शिक्षा में खेलों का महत्व पर निबंध लेखन

संकेत - बिंदु : 1 . स्वस्थ शरीर 2 . व्यक्तित्व निर्माण 3 . पाश्चात्य देशों द्वारा अनुसरण 4 . मानव - निर्माण 5 . अनुशासन एवं सद्भाव 6 . मनोरंजन का साधन 7 . संतुलित प्रयोग

स्वस्थ शरीर - प्रकृति ने मानव को सर्वश्रेष्ठ प्राणी की उपाधि दी है । इसका कारण यह है कि मानव के पास बुद्धि है । मानव में सोचने तथा समझने की शक्ति है । प्राचीन काल से ही वह संसार के अन्य प्राणियों पर नियंत्रण करता चला आ रहा है । आज तो मानव ने कुछ हद तक प्रकृति पर विजय प्राप्त कर ली है । मानव के पास आत्मिक , शारीरिक तथा मानसिक तीनों प्रकार का बल है । इन तीनों प्रकार की शक्तियों के विकास के लिए उपाय भी हैं । श्रेष्ठ पुस्तकों तथा धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन एवं समाज सेवा करने से आत्मिक शक्ति बढ़ती है । शारीरिक बल के लिए नियमित आहार . व्यायाम तथा खेल - कूद अनिवार्य है । मानव में शारीरिक शक्ति का होना नितांत आवश्यक है क्योंकि एक स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है । अंग्रेजी में एक कहावत भी है Asound mindin a sound body . एक रोगी और कमज़ोर व्यक्ति देश , समाज तथा यहाँ तक कि अपने लिए भी बोझ है । मस्तिष्क को स्वस्थ बनाने के लिए शरीर का स्वस्थ होना आवश्यक है । शरीर को स्वस्थ बनाने में खेलों का बहत महत्त्व है । खेलों से शरीर चस्त , गतिशील और स्फूर्तिमय बना रहता है । यह शरीर को हृष्ट - पुष्ट , सुगठित एवं कांतिमय बनाए रखने का महत्वपूर्ण साधन है ।

व्यक्तित्व निर्माण - माँ - बाप बचपन से ही अपने बच्चों की शिक्षा की ओर ध्यान देना शुरू कर देते हैं । जो बच्चा खेल - कूद में भाग लेता है , पढ़ाई में भी उसका मन लगा रहता है । चौबीसों घंटे किताबी कीड़ा बनने से शरीर का पूर्ण विकास नहीं हो पाता । कोई - न - कोई रोग उस बच्चे को पकड लेता है । उसका व्यक्तित्व भी कमजोर हो जाता है । ऐसा व्यक्ति जब अपनी रक्षा करने में ही असमर्थ है तो देश की रक्षा क्या करेगा ? लेकिन जो विद्यार्थी शिक्षा के साथ - साथ खेल - कूद में भी भाग लेता है , वह शरीर और बुद्धि दोनों दृष्टियों से बलवान होता है । वास्तव में आज उस शिक्षा की आवश्यकता है जिसके द्वारा व्यक्तित्व का निर्माण होता है , मस्तिष्क की शक्ति बढ़ती है , बुद्धि का विकास होता है तथा मनुष्य आत्मनिर्भर बनता है ।

पाश्चात्य देशों द्वारा अनुसरण - आज पाश्चात्य देशों में खेल - कूद का महत्व काफ़ी बढ़ चुका है । वहाँ के स्कूलों एवं कॉलेजों में इस दिशा में बहुत अधिक ध्यान दिया जा रहा है । आज किंडरगार्टन तथा मांटेसरी शिक्षा पद्धति में बच्चे को खेल - खेल में ही शिक्षा दी जाती है । खेल - कूद में नियमित रूप से भाग लेने से शरीर हृष्ट - पुष्ट तथा संटर बन जाता है । शरीर में चुस्ती , ताज़गी एवं स्फूर्ति आती है । इससे बुद्धि में भी स्थिरता एवं एकाग्रता आती भीमति आने वाली जीवन यात्रा में भाग लेने के लिए तैयार हो जाता है तथा कष्टों , बाधाओं से नहीं घबराता । रनों केवल तन मन एवं मस्तिष्क का ही विकास नहीं होता , बल्कि जीवन में एक संतुलन भी आता है । अतः क्रीड़ा का समावेश अत्यंत आवश्यक है ।

