खिलजी के अधीन विस्तार : दक्कन और दक्षिण की ओर विस्तार Expansion Under The Khaljis : Deccan and Southward Expansion

खिलजी के अधीन विस्तार : दक्कन और दक्षिण की ओर विस्तार Expansion Under The Khaljis : Deccan and Southward Expansion

दक्कन में देवगिरी को अलाउद्दीन ने 1296 ई. में कारा के गवर्नर के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान लूट का स्वाद चखा था। दक्कन में अगला सैन्य अभियान अलाउद्दीन ने 1306-7 में देवगिरी के राय राम चंद्र देव के खिलाफ फिर से योजना बनाई थी। इसका तात्कालिक कारण 1296 में दिल्ली को वार्षिक कर भेजने में अनावश्यक रूप से लंबा विलंब था।


दक्कन अभियान की कमान मलिक काफ़ूर को दी गई और सहायता प्रदान करने के लिए ऐनुल मुल्क मुल्तानी और अलप खान को निर्देश भेजे गए। राम चंद्र देव ने केवल एक कमज़ोर प्रतिरोध किया क्योंकि उन्होंने व्यक्तिगत सुरक्षा के आश्वासन के तहत शाही सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। हालाँकि, उनका बेटा सेना के एक हिस्से के साथ भाग गया। राम चंद्र देव को सुल्तान ने बहुत सम्मान दिया और सुल्तान को नियमित और समय पर वार्षिक कर के भुगतान के आश्वासन के बदले में देवगिरी की गद्दी पर वापस बिठाया। राय ने अपनी बेटी की शादी भी सुल्तान से कर दी। ऐसा प्रतीत होता है कि अलाउद्दीन की नीति देवगिरी को अपने अधीन करने की नहीं थी, बल्कि इसे एक संरक्षित राज्य के रूप में बनाए रखने और राज्य से जितना संभव हो सके उतना धन इकट्ठा करने की थी।


देवगिरी के मामले को मलिक काफ़ूर ने जिस सावधानी से संभाला, उससे सुल्तान का एक सैन्य जनरल के रूप में उसकी क्षमताओं पर भरोसा बढ़ा और उसने उसे दक्षिण के प्रायद्वीपीय क्षेत्र में अभियान चलाने की जिम्मेदारी सौंपने का फैसला किया। दक्षिणी राज्यों से धन-संपत्ति प्राप्त करना और वास्तविक क्षेत्रीय विलय नहीं करना, इन अभियानों को भेजने का मुख्य उद्देश्य प्रतीत होता है। तदनुसार, अक्टूबर 1309 में, शाही सेना ने मलिक काफ़ूर की कमान में दक्षिण की ओर अपना अभियान शुरू किया। अमीर खुसरो ने अपने खज़ैन-उल-फ़ुतूह में इन अभियानों का विवरण दिया है। रास्ते में मलिक काफ़ूर ने सिरपुर (आदिलाबाद जिले में) के किले पर एक आश्चर्यजनक हमला किया। सिरपुर के कुलीन वारंगल के राय रुद्र देव के पास भाग गए और किले पर शाही सेना ने कब्ज़ा कर लिया।


जनवरी 1310 के मध्य तक, मार्चिंग सेना वारंगल के उपनगरों तक पहुँच गई थी। 14 फरवरी 1310 को, काफ़ूर ने किले पर हमला किया। युद्ध समाप्त हो गया क्योंकि राय रुद्र देव ने आत्मसमर्पण करने का फैसला किया। वह अपने खजाने को छोड़ने और समर्पण के प्रतीक के रूप में वार्षिक कर देने के लिए सहमत हो गया।


वारंगल सल्तनत सेना के लिए एक शानदार सफलता थी: लूट में 20,000 घोड़े, 100 हाथी और हज़ार ऊँटों पर लदे सोने और कीमती पत्थरों का एक विशाल भंडार शामिल था। प्रांत को क्षेत्रीय रूप से नहीं जोड़ा गया था, लेकिन इसे एक संरक्षित राज्य का दर्जा दिया गया था। जून 1310 की शुरुआत में शाही सेना दिल्ली वापस आ गई। अब सुल्तान के लालच की कोई सीमा नहीं थी। चूँकि इस समय तक सल्तनत मंगोल खतरे से सुरक्षित हो चुकी थी और विंध्य के उत्तर में लगभग पूरा देश अलाउद्दीन के अधीन आ गया था, इसलिए उसने सुदूर दक्षिण में एक और सैन्य अभियान की योजना बनाई।


