झूठी शान और दिखावटी दंभ की भाषा बनाए हुए हैं । चिरकाल तक पराधीन रहकर हमने राष्ट्रीयता के विधायक तत्वों को ही भुला दिया है । आधुनिकता के मोह में हमें स्वभाषा , स्वसंस्कृति और स्वसाहित्य के प्रति कोई मोह नहीं है । अंग्रेजी भाषा को ज्ञान - विज्ञान का वातायन कहा जाने लगा ; जो किसी भी तरह उचित नहीं है ।

अंग्रेज़ी के पक्षधर - अंग्रेज़ी के बढ़ते प्रभाव को तीन दृष्टियों से देखा जा सकता है । कुछ व्यक्ति विदेशी भाषा । सीखने के इच्छुक रहते हैं । वे अंग्रेज़ी भाषा भी नई भाषा सीखने के उद्देश्य से बोलते एवं प्रयोग में लाते हैं । परंतु इस दिशा में कठोर परिश्रम की आवश्यकता है । दूसरे वर्ग में वे व्यक्ति आते हैं जो विवशतावश अंग्रेजी का प्रयोग करते हैं । इन्हें कुछ छूट देनी होगी । पर तीसरा वर्ग हीनतावश हिंदी या अपनी मातृभाषा का प्रयोग न करके अंग्रेज़ी के प्रयोग में गर्व का अनुभव करता है । यह स्थिति अत्यंत चिंताजनक है ।

संपर्क भाषा - यह भी हमारा भ्रम है कि अंग्रेज़ी विश्व के अधिकांश देशों में बोली व समझी जाती है । इस भ्रम को तोड़ना आवश्यक है क्योंकि चीन , जापान , रूस , फ्रांस , जर्मनी , ईरान , ईराक , अफ़गानिस्तान , नेपाल आदि देशों में इस भाषा का प्रयोग नहीं होता । सभी स्वतंत्र देश अपनी भाषा का प्रयोग कर गौरव अनुभव करते हैं । अंग्रेज़ी के प्रयोग करने के कारण कई बार विदेशों में हमारी दशा दयनीय हो जाती है । स्वतंत्रता से पूर्व अंग्रेजी भाषा का प्रयोग सरकारी कार्यालयों , विश्वविद्यालयों तथा मंत्रालयों तक सीमित था । सार्वजनिक स्थलों पर मातृभाषा का ही प्रयोग होता था ।

उपसंहार - किंतु स्वतंत्रता के उपरांत अंग्रेजी का प्रयोग घटने के स्थान पर बढता ही चला गया । सावजानक स्थला पर भी अंग्रेजी का प्रभुत्व होता चला गया है । इससे हमारे राष्ट्रीय गौरव को बड़ी ठेस पहुंची है । इस स्थिति को बदलना होगा । राष्ट्रभाषा और मातृभाषा के प्रति स्वाभिमान की भावना जागृत करना नितांत आवश्यक है ।