मानव - निर्माण - यह सत्य ही कहा गया है कि खेल के मैदान में खिलाडी ही नहीं बल्कि मानव बनता है । एक अच्छा नागरिक विकसित होता है । सच्चा खिलाडी न तो विजय पर घमंड करता है और न ही पराजय पर निराश हाता है । बल्कि विजय प्राप्त करने के लिए वह पनः प्रयास करता है । खेल - कूद में भाग लेने से अभ्यास . साहय तथा आत्म - विश्वास उत्पन्न होता है । उसका हृदय उदार एवं विशाल होता है । खेलों का भावना पुनात होता है ।

अनुशासन एवं सद्भाव - खेलों में भाग लेने वाले खिलाडी भले ही अलग - अलग प्रांतों से तथा अलग - अलग भाषा - भाषी होते हैं . लेकिन खेल के मैदान में वे यह सब कुछ भूल जाते हैं कि वे पंजाब के है या राजस्थानी । खेलते समय उसके मन में जातीयता , प्रांतीयता , धर्म तथा भाषा के नाम पर भेद - भाव नहीं होता । उस समय वे मात्र खिलाड़ी होते हैं । खेल भावना खिलाड़ियों में देश - प्रेम से भी आगे मानव - प्रेम की भावना उत्पन्न करती है । खेल के मैदान में खिलाड़ी का एक ही धर्म होता है खेल । यही खेल की भावना जहाँ उसे अच्छा नागरिक बनाती है , वहाँ दूसरी ओर उसमें पारस्परिक सहयोग , संगठन , अनुशासन तथा सहनशीलता की भावना उत्पन्न करती है । जो युवक खेल - कूद में भाग लेते हैं , वे आगे चलकर किसी भी व्यवसाय में प्रवेश करने में सफल होते हैं ।

मनोरंजन का साधन - मानव जीवन में मनोरंजन का विशेष महत्व है । खेलों से बढ़कर मनोरंजन का कोई और अच्छा साधन नहीं हो सकता । क्रिकेट हो या हॉकी या फुटबॉल हज़ारों की संख्या में लोग देखने आते हैं । उधर लाख लोग दूरदर्शन पर आँखें लगाए बैठे रहते हैं । खिलाड़ी जिस तल्लीनता से खेलता है , देखने वाले भी उसी तन्मयता से खेल देखते हैं । खेल - कूद की उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए हमारी सरकार ने इस दिशा में काफ़ी प्रयास किए हैं । खेल - कूद के लिए अलग निदेशालय स्थापित किए गए हैं । अच्छे खिलाड़ियों को छात्रवृत्तियाँ दी जाती हैं तथा । उच्च शिक्षण में उन्हें विशेष प्राथमिकता दी जाती है । अत : खेल - कूद के समुचित विकास पर सरकार बल दे रहा है ।

संतुलित प्रयोग - संस्कृत में एक उक्ति है - ' अति सर्वत्र वर्जयेत् ' अर्थात प्रत्येक वस्त की अति बरी होती है । कुछ विद्यार्थी ऐसे भी हैं जो खेल - कूद में अधिक भाग लेने के कारण पढ़ाई की ओर से मुँह मोड़ लेते हैं । उनकी शिक्षा अधूरी रह जाती है जिससे उनका समुचित विकास नहीं हो पाता । अतः अध्ययन तथा खेल - कूद साथ - साथ चलने चाहिए । कई बार खेलों के कारण कटु भावनाएँ उत्पन्न हो जाती हैं और दो वर्गों में मन - मुटाव हो जाता है परंतु खेल की भावना हमें कदापि ऐसा नहीं सिखाती । नैपोलियन को पराजित करने वाले नेल्सन ने कहा था - " The war of waaterloo was fought in the fields of eton . " इसी कथन में खेलों का महत्व निहित है ।

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