आरक्षण : समस्या तथा समाधान पर निबंध लेखन । Essay writing on Reservation: Problem and solution

संकेत बिंदु : 1. भूमिका 2. जाति का आधार 3. आरक्षण की सीमा 4. आरक्षण का औचित्य 5. आरक्षण की राजनीति 6. उपसंहार

भूमिका - सन् 1978 के पश्चात् आरक्षण विरोधी आंदोलन तीव्र होने लगे । गुजरात , बिहार , मध्यप्रदेश तथा राजस्थान में आरक्षण विरोधक हिंसा भी हो उठी । राष्ट्रव्यापी स्तर पर इस आंदोलन को भड़काने का प्रयास किया गया । आरक्षण पर विचार करने के लिए हमें इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में जाना होगा ।

जाति का आधार - गुण एवं कर्म के आधार पर स्थापित जाति व्यवस्था क्रमशः जन्म पर आधारित हो गई । जाति विशेष में उत्पन्न व्यक्ति के लिए कर्म तथा प्रतिष्ठा पहले से ही सुरक्षित की जाने लगी । केवल चार वर्णों में ही नहीं बल्कि पाँच हजार से भी अधिक जातियों और उपजातियों में बँटा यह हिंदू समाज अत्यंत संकीर्ण बन गया । अंतर्जातीय विवाह , खान - पान , रोटी - बेटी के संबंधों पर प्रतिबंध लग गए । शिक्षा , संपत्ति , शासन , सम्मान से वंचित जातियाँ समाज में असम्मानित निकृष्ट पेशों द्वारा जीविकोपार्जन करती हुई , गाँव के अंतिम छोर पर अस्पृश्य की जिंदगी जीने के लिए विवश हो गई । निम्न जाति के लिए मंदिरों के दरवाजे बंद हो गए , सवर्णों के कुओं से वे पानी नहीं भर सकते थे , शिक्षा उनकी पहुँच से दूर कर दी गई , धर्म - ग्रंथों को वे छू नहीं सकते थे । स्मृति धर्म - ग्रंथों के माध्यम से इन विशेषाधिकारों तथा अस्पृश्यता को वैधानिक जामा पहना दिया गया । “ पूजिय विप्र ज्ञान - गुण हीना की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया गया । निम्न जाति का व्यक्ति उच्च पद पर पहुँच कर भी सम्मान का अधिकारी नहीं माना जाता था और उससे अछूतों जैसा ही व्यवहार किया जाता था । समानता के तीन रूप देखने में आते हैं । वे - अवसर , व्यवहार एवं परिणाम की समानता । अवसर की समानता और व्यवहार की समानता का तभी कोई मूल्य है जबकि इससे परिणाम की समानता को बल मिलता हो । हम समानता पर आधारित जिस समाज की रचना करना चाहते हैं वह कल्पित अवसर की समानता से नहीं आ पाएगा तथा पिछडे हुए लोग पिछडे ही रह जाएंगे ।

आरक्षण की सीमा - जो लोग आरक्षण को समाप्त करने बात करते हैं वे रोग के मूल कारण को न पकड़कर उसके बाह्य लक्षणों से जूझ रहे हैं । समस्या है सबको शिक्षा और रोजगार देने की परंतु इसके लिए अवसर या सुविधाएँ सरकार जुटा नहीं पा रही ।
सेवा तथा शिक्षा संबंधी आरक्षण के लिए काल सीमा का कोई बंधन संविधान में नहीं है । लोकसभा तथा राज्य विधान मंडलों के लिए यह अवधि पहले पहल 10 वर्ष रखी गई थी बाद में यह 10 - 10 वर्ष के लिए और बढ़ा दी गई । शिक्षा और सेवाओं में आरक्षण प्रतिशत की अधिकतम मर्यादा क्या हो इसका कहीं उल्लेख नहीं है । आरक्षण के प्रश्न पर पहला विरोधी स्वर इस बात को लेकर उठा कि आरक्षण यदि होना ही है तो आर्थिक आधार पर क्यों नहीं ? सवर्ण जातियों के निर्धनों को भी विशेष अवसर मिलने चाहिए । ऐतिहासिक दृष्टि से पिछड़ी जातियों की दुर्दशा केवल आर्थिक कारणों से नहीं वरन उनका सामाजिक तथा शैक्षिक पिछड़ापन उनकी निर्धनता का कारण भी बना है । आरक्षण , गरीबी को दूर करने का उपाय नहीं है , वह तो शैक्षिक तथा सामाजिक पिछड़ेपन का भी उपचार है । यदि सामान्यतः पूरा वर्ग पिछड़ा है तो जातीय आधार पर पिछड़ापन मानना अनुचित नहीं है ।

आरक्षण का औचित्य - यह भी कहा जा सकता है कि जिन प्रतिभाशाली छात्रों को आरक्षण के कारण शिक्षा अथवा सेवाओं में अवसर नहीं मिलता उनके साथ अन्याय होता है । इस समस्या का दूसरा पहलू यह भी है कि यदि आरक्षण समाप्त भी हो जाए तब क्या सभी को व्यावसायिक महाविद्यालयों में प्रवेश मिल जाएगा या नौकरियाँ मिल जाएँगी ? निश्चय ही उत्तर नकारात्मक है परंतु ऐसा करने से पिछड़ी जातियाँ पिछड़ी ही रह जाएँगी । यह प्रश्न भी उठाया जा रहा है कि आरक्षण का लाभ पिछड़ी जातियों में से भी कुछ ही प्रतिशत परिवार उठा रहे हैं । यह भी कहा जा सकता है कि आरक्षण से पिछड़े वर्गों में आत्मनिर्भरता नहीं आएगी और वे सदा सर्वदा के लिए पंगु हो जाएँगे । यह खतरा वास्तविक है परंतु पिछड़े वर्गों में से ही ऐसा नेतृत्व उभरेगा जो इस मानसिकता से उन्हें उबारेगा ।

 आरक्षण की राजनीति - आरक्षण का एक दुर्भाग्यपूर्ण पक्ष यह है कि राजनीतिज्ञों ने इसे वोट पाने और अपनी गद्दी स्थिर करने का साधन बना लिया है । पिछड़े वर्गों की उन्नति के लिए आरक्षण भी एक उपाय है परंतु इसे एकमात्र उपाय नहीं माना जा सकता । सरकार को चाहिए की ऐसी योजनाएं बनाए कि हर प्रतिभाशाली छात्र को उच्च शिक्षा का अवसर और नौकरी उपलब्ध हो । ' पूर्ण रोज़गार ' की ओर हमें बढ़ना चाहिए ।

उपसंहार - संक्षेप में , हम कह सकते हैं कि आरक्षण एक ऐतिहासिक , सामाजिक एवं संवैधानिक ज़िम्मेदारी है । सामाजिक समता एवं न्याय के लिए इसकी आवश्यकता है परंतु इसे तुच्छ राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति का साधन नहीं बनाया जाना चाहिए ।

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