गंगा प्रदूषण पर निबंध लेखन

संकेत बिंदु : 1. अद्भुत वरदान 2. गंगा की स्थिति 3. गंगा प्रदूषण 4. प्रदूषण निवारण
अद्भुत वरदान - हमारे देश को बनाने में प्रकृति प्रदत्त अद्भुत चीज़ों का बहुत बड़ा हाथ है । वे हैं - हिमालय और गंगा । गंगा नदी पर लोगों की अपार श्रद्धा है । उसके साथ भारत की जातीय स्मृतियाँ , उसकी आशाएँ और आकांक्षाएँ तथा उसकी जय - पराजय और उसके विजय गीत जुड़े हुए हैं । गंगा युगों पुरानी संस्कृति एवं सभ्यता की प्रतीक रही है जो अनादि काल से बहती चली आ रही है । इस गंगा का उद्गम गंगोत्री से 29 कि०मी० ऊपर गोमुख स्थान पर है । गंगोत्री केदारनाथ से लगभग 40 कि०मी० आगे है और लगभग पाँच हजार मीटर ऊँचाई पर स्थित है । यहाँ के बर्फीले पहाड़ों की श्वेत , स्वच्छ बर्फ पिघल - पिघलकर नीचे की ओर बहती है । यहाँ इसे भागीरथी कहते हैं । पर्वतों की घाटियों में कूदति - फाँदती , जलप्रपात बनाती हुई और हरे - भरे पर्वतों के बीच चाँद की - सी धारा बनाती हुई आगे बढ़ती है । देवप्रयाग में अलकनंदा को साथ ले जाती है । यहीं इसका नाम पड़ता है - गंगा ।
गंगा की स्थिति - गंगा भारतीय संस्कृति का प्राण है । इसे सब नदियों में पवित्र माना जाता है , तभी तो गंगाजल का विशेष महत्व है । गंगा के तटों पर अनेक तीर्थों एवं नगरों का निर्माण हुआ है । ऋषिकेश , हरिद्वार , कानपुर , प्रयाग , वाराणसी आदि नगरों को पार कर गंगा बिहार में प्रवेश करती है । गंगाजल सिंचाई एवं पीने के लिए प्रयुक्त होता रहा है । वर्तमान समय में औद्योगिक एवं शहरीकरण की प्रवृत्ति के कारण गंगाजल प्रदूषण का शिकार हो रहा है । सरकार ने इस समस्या की ओर भारतीयों का ध्यान आकर्षित किया है । सरकार के बजट में करोड़ों रुपये इस मद पर खर्च करने का प्रावधान है । यद्यपि यह कार्य अत्यंत कठिन और विस्तृत है , पर सरकार की संकल्प शक्ति भी कम नहीं है ।
गंगा प्रदूषण - जो गंगाजल अमृत कहा जाता रहा है , वह अब अपने प्रभाव को खोता जा रहा है । गंगा की पवित्रता और औषधीय शक्तियाँ धीरे - धीरे घटती जा रही हैं । अनेक परीक्षणों से यह ज्ञात हुआ है कि अब गंगाजल पीने के लायक ही नहीं वरन स्नान योग्य भी नहीं रह गया है । आज गंगा का जल अपने उद्गम स्थल से लेकर ऋषिकेश तक तो ठीक है . पर हरिद्वार से गंगा सागर तक कल - कारखानों का दूषित जल तथा अन्य नदी - नालों का जल इसमें गिरता जाता है , जो इसे प्रदूषित कर देता है । कानपुर के चमड़े के कारखाने , सूती मिलें , जूट मिलें तथा रासायनिक कारखाने अपना गंदा पानी गंगा में डालते रहते हैं । मृतकों को गंगा में विसर्जित करने से भी गंगाजल दूषित होता है । रोगग्रस्त व्यक्ति गंगा में स्नान कर इसके जल को गंदा करते हैं । गंगा की प्रमुख सहायक नदियाँ - यमुना , घाघरा , रामगंगा , गोमती आदि के जल का ताँबा , शीशा , जस्ता , क्रोमियम आदि विषैले तत्व इसके जल में मिल जाते हैं । इन नदियों के जल में कोबाल्ट , टीन , एल्यूमिनियम , टाइटनियम गैलियम , मैंगनीज , लोहा , रेडियम आदि धातुएँ भी हैं , जो कैंसर , स्नायु विकार , मस्तिष्क विकार , श्वसन रोग आदि को जन्म देती हैं 
प्रदूषण निवारण - नदियों का जल हमारे जीवन का आधार है । जल प्रदूषण को रोकना अति आवश्यक है । कारखानों को गंदा जल साफ़ करने के ट्रीटमेंट प्लांट लगाने चाहिए । नदियों में गंदा जल न गिरने दिया जाए । गंगा की पवित्रता बनाए रखना भारतीय संस्कृति का संरक्षण ही है । हमें सरकार को पूरा सहयोग देकर गंगा को प्रदूषण से मुक्त कराने का प्रयास करना चाहिए । हम आशा कर सकते हैं कि निकट भविष्य में गंगाजल प्रदूषण से मुक्त हो जाएगा । गंगा का यह संदेश हमें प्रेरित करता रहेगा - चरैवेति - चरैवेति अर्थात् चलते रहो ! चलते रहो !

