गंगा प्रदूषण पर निबंध लेखन

संकेत बिंदु : 1. अद्भुत वरदान 2. गंगा की स्थिति 3. गंगा प्रदूषण 4. प्रदूषण निवारण
अद्भुत वरदान - हमारे देश को बनाने में प्रकृति प्रदत्त अद्भुत चीज़ों का बहुत बड़ा हाथ है । वे हैं - हिमालय और गंगा । गंगा नदी पर लोगों की अपार श्रद्धा है । उसके साथ भारत की जातीय स्मृतियाँ , उसकी आशाएँ और आकांक्षाएँ तथा उसकी जय - पराजय और उसके विजय गीत जुड़े हुए हैं । गंगा युगों पुरानी संस्कृति एवं सभ्यता की प्रतीक रही है जो अनादि काल से बहती चली आ रही है । इस गंगा का उद्गम गंगोत्री से 29 कि०मी० ऊपर गोमुख स्थान पर है । गंगोत्री केदारनाथ से लगभग 40 कि०मी० आगे है और लगभग पाँच हजार मीटर ऊँचाई पर स्थित है । यहाँ के बर्फीले पहाड़ों की श्वेत , स्वच्छ बर्फ पिघल - पिघलकर नीचे की ओर बहती है । यहाँ इसे भागीरथी कहते हैं । पर्वतों की घाटियों में कूदति - फाँदती , जलप्रपात बनाती हुई और हरे - भरे पर्वतों के बीच चाँद की - सी धारा बनाती हुई आगे बढ़ती है । देवप्रयाग में अलकनंदा को साथ ले जाती है । यहीं इसका नाम पड़ता है - गंगा ।
गंगा की स्थिति - गंगा भारतीय संस्कृति का प्राण है । इसे सब नदियों में पवित्र माना जाता है , तभी तो गंगाजल का विशेष महत्व है । गंगा के तटों पर अनेक तीर्थों एवं नगरों का निर्माण हुआ है । ऋषिकेश , हरिद्वार , कानपुर , प्रयाग , वाराणसी आदि नगरों को पार कर गंगा बिहार में प्रवेश करती है । गंगाजल सिंचाई एवं पीने के लिए प्रयुक्त होता रहा है । वर्तमान समय में औद्योगिक एवं शहरीकरण की प्रवृत्ति के कारण गंगाजल प्रदूषण का शिकार हो रहा है । सरकार ने इस समस्या की ओर भारतीयों का ध्यान आकर्षित किया है । सरकार के बजट में करोड़ों रुपये इस मद पर खर्च करने का प्रावधान है । यद्यपि यह कार्य अत्यंत कठिन और विस्तृत है , पर सरकार की संकल्प शक्ति भी कम नहीं है ।
गंगा प्रदूषण - जो गंगाजल अमृत कहा जाता रहा है , वह अब अपने प्रभाव को खोता जा रहा है । गंगा की पवित्रता और औषधीय शक्तियाँ धीरे - धीरे घटती जा रही हैं । अनेक परीक्षणों से यह ज्ञात हुआ है कि अब गंगाजल पीने के लायक ही नहीं वरन स्नान योग्य भी नहीं रह गया है । आज गंगा का जल अपने उद्गम स्थल से लेकर ऋषिकेश तक तो ठीक है . पर हरिद्वार से गंगा सागर तक कल - कारखानों का दूषित जल तथा अन्य नदी - नालों का जल इसमें गिरता जाता है , जो इसे प्रदूषित कर देता है । कानपुर के चमड़े के कारखाने , सूती मिलें , जूट मिलें तथा रासायनिक कारखाने अपना गंदा पानी गंगा में डालते रहते हैं । मृतकों को गंगा में विसर्जित करने से भी गंगाजल दूषित होता है । रोगग्रस्त व्यक्ति गंगा में स्नान कर इसके जल को गंदा करते हैं । गंगा की प्रमुख सहायक नदियाँ - यमुना , घाघरा , रामगंगा , गोमती आदि के जल का ताँबा , शीशा , जस्ता , क्रोमियम आदि विषैले तत्व इसके जल में मिल जाते हैं । इन नदियों के जल में कोबाल्ट , टीन , एल्यूमिनियम , टाइटनियम गैलियम , मैंगनीज , लोहा , रेडियम आदि धातुएँ भी हैं , जो कैंसर , स्नायु विकार , मस्तिष्क विकार , श्वसन रोग आदि को जन्म देती हैं 
प्रदूषण निवारण - नदियों का जल हमारे जीवन का आधार है । जल प्रदूषण को रोकना अति आवश्यक है । कारखानों को गंदा जल साफ़ करने के ट्रीटमेंट प्लांट लगाने चाहिए । नदियों में गंदा जल न गिरने दिया जाए । गंगा की पवित्रता बनाए रखना भारतीय संस्कृति का संरक्षण ही है । हमें सरकार को पूरा सहयोग देकर गंगा को प्रदूषण से मुक्त कराने का प्रयास करना चाहिए । हम आशा कर सकते हैं कि निकट भविष्य में गंगाजल प्रदूषण से मुक्त हो जाएगा । गंगा का यह संदेश हमें प्रेरित करता रहेगा - चरैवेति - चरैवेति अर्थात् चलते रहो ! चलते रहो !

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