सुल्तान की नज़र अब वारंगल के दक्षिण में द्वारसमुद्र पर थी। मलिक काफ़ूर एक बार फिर शाही सेना की कमान संभाल रहा था और उसे सोने और कीमती पत्थरों के खजाने के अलावा लगभग 500 हाथियों पर कब्ज़ा करने का निर्देश दिया गया था। फ़रवरी 1311 में किले की घेराबंदी की गई और अगले ही दिन द्वारसमुद्र के शासक बल्लाल देव की ओर से शांति की अपील वाला संदेश आया। पहले के मामलों की तरह शर्तों में बहुत सारी संपत्ति का बंटवारा और वार्षिक कर का वादा शामिल था।


द्वारसमुद्र में अपनी सफलता से लालायित आमिर काफूर ने दक्षिण की ओर आगे बढ़ने का फैसला किया। सिगरेट, वह मा'बार की ओर बढ़ा और एक महीने से भी कम समय में पांड्यों की राजधानी मदुरा पहुंच गया। सुंदर पांड्य, शासक, पहले ही भाग चुका था। हाथी और ख़ज़ाना अमीर काफ़ूर ने अपने कब्ज़े में ले लिया। वहां 512 हाथी, 5000 घोड़े और 500 मन कीमती पत्थर थे।


अलाउद्दीन के दक्कन और दक्षिण की ओर अभियान का उद्देश्य दो बुनियादी उद्देश्य हासिल करना था: (i) इन क्षेत्रों पर दिल्ली के सुल्तान के अधिकार को औपचारिक मान्यता देना, और (ii) कम से कम जान-माल की हानि के साथ अधिकतम धन-संपत्ति एकत्र करना। विजित क्षेत्रों को न हड़पने की उसकी नीति, बल्कि सुल्तान की अधीनता को स्वीकार करने की नीति, अलाउद्दीन की राजनीतिक सूझबूझ को दर्शाती है।


हालांकि, मलिक काफ़ूर के माबर से लौटने के एक साल के भीतर, दक्कन में हुए घटनाक्रमों ने गैर-संलग्नक की नीति की समीक्षा की मांग की। देवगिरि के शासक राम देव की मृत्यु 1312 के उत्तरार्ध में हुई और उनके बेटे भीलमा ने उनका स्थान लिया। भीलमा ने दिल्ली के सुल्तान की अधिपति स्थिति को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की। अलाउद्दीन ने विद्रोह को दबाने के लिए मलिक काफ़ूर को भेजा और उसे प्रांत का अस्थायी प्रभार संभालने का निर्देश दिया। लेकिन मलिक काफ़ूर को जल्द ही वापस बुला लिया गया और प्रांत का प्रभार ऐनुल मुल्क को सौंपने के लिए कहा गया। जनवरी 1316 में, अलाउद्दीन की मृत्यु के बाद, ऐनुल मुल्क को भी दिल्ली वापस बुला लिया गया, जिससे देवगिरि के मामले अशांत हो गए। इस प्रकार, अलाउद्दीन के उत्तराधिकारी मुबारक खिलजी अपने राज्यारोहण के तुरंत बाद देवगिरि की ओर कूच करना चाहते थे, लेकिन उनके सरदारों ने उन्हें सलाह दी कि वे दिल्ली में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए कुछ और समय लें। अपने शासनकाल के दूसरे वर्ष अप्रैल 1317 में मुबारक ने अभियान शुरू किया। अभियान में कोई घटना नहीं हुई। देवगिरी ने कोई प्रतिरोध नहीं किया और मराठा सरदारों ने सुल्तान के सामने समर्पण कर दिया। प्रांत को सल्तनत में मिला लिया गया।

What is Self Management in Emotional intelligence

What is Self Management in Emotional intelligence

Self-management in emotional intelligence refers to the ability to recognize, understand, and regulate one's own emotions effectively. It involves being aware of your emotional state, managing your impulses, and maintaining a balanced and composed demeanor even in challenging situations. Self-management is crucial for making sound decisions, handling stress, and maintaining positive relationships both personally and professionally. It includes skills such as emotional regulation, adaptability, resilience, and the ability to stay focused on long-term goals despite short-term challenges. Developing self-management skills is key to fostering emotional intelligence and achieving personal and professional success.
समकालीन हिंदी कविता की प्रवृत्तियाँ Samkalin yugeen hindi kavita ki pravrttiyaan