शिक्षा में खेलों का महत्व पर निबंध लेखन

संकेत - बिंदु : 1 . स्वस्थ शरीर 2 . व्यक्तित्व निर्माण 3 . पाश्चात्य देशों द्वारा अनुसरण 4 . मानव - निर्माण 5 . अनुशासन एवं सद्भाव 6 . मनोरंजन का साधन 7 . संतुलित प्रयोग

स्वस्थ शरीर - प्रकृति ने मानव को सर्वश्रेष्ठ प्राणी की उपाधि दी है । इसका कारण यह है कि मानव के पास बुद्धि है । मानव में सोचने तथा समझने की शक्ति है । प्राचीन काल से ही वह संसार के अन्य प्राणियों पर नियंत्रण करता चला आ रहा है । आज तो मानव ने कुछ हद तक प्रकृति पर विजय प्राप्त कर ली है । मानव के पास आत्मिक , शारीरिक तथा मानसिक तीनों प्रकार का बल है । इन तीनों प्रकार की शक्तियों के विकास के लिए उपाय भी हैं । श्रेष्ठ पुस्तकों तथा धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन एवं समाज सेवा करने से आत्मिक शक्ति बढ़ती है । शारीरिक बल के लिए नियमित आहार . व्यायाम तथा खेल - कूद अनिवार्य है । मानव में शारीरिक शक्ति का होना नितांत आवश्यक है क्योंकि एक स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है । अंग्रेजी में एक कहावत भी है Asound mindin a sound body . एक रोगी और कमज़ोर व्यक्ति देश , समाज तथा यहाँ तक कि अपने लिए भी बोझ है । मस्तिष्क को स्वस्थ बनाने के लिए शरीर का स्वस्थ होना आवश्यक है । शरीर को स्वस्थ बनाने में खेलों का बहत महत्त्व है । खेलों से शरीर चस्त , गतिशील और स्फूर्तिमय बना रहता है । यह शरीर को हृष्ट - पुष्ट , सुगठित एवं कांतिमय बनाए रखने का महत्वपूर्ण साधन है ।

व्यक्तित्व निर्माण - माँ - बाप बचपन से ही अपने बच्चों की शिक्षा की ओर ध्यान देना शुरू कर देते हैं । जो बच्चा खेल - कूद में भाग लेता है , पढ़ाई में भी उसका मन लगा रहता है । चौबीसों घंटे किताबी कीड़ा बनने से शरीर का पूर्ण विकास नहीं हो पाता । कोई - न - कोई रोग उस बच्चे को पकड लेता है । उसका व्यक्तित्व भी कमजोर हो जाता है । ऐसा व्यक्ति जब अपनी रक्षा करने में ही असमर्थ है तो देश की रक्षा क्या करेगा ? लेकिन जो विद्यार्थी शिक्षा के साथ - साथ खेल - कूद में भी भाग लेता है , वह शरीर और बुद्धि दोनों दृष्टियों से बलवान होता है । वास्तव में आज उस शिक्षा की आवश्यकता है जिसके द्वारा व्यक्तित्व का निर्माण होता है , मस्तिष्क की शक्ति बढ़ती है , बुद्धि का विकास होता है तथा मनुष्य आत्मनिर्भर बनता है ।

पाश्चात्य देशों द्वारा अनुसरण - आज पाश्चात्य देशों में खेल - कूद का महत्व काफ़ी बढ़ चुका है । वहाँ के स्कूलों एवं कॉलेजों में इस दिशा में बहुत अधिक ध्यान दिया जा रहा है । आज किंडरगार्टन तथा मांटेसरी शिक्षा पद्धति में बच्चे को खेल - खेल में ही शिक्षा दी जाती है । खेल - कूद में नियमित रूप से भाग लेने से शरीर हृष्ट - पुष्ट तथा संटर बन जाता है । शरीर में चुस्ती , ताज़गी एवं स्फूर्ति आती है । इससे बुद्धि में भी स्थिरता एवं एकाग्रता आती भीमति आने वाली जीवन यात्रा में भाग लेने के लिए तैयार हो जाता है तथा कष्टों , बाधाओं से नहीं घबराता । रनों केवल तन मन एवं मस्तिष्क का ही विकास नहीं होता , बल्कि जीवन में एक संतुलन भी आता है । अतः क्रीड़ा का समावेश अत्यंत आवश्यक है ।

