अंतरिक्ष विजय और मानवता का भविष्य पर निबंध लेखन

 संकेत - बिंदु : 1 . प्रस्तावना 2 . रूस एवं अमेरिका 3 . भारत का योगदान 4 . ज्ञान में अभिवृद्धि 5 . सफलताओं का दूसरा पहलू

प्रस्तावना - सृष्टि के ऊषाकाल में जब कभी मनुष्य ने आँख खोल कर देखा होगा तो अपने को आकाश के गोलाकार गुंबद के नीचे पड़ा पाया होगा । तब , जबकि आकाश की छत के सिवा उसके पास सिर छुपाने का साधन नहीं रहा होगा , उसने आश्चर्य और जिज्ञासा से वर्षों इसे निहारा होगा . इसके बदलते रंगों को देखा होगा और इसमें चमकते , भागते , टूटते रंग बदलते ग्रहों , नक्षत्रों एवं पुच्छल तारों को देखकर अदभुत कल्पनाएँ की होंगी । इस महाशून्य में शिव के निवास की कल्पना की होगी , ग्रहों , नक्षत्रों को देवता कहकर पुकारा होगा । ज्योतिषियों ने एक - एक नक्षत्र के । आकार - प्रकार को कल्पित किया और पृथ्वीवासियों पर पड़ने वाले उसके प्रभाव को आँका । सूर्य के बिना सृष्टि संभव नहीं लगी तो चंद्रमा के बिना वनस्पतियों में रस का संचार न होने की बात भी कही । इस महाशून्य के गर्भ में क्या छुपा है , इसे जानने की बलवती इच्छा ने वैज्ञानिकों को अंतरिक्ष अनुसंधान की ओर प्रेरित किया ।

 रूस एवं अमेरिका - द्वितीय विश्व युद्ध में रॉकेटों की खोज हुई और रूसी वैज्ञानिक त्रियोल्कवस्की ने रॉकेट के माध्यम से अंतरिक्ष में भू - उपग्रह भेजने पर विचार किया । 4 अक्तूबर , 1957 का दिन , मानवता के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है क्योंकि रूस का पहला ' स्पतनिक ' इसी दिन अंतरिक्ष में स्थापित किया गया था । 12 अप्रैल , 1960 को रूसी यान ' वोस्तोक ' पर बैठकर प्रथम अंतरिक्ष यात्री यूरी गैगरिन अंतरिक्ष में उड़ा और डेढ़ घंटे में पृथ्वी की परिक्रमा करके सकुशल उतर आया । भारशून्यता एवं तीव्रगति पर मानव की बुद्धि ने विजय पा ली थी । रूस की अंतरिक्ष विजय की रोमांचक सफलताओं को देखकर अमेरिका शांत कैसे रह सकता था । 11 अक्तूबर , 1958 को पॉयनीर | चंद्रमा की ओर अंतरिक्ष में छोड़ा गया । रूस और अमेरिका के बीच चंद्रमा तक पहुँचने की प्रतिस्पर्धा जोरों से चली । अंतरिक्ष में प्रथम महिला अंतरिक्ष यात्री वैलेनटीना तोरिशकोवा को भेजने का श्रेय भी रूस को मिला । अमेरिका द्वारा चाँद पर ' जेमिनी ' यान भेजने का क्रम चला ।

भारत का योगदान - ' भारतीय वैज्ञानिक भी अंतरिक्ष के रहस्यों को सुलझाने में सक्रिय रहे हैं । स्वाधीनता प्राप्ति के गागचात भाजानिक जहाँ पर 1974 में आण्विक विस्फोट करने में सफल हुए वहीं पर 19 अप्रैल , 1975 को आर्यभटट ' नामक उपग्रह रूस की सहायता से अंतरिक्ष में पहुँचने में भी सफल हए । इसके उपग्रह भेजने का कार्य निरंतर चलता रहा । एस०एल०वी० 3 द्वारा रोहिणी तीन को अंतरिक्ष में पहुँचाने के साथ ही भारत अंतरिक्ष क्लब का सदस्य मान लिया गया । भारत में श्रीहरिकोटा से छोड़ा गया यह उपग्रह निरंतर कार्यरत है । भारत के साधनों को देखते हुए भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम महत्वपूर्ण कहे जा सकते हैं ।
 मानव की अंतरिक्ष विजय की कहानी अभी अधूरी है । ग्रहों , नक्षत्रों का रहस्यपूर्ण संसार अभी भी असंख्य रहस्य अपने में छुपाए है । मंगल , शुक्र और चंद्रमा ही नहीं , अन्य असंख्य ग्रह ब्रह्मांड के अंग हैं । मानव जिज्ञासा इन रहस्यों का भेद खोलने के लिए निरंतर तत्पर है ।

 ज्ञान में अभिवृद्धि - मानव के अंतरिक्ष संबंधी प्रयोग उसके ज्ञान में वृद्धि कर रहे हैं , मानव के लिए पृथ्वी के अतिरिक्त रहने के नए स्थान खोज रहे हैं , अन्य ग्रहों की संपदा से पृथ्वी पर जीवन को अधिक सुखमय बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं । पृथ्वी पर अन्य ग्रहों के प्रभाव का मूल्यांकन कर रहे हैं , पृथ्वी के ऊपर वायुमंडल में होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन कर रहे हैं । संक्षेप में कहें तो भविष्य की मानवता के लिए सुखमय जीवन के अवसरों की तलाश जारी है ।

 सफलताओं का दूसरा पहलू - अंतरिक्ष संबंधी सफलताओं का एक दूसरा पहलू भी है जो निश्चय ही भयावह है । सन 1986 तक पचास हजार से भी अधिक आण्विक शस्त्रास्त्रों का भंडार इस संसार में इकट्ठा हो चुका है जो कि हमारी पथ्वी को हज़ारों बार पूर्णतया नष्ट कर सकता है । अंतरिक्ष में ऐसे आण्विक उपग्रह रखे जा सकते हैं जो कि अपनी लेज़र किरणों से हजारों मील दूर तक दिखने वाली अंत : महाद्वीपीय विनाशक मिज़ाइलों को ध्वस्त कर सकते हैं । यही लेज़र किरणें यदि पृथ्वी पर पड़ जाएँ तो निश्चय ही पृथ्वी ध्वस्त हो सकती है और मानवता का भविष्य खतरे में पड़ सकता है । क्या अंतरिक्ष के रहस्यों को जानने से पूर्व ही हम उसे नष्ट करने में जुट

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