समकालीन हिंदी कविता की प्रवृत्तियाँ Samkalin yugeen hindi kavita ki pravrttiyaan

1. समकालीन कविता में विषय के स्तर पर पर्याप्त वैविध्य दिखाई पड़ता है गांव से लेकर शहर, महानगर, किसान-मजदूर से लेकर मध्यवर्गीय मूल्यों में दवा शहरी और हाशिये पर का समाज तथा इन सभी वर्गों की अनगिनत कहानियाँ, अनगिनत राग-द्वेष और समस्याएँ सब इस कविता में हैं।
2. विभिन्न विमशों- स्त्री विमर्श, दलित विमर्श, आदिवासी विमर्श, अल्पसंख्यक विमर्श इत्यादि तथा सांप्रदायिकता, नस्लवाद इत्यादि को लेकर महत्त्वपूर्ण वैचारिक कविताएँ लिखी जा रही हैं।
3. समकालीन कविता का कवि छोटी-छोटी बातों और विभिनन भावों को लेकर कविता लिखता है।
4. रूमानी इंद्रधनुष हो या नफरत और फरेब, अमीरी और विलासिता का चकाचौंध हो या गरीबी और फटेहाली का दर्द, एकता का आवाहन हो या नफरत और घृणा की खेती- यह सब समकालीन कविता में मौजूद हैं।
5. समकालीन कविता में व्यक्त यथार्थ प्रायः हमारे हमारे बीच का या हमारे आस-पास का होता है जिसे व्यक्त करने में भावों, अनुभूतियों और वैचारिक तत्परता का आवेग होता है।
6. विकास और सुविधाओं की अपाधापी में लगातार पीछे छूटते अतीत की सामूहिकता और अपनेपन के दर्द को अनेकशः देखा जा सकता है। सभ्य होते समाज की असभ्यता, बर्बरता और क्रूरता को लेकर भी समकालीन कवि चिचंतित हैं।
7. आर्थिक उदारीकरण ने सिर्फ वायुमंडल में ही प्रदूषण के कारक नहीं बढ़ाए हैं बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक और वैचारिक स्तर पर दिवालिएपन की जिस संस्कृति को जन्म दिया है और बढ़ाया है वह चिंताजनक है। इस पर समकालीन कविता लगातार विचार करती है।
नई कविता की प्रवृत्तियाँ Nai yugeen hindi kavita ki pravrttiyaan

नई कविता की प्रवृत्तियाँ Nai yugeen hindi kavita ki pravrttiyaan

 1. नयी कविता का कवि जड़ीभूत सौंदर्याभिरुचियों पर प्रहार करती है।

2. नयी कविता जीवन की समस्याओं को बौद्धिक दृष्टि से देखने और मिटाने पर जोर देती है।

3. नयी कविता का कवि सामाजिक राजनीतिक स्थितियों तथा यौन कुंठा को बेबाक ढंग से अभिव्यक्त करता है।

4. वर्तमान क्षण के सघन और संपूर्ण अनुभूति को नयी कविता व्यक्त करती है।

5. नयी कविता आकर्षण को ही नहीं विकर्षण को भी व्यक्त करती है। यह अगर रिझाती है तो सताती भी कम नहीं है।

6. दो विश्वयुद्धों की विभीषिका और अनकही पीड़ा को भी नयी कविता व्यक्त करती है। संसार भर में सांस्कृतिक विघटन और मूल्यहीनता का जो दौर रहा उसे बहुत कुछ इसमें साकार किया गया है।

7. अस्तित्ववाद के प्रभाव में नयी कविता में अकेलापन, त्रास, आत्महत्या को चाह, बुरे सपने, सड़ांध भी कई वार आते हैं।

8. नयी कविता मोहभंग की कविता है। मोहभंग आजादी के दौरान जवां हुए सपनों से, आजाद भारत की राजनीतिक व्यवस्था से और आदमी की नयी निर्मित होती परिभाषा और उसके गिरते कद से।

प्रयोगवादी हिंदी कविता की प्रवृत्तियाँ Prayogwadi yugeen hindi kavita ki pravrttiyaan

प्रयोगवादी हिंदी कविता की प्रवृत्तियाँ Prayogwadi yugeen hindi kavita ki pravrttiyaan

1. प्रयोगवादी कविता शहरी मध्यवर्ग को केंद्र में रख कर लिखी गयी है।
2. अपने व्यक्तिगत सुखों-दुखों और संवेदनाओं को काव्य सत्य मानकर उन्हें नये-नये माध्यमों से व्यक्त करने की कोशिश इस कविता में हुई।
3. इस कविता में एक वर्ग उन कवियों का भी था जो अपने समाजवादी विश्वासों को अपने संस्कारों में ढालकर कविता लिख रहा था, ऐसे कवियों के यहाँ सामाजिक और जीवन मूल्यों से जुड़े प्रगतिशील विचारों का प्राधान्य रहा।
4. इस दौर के कवियों में अधिकांशतः अनास्थामूलक स्वर सुने जा सकते हैं। यह कवि ईश्वर, धर्म, नैतिकता के प्रति गंभीर नहीं दिखता।
5. सूक्ष्म से सूक्ष्म चीजों पर लेखन और अभिव्यक्ति इस कविता में है।
6. प्रयोगवादी कवि क्षण के महत्व को महिमामंडित करते हुए विराट और सनातन का अस्वीकार करता है।
7. प्रयोगवादी कवियों ने शब्दों में नए अर्थ भरने की कोशिश की। भाषा, भाव, प्रतीकों इत्यादि में नवीन प्रयोग इस दौर की उपलब्धि हैं।
प्रगतिवादी हिंदी कविता की प्रवृत्तियाँ Pragatiwad yugeen hindi kavita ki pravrttiyaan