मानव - निर्माण - यह सत्य ही कहा गया है कि खेल के मैदान में खिलाडी ही नहीं बल्कि मानव बनता है । एक अच्छा नागरिक विकसित होता है । सच्चा खिलाडी न तो विजय पर घमंड करता है और न ही पराजय पर निराश हाता है । बल्कि विजय प्राप्त करने के लिए वह पनः प्रयास करता है । खेल - कूद में भाग लेने से अभ्यास . साहय तथा आत्म - विश्वास उत्पन्न होता है । उसका हृदय उदार एवं विशाल होता है । खेलों का भावना पुनात होता है ।

अनुशासन एवं सद्भाव - खेलों में भाग लेने वाले खिलाडी भले ही अलग - अलग प्रांतों से तथा अलग - अलग भाषा - भाषी होते हैं . लेकिन खेल के मैदान में वे यह सब कुछ भूल जाते हैं कि वे पंजाब के है या राजस्थानी । खेलते समय उसके मन में जातीयता , प्रांतीयता , धर्म तथा भाषा के नाम पर भेद - भाव नहीं होता । उस समय वे मात्र खिलाड़ी होते हैं । खेल भावना खिलाड़ियों में देश - प्रेम से भी आगे मानव - प्रेम की भावना उत्पन्न करती है । खेल के मैदान में खिलाड़ी का एक ही धर्म होता है खेल । यही खेल की भावना जहाँ उसे अच्छा नागरिक बनाती है , वहाँ दूसरी ओर उसमें पारस्परिक सहयोग , संगठन , अनुशासन तथा सहनशीलता की भावना उत्पन्न करती है । जो युवक खेल - कूद में भाग लेते हैं , वे आगे चलकर किसी भी व्यवसाय में प्रवेश करने में सफल होते हैं ।

मनोरंजन का साधन - मानव जीवन में मनोरंजन का विशेष महत्व है । खेलों से बढ़कर मनोरंजन का कोई और अच्छा साधन नहीं हो सकता । क्रिकेट हो या हॉकी या फुटबॉल हज़ारों की संख्या में लोग देखने आते हैं । उधर लाख लोग दूरदर्शन पर आँखें लगाए बैठे रहते हैं । खिलाड़ी जिस तल्लीनता से खेलता है , देखने वाले भी उसी तन्मयता से खेल देखते हैं । खेल - कूद की उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए हमारी सरकार ने इस दिशा में काफ़ी प्रयास किए हैं । खेल - कूद के लिए अलग निदेशालय स्थापित किए गए हैं । अच्छे खिलाड़ियों को छात्रवृत्तियाँ दी जाती हैं तथा । उच्च शिक्षण में उन्हें विशेष प्राथमिकता दी जाती है । अत : खेल - कूद के समुचित विकास पर सरकार बल दे रहा है ।

संतुलित प्रयोग - संस्कृत में एक उक्ति है - ' अति सर्वत्र वर्जयेत् ' अर्थात प्रत्येक वस्त की अति बरी होती है । कुछ विद्यार्थी ऐसे भी हैं जो खेल - कूद में अधिक भाग लेने के कारण पढ़ाई की ओर से मुँह मोड़ लेते हैं । उनकी शिक्षा अधूरी रह जाती है जिससे उनका समुचित विकास नहीं हो पाता । अतः अध्ययन तथा खेल - कूद साथ - साथ चलने चाहिए । कई बार खेलों के कारण कटु भावनाएँ उत्पन्न हो जाती हैं और दो वर्गों में मन - मुटाव हो जाता है परंतु खेल की भावना हमें कदापि ऐसा नहीं सिखाती । नैपोलियन को पराजित करने वाले नेल्सन ने कहा था - " The war of waaterloo was fought in the fields of eton . " इसी कथन में खेलों का महत्व निहित है ।