भारतीय संस्कृति और हमारे युवक पर निबंध लेखन । Essay writing on Indian culture and our youth

संकेत - बिंदु : 1 . प्रस्तावना 2 . सभ्यता एवं संस्कृति 3 . संस्कृति का विकास 4 . भारतीय संस्कृति के आदर्श तत्व 5 . युवकों पर प्रभाव

 प्रस्तावना - मानव अपनी उत्पत्ति से मृत्युपर्यंत आनंद की खोज में रहता है । आनंद सौंदर्य में होता है । मानव अनादिकाल से सौंदर्य की खोज में है । वह अपनी किसी रचना को परिपूर्ण मानकर संतुष्ट नहीं हो पाता है । उसे और अधिक सुंदर बनाने का प्रयास करता है । यह विकसित रूप ही ' संस्कृति ' कहलाता है । मानव नाना प्रकार की धार्मिक साधनाओं के प्रयासों से उस महान सत्य की खोज में व्यापक रूप से प्रयास करता जा रहा है , जिसे हमने संस्कृति की संज्ञा दी है ।

 सभ्यता एवं संस्कृति - संस्कृति तथा सभ्यता में आपस में अटूट संबंध है । जिस जाति की संस्कृति उच्च होती है , वह सभ्य कहलाती है और उसी के सदस्य सुसंस्कृत कहलाते हैं । जो सुसंस्कृत हैं , वे ही सभ्य हैं और जो सभ्य हैं , वे ही सुसंस्कृत हैं । प्रत्येक जाति की अपनी - अपनी संस्कृति होती है । संस्कृति अच्छी अथवा बुरी हो सकती है , किंतु सभ्यता सदैव सुंदर होती है । सभ्यता के भीतरी भाग में बहने वाली धारा को ही हम संस्कृति कहते हैं ।

 संस्कृति का विकास - संस्कृति का विकास देश की प्राकृतिक दशा , उपज और जलवायु पर निर्भर होता है । प्रकृति का रहन - सहन , आचार - विचार सभी पर प्रभाव पड़ता है । उन्नत संस्कृति निम्न संस्कृति को प्रभावित अवश्य करती ने भारतीय संस्कृति की उत्तम बातों को ग्रहण किया । संस्कृति धर्म से प्रेरित होती है और उसे प्रभावशाली बनाती है । मानव देह में आत्मा का प्रधान तथा प्रमुख स्थान है । देह गौण है , फिर भी आत्मा के लिए यह अत्यंत आवश्यक है ।

भारतीय संस्कृति के आदर्श तत्व - भारतीय संस्कृति आत्मा को ही प्रमुख मानती है । देह और मन का शुद्ध होना । आवश्यक होता है । इसका विकास धर्म का आधार लेकर चलता है इसीलिए उसमें दृढ़ता है । ज्ञान के पाँच स्तर माने गए हैं - अन्न , प्राण , मन , विज्ञान और आनंद । प्राण और मन को वश में करने के लिए हमारी भारतीय संस्कृति में उपाय बताए गए हैं , जो अभ्यास से सिद्ध होते हैं , अभ्यास के साथ वैराग्य का होना अत्यंत आवश्यक है । भारतीयता के आधार पर मानव पितृ , देव ऋणों को लेकर संसार में आता है । अधिकांश लोगों की धारणा है । कि बिना इन ऋणों को चुकाए वह साधना का अधिकारी नहीं होता । इन ऋणों से मुक्त होने के लिए युवा वर्ग को पूर्वजों की लीक पर चलना पड़ता है । ऋषियों ने मेघ , सूर्य , पृथ्वी , सबको वश में करने के उपाय बताए हैं । इन उपायों पर चलकर युवा वर्ग ने इन कार्यों को मुख्य लक्ष्य माना है । बिना इन ऋणों को चुकाए हुए मोक्ष की प्राप्ति का उपाय करना भी पाप है । हमारे महात्माओं ने युवकों के लिए कर्तव्य , संयम और वैराग्य का उपदेश दिया है । युवकों के पतन का कारण यही है कि वे अपने उच्चादर्शों को भूल बैठे हैं ।

 युवकों पर प्रभाव - हमारी भारतीय संस्कृति युवकों को महान कार्यों की ओर प्रेरित करती है । उन्हें मानवता का पाठ पढ़ाती है । उनके चरित्र को उज्ज्वल करती है । महात्मा गांधी जी यदि विश्व में आगे बढ़े हैं , तो भारतीय संस्कृति के मार्ग पर चलकर ही आगे बढ़े हैं । कहा जाता है कि जब - जब उन्हें सत्याग्रह अथवा अनशन करना होता था , तो वे गीता और रामायण से शक्ति प्राप्त करते थे । प्रत्येक भारतीय युवक का कर्तव्य है कि वह भारतीय संस्कृति का अनुकरण करे ।

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