शिक्षा का माध्यम राष्ट्रभाषा हो या मातृभाषा पर निबंध लेखन । Essay writing on The medium of instruction is national language or mother tongue

संकेत - बिंदु : 1 . भूमिका 2 . शिक्षा का माध्यम 3 . मातृभाषा 4 . राष्ट्रीय भाषा 5 . प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर

 भूमिका - मानव मनोवृत्तियों के विकास का साधन शिक्षा ही है । मानव की जन्मजात विशेषताएँ शिक्षा द्वारा अंकरित , पल्लवित और पष्पित होती हैं ।

 शिक्षा का माध्यम - शिक्षा उसी माध्यम से दी जानी चाहिए , जिसे बालक - बालिकाएँ आसानी से समझ सके । दूसरे शब्दों में , शिक्षा का सबसे उत्तम माध्यम बालक की अपनी मातृभाषा ही हो सकती है । यदि उसे किसी अन्य भाषा से शिक्षा दी जाए , तो सबसे पहले वह भाषा सिखानी होगी , इसके लिए बहुत समय चाहिए । जितना समय उस भाषा को सीखने में लगाया जाएगा , उतने समय में बालक को कितनी ही शिक्षा दी जा सकती है । शिक्षा का माध्यम वही भाषा होनी चाहिए , जो कठिन न हो , जिसके व्याकरण के नियम जटिल न हों , जिसकी वर्णमाला सुगम और सरल हो उस भाषा में पुस्तकें विद्यमान हों ।

 मातृभाषा - प्रत्येक बालक के लिए उसकी मातृभाषा ही सबसे सरल होती है । उसकी वर्णमाला वह जल्दी सीख जाता है , उसका उच्चारण वह जल्दी सीखता है क्योंकि घर में भी वह उसी को बोलता और सुनता है । अब रही पुस्तकों की बात , यदि पुस्तकें उस भाषा में उपलव्य न हों , तो तैयार की जा सकती हैं । यह तो हुई प्राथमिक शिक्षा की बात । माध्यमिक तथा उच्चतर माध्यमिक शिक्षा भी बालक को उसकी अपनी मातृभाषा में ही दी जानी चाहिए । यह तभी संभव है , जब उस भाषा में विविध विषयों का साहित्य पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो । यह अवश्य है कि उस भाषा में कविता , कहानी , विज्ञान , समाजशास्त्र , राजनीति , इतिहास , अर्थशास्त्र आदि की पर्याप्त मौलिक तथा अनूदित पुस्तकें विद्यमान हों ।

 राष्ट्रीय भाषा - माध्यमिक तथा उच्चतर माध्यमिक स्तर पर नाना विषयों के अतिरिक्त बालक को अपनी राष्ट्रीय भाषा का भी अध्ययन अवश्य कराया जाना चाहिए । बालक की गति केवल अपने प्रदेश तक ही सीमित न रहे अपितु वह समस्त देश का एक योग्य नागरिक भी बन सके , इसके लिए राष्ट्रभाषा का अध्ययन करना अनिवार्य होना चाहिए । इसके बाद महाविद्यालय की शिक्षा आती है । महाविद्यालय की शिक्षा केवल राष्ट्रभाषा में ही दी जानी चाहिए । इसके लिए महाविद्यालय स्तर की मौलिक तथा अनूदित विविध विषयों की पुस्तकें प्रकाशित की जानी चाहिए । विदेशी भाषा में महाविद्यालय की शिक्षा देना मानसिक परतंत्रता का चिह्न है । प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर - प्रादेशिक भाषा अथवा विद्यार्थी की अपनी मातृभाषा में महाविद्यालय की शिक्षा देना संकीर्णता का परिचायक है । समस्त देश का संपूर्ण राजकाज , शासन संबंधी सभी कार्य राष्ट्रभाषा में किया जाना चाहिए । भारत में यदि यह काम प्रांतीय भाषाओं में किया जाएगा , तो देश की एकता कहाँ रहेगी ? सभी प्रदेशों के कार्यों में एकरूपता कैसे आएगी ? एक प्रदेश में पढ़े - लिखे लोग दूसरे प्रदेशों में या केंद्र में कैसे काम करेंगे ? और यदि संसद की कार्यवाही प्रांतीय भाषाओं में होगी , तो जंगल का दृश्य नज़र आएगा । हमारे विचार में महाविद्यालय कॉलेज ) की शिक्षा हिंदी भाषा में ही दी जानी चाहिए । विदेशों से व्यवहार के लिए कॉलेज की पढ़ाई में किसी भाषा का समावेश अवश्य किया जाना चाहिए ।

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