प्रगतिवादी हिंदी कविता की प्रवृत्तियाँ Pragatiwad yugeen hindi kavita ki pravrttiyaan

 1. राष्ट्रीय स्वाधीनता के संघर्ष के निर्णायक काल में लिखी जा रही प्रगतिवादी कविता में स्वाधीनता के प्रति समर्पण और सहयोग का भाव विद्यमान है।

2. प्रगतिवादी हिंदी कविता राजनीतिक तौर पर मार्क्सवादी विचारधारा का साहित्यिक अवतार है।

3. प्रगतिवादी कविता में जनसामान्य की चिंता और जनसंघर्ष के प्रति समर्थन का स्वर प्रमुख है।

4. अन्य कलाओं की तरह कविता को भी जागरूकता और परिवर्तन का अस्त्र मानने वाले प्रगतिवादी कवियों के यहाँ शोषक वर्ग के प्रति घृणा और शोषितों के प्रति सहयोग, समर्थन तथा क्रांतिकारी बदलावों के प्रति एक उम्मीद मौजूद है।

5. यथार्थ की विडंबना के प्रति जागरूक इस दौर के कवि व्यंग्य में अग्रणी हैं।

6. आम जनजीवन के चित्र चाहे वह किसान हो, मजदूर हो, संघर्षशील स्त्री हो या दाने-दाने को मोहताज भिखारी- सब प्रगतिवादी हिंदी कविता के केंद्र में हैं।

7. गांव की चौपाल हो, खेत-खलिहान में कार्यरत किसान हो, फैक्ट्री या शहरी वातावरण में कार्यरत श्रमिक वर्ग हो या फटेहाल स्त्री हो या अवोध वचपन- ये सब प्रगतिवादी कविता की चिंता और चिंतन में महत्वपूर्ण हैं।

8. प्रतिवादी कविता प्राचीन और जर्जर रूढ़ियों को ध्वस्त कर एक नया समाज बनाने की इच्छुक है जहाँ मनुष्य द्वारा मनुरू को शोषण न हो, आर्थिक आधार पर शोषण न हो और हर मेहनतकश को उसका वाजिब हक मिले। शासन व्यवस्था तथा उत्पादन की साधनों पर राज्य और समाज का हक हो, व्यक्ति-विशेष का नहीं।

छायावादी हिंदी कविता की प्रवृत्तियाँ Chhayawad yugeen hindi kavita ki pravrttiyaan

छायावादी हिंदी कविता की प्रवृत्तियाँ Chhayawad yugeen hindi kavita ki pravrttiyaan

1. राष्ट्रीयता और स्वाधीनता की चेतना के साथ जनजागरण की देशव्यापी लहर को आमजन तक कविता के माध्यम से पहुंचाने का कार्य छायावादी कविता ने किया।
2. नागरिक स्वतंत्रता की भावना और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की पुकार के साथ व्यक्तिगत स्वाधीनता की भावना को भी छायावाद में प्रमुखता मिली।
3. पुरातन सामाजिक रूढ़ियों, पवित्रतावादी नैतिक बंधकों और आचार-व्यवहार के विरुद्ध विद्रोह का स्वर छायावादी कविता में मौजूद है।
4. रोमांटिसिज्म, प्रेम और प्रणय के चित्र इस दौर की कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों में से हैं। यह प्रेम व्यक्तिगत राग की अभिव्यक्ति मात्र न होकर सामंतवादी दृष्टि और बंधनों के विरुद्ध विद्रोह का जयघोष भी है।
5. प्रकृति का उन्मुक्त चित्रण जितना छायावाद में हुआ इतना हिंदी कविता केकिसी भी दौर में नहीं हुआ। यह प्रकृति सिर्फ प्रणय की स्थली न होकर स्वछंदता, गतिशीलता और मनुष्य अंतर्मन का विस्तार भी है। प्रकृति के साथ जितने भी तरह के चित्र, भाव और संबंध मानव जीवन के हो सकते हैं, वे बस इस कविता में मौजूद हैं।
6. आंतरिक स्पर्श से पुलकित भावों को स्थान देने के लिए प्रचुर कल्पनाशीलता छायावादी काव्य की विशेषता है। छायावादी कवि कल्पना के पंखों पर बैठकर अनंत में विहार कर पाने में समर्थ है।