भारत का परमाणु कार्यक्रम पर निबंध लेखन । Essay writing on India's nuclear program
संकेत - बिंदु : 1 . भूमिका 2 . परमाणु नीति 3 . परमाणु परीक्षण 4 . उपयोगिता 5 . उपसहार
भूमिका - 6 अगस्त 1945 , द्वितीय विश्व युद्ध अपनी अंतिम साँसों पर था परंतु जापान अपनी अदम्य इच्छा शक्ति के सहारे अभी भी मित्र राष्ट्रों के लिए चुनौती बना था । अचानक जापान का तीन लाख आबादी वाला नगर हिरोशिमा , अमेरिका के सुपर फ़ोटरेस विमान दुवारा गिराए परमाणु बम से दहक उठा । सारा नगर आग और धुएँ का गुब्बार बनकर मौत की नींद सो गया । दूर - दूर तक अधजले खंडहर , अपंग , साण नागरिक और विनाश के प्रयकर चिहन खिरे दिखाई पड़े । 9 अगस्त को यही विनाशलीला नागासाकी में दुहराई गई । जापान ने घुटने टेक दिए , विश्व युदध समाप्त हो गया । विश्व पहली बार परमाणु बम की शक्ति से परिचित हुआ । 1945 को नोबेल पुरस्कार जर्मन वैज्ञानिक ऑटो हॉन को दिया गया जिसने अमेरिकी संरक्षण में परमाणु बम का निर्माण किया था ।
परमाणु नीति - स्वाधीनता प्राप्ति के पश्चात भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने परमाणु शक्ति के आतिषण प्रयोग का विचार विश्व को दिया । 1948 परमाण शक्ति आयोग की स्थापना की गई । पापा पामा जविन अनुसंधान का ट्रांच में चार अणु परियाँ स्थापित की गई जिनके नाम थे अप्परा , सिरय , जालीमा तथा पूर्णिमा । भारत के विख्यात वैज्ञानिक होमी जहाँगीर भाभा की दूरदर्शिता का ही परिणाम था कि 1947 में ' टाटा इंस्टीच्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च ' की स्थापना हो सकी जहाँ पर भारत के परमाणु अनुसंधान चलते रहे और नए वैज्ञानिक , परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में अनुभव प्राप्त करते रहे । मुंबई से 65 किलोमीटर दूर ' तारापुर अणु विद्युत केंद्र ' . राजस्थान में ' राणा प्रताप सागर बाँध ' , तमिलनाडु में ' कलपक्कम परमाणु शक्ति केंद्र ' तथा उत्तर प्रदेश में ' नरौरा विजली घर ' भारत के परमाणु शक्ति के शांतिपूर्ण प्रयोग के ज्वलंत प्रतीक हैं । विश्व के परमाणु - शक्ति संपन्न राष्ट्र - अमेरिका , रूस , इंग्लैंड , फ्रांस आदि ही विश्व के अविकसित राष्ट्रों पर ज़ोर डालते रहे हैं कि वे ' परमाणु परीक्षण रोकने ' की संधि पर हस्ताक्षर कर दें । भारत ने ऐसी किसी भी संधि पर हस्ताक्षर करने से सदा ही इंकार किया क्योंकि ऐसी संधि न केवल भेद - भाव पूर्ण एवं अन्याय पूर्ण होती बल्कि इससे परमाणु शक्ति - संपन्न राष्ट्रों का एकाधिपत्य परमाणु ऊर्जा पर बना रहता ।
परमाणु - परीक्षण - राजस्थान के पोखरण नामक स्थान पर भारत ने भूगर्भ में पहला परमाणु विस्फोट 8 मई , 1974 में किया । भूगर्भ में मात्र 100 मीटर नीचे किए गए इस प्रयोग में प्लुटोनियम पर आधारित जिस परमाणु बम का विस्फोट भारत ने किया , वह शक्ति में 10 से 15 किलो टन टी०एन०टी० तक का था जो कि हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए बमों के समान शक्तिशाली था । इस प्रयोग से रेडियो - धर्मिता का वातावरण में फैलाव इतना कम हुआ कि मात्र 30 मीटर की ऊँचाई से हेलीकॉप्टर उस स्थान का निरीक्षण कर पाए । 11 मई और 13 मई , 1998 को भारत द्वारा पाँच परमाणु परीक्षण और किए गए । भारत ने भूगर्भ में यह विस्फोट इतनी कुशलता से किए कि परमाणु शक्तियाँ बौखला उठीं । भारत ने यद्यपि यह सर्वथा स्पष्ट कर दिया था कि यह धमाका सैनिक उद्देश्यों के लिए नहीं अपितु शांतिमय उद्देश्यों के लिए है । कनाडा ने भारत को परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में सहायता बंद कर दी । अमेरिका और फ्रांस ने भारत से किए परमाणु अनुसंधान सहायता के वायदे तोड़ दिए । इसने भी परमाणु संयंत्रों के लिए आवश्यक सामग्री देने में आनाकानी की । भारत पर कई तरह के आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए गए । परिणामस्वरूप भारत को एक बार फिर अपने साधनों और अपनी तकनीकी कुशलता पर निर्भर होने के लिए विवश होना पड़ा ।
उपयोगिता - 3 अक्तूबर , 1985 का दिन भारत के परमाणु अनुसंधान कार्यक्रमों की दृष्टि से स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा । कलपक्कम , मद्रास में 14 मैगावाट के ' फ़ास्ट ब्रीडिंग टैस्ट रिएक्टर ' के चालू हो जाने से विश्व की परमाण शक्तियाँ आश्चर्य चकित रह गई । यूरेनियम के साथ - साथ प्लूटोनियम को ईंधन के रूप में प्रयोग करके भारत ने सिद्ध कर दिया कि उसके वैज्ञानिक किसी भी महाशक्ति के वैज्ञानिकों से पीछे नहीं हैं ।
उपसंहार - परमाणु ऊर्जा के विविध उपयोगों को दृष्टिगत रखते हुए जहाँ विश्व के वैज्ञानिक अत्यंत उत्साहित एवं भविष्य के प्रति आशावान हैं , वहीं पर परमाणु संयंत्रों में होने वाली दुर्घटनाओं से त्रस्त भी हैं । परमाणु शक्ति के क्षेत्र में भारत की प्रगति को देखते हुए अंततः यह कहा जा सकता है कि भारत इस क्षेत्र में अग्रणी राष्ट्र है । उसके विकास कार्यक्रमों में परमाणु ऊर्जा महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है । डॉ . होमी जहाँगीर भाभा से लेकर डॉ० एच०एन० सेठना , डॉ० राजा रामन्ना तथा डॉ० ए०पी०जे० अब्दुल कलाम तक भारत के सभी वैज्ञानिक इस बात पर एकमत रहे हैं कि परमाणु ऊर्जा के शांति पूर्ण प्रयोग की दिशा में विश्व का मार्ग - दर्शन भारत ही कर सकता है ।
भूमिका - 6 अगस्त 1945 , द्वितीय विश्व युद्ध अपनी अंतिम साँसों पर था परंतु जापान अपनी अदम्य इच्छा शक्ति के सहारे अभी भी मित्र राष्ट्रों के लिए चुनौती बना था । अचानक जापान का तीन लाख आबादी वाला नगर हिरोशिमा , अमेरिका के सुपर फ़ोटरेस विमान दुवारा गिराए परमाणु बम से दहक उठा । सारा नगर आग और धुएँ का गुब्बार बनकर मौत की नींद सो गया । दूर - दूर तक अधजले खंडहर , अपंग , साण नागरिक और विनाश के प्रयकर चिहन खिरे दिखाई पड़े । 9 अगस्त को यही विनाशलीला नागासाकी में दुहराई गई । जापान ने घुटने टेक दिए , विश्व युदध समाप्त हो गया । विश्व पहली बार परमाणु बम की शक्ति से परिचित हुआ । 1945 को नोबेल पुरस्कार जर्मन वैज्ञानिक ऑटो हॉन को दिया गया जिसने अमेरिकी संरक्षण में परमाणु बम का निर्माण किया था ।
परमाणु नीति - स्वाधीनता प्राप्ति के पश्चात भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने परमाणु शक्ति के आतिषण प्रयोग का विचार विश्व को दिया । 1948 परमाण शक्ति आयोग की स्थापना की गई । पापा पामा जविन अनुसंधान का ट्रांच में चार अणु परियाँ स्थापित की गई जिनके नाम थे अप्परा , सिरय , जालीमा तथा पूर्णिमा । भारत के विख्यात वैज्ञानिक होमी जहाँगीर भाभा की दूरदर्शिता का ही परिणाम था कि 1947 में ' टाटा इंस्टीच्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च ' की स्थापना हो सकी जहाँ पर भारत के परमाणु अनुसंधान चलते रहे और नए वैज्ञानिक , परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में अनुभव प्राप्त करते रहे । मुंबई से 65 किलोमीटर दूर ' तारापुर अणु विद्युत केंद्र ' . राजस्थान में ' राणा प्रताप सागर बाँध ' , तमिलनाडु में ' कलपक्कम परमाणु शक्ति केंद्र ' तथा उत्तर प्रदेश में ' नरौरा विजली घर ' भारत के परमाणु शक्ति के शांतिपूर्ण प्रयोग के ज्वलंत प्रतीक हैं । विश्व के परमाणु - शक्ति संपन्न राष्ट्र - अमेरिका , रूस , इंग्लैंड , फ्रांस आदि ही विश्व के अविकसित राष्ट्रों पर ज़ोर डालते रहे हैं कि वे ' परमाणु परीक्षण रोकने ' की संधि पर हस्ताक्षर कर दें । भारत ने ऐसी किसी भी संधि पर हस्ताक्षर करने से सदा ही इंकार किया क्योंकि ऐसी संधि न केवल भेद - भाव पूर्ण एवं अन्याय पूर्ण होती बल्कि इससे परमाणु शक्ति - संपन्न राष्ट्रों का एकाधिपत्य परमाणु ऊर्जा पर बना रहता ।
परमाणु - परीक्षण - राजस्थान के पोखरण नामक स्थान पर भारत ने भूगर्भ में पहला परमाणु विस्फोट 8 मई , 1974 में किया । भूगर्भ में मात्र 100 मीटर नीचे किए गए इस प्रयोग में प्लुटोनियम पर आधारित जिस परमाणु बम का विस्फोट भारत ने किया , वह शक्ति में 10 से 15 किलो टन टी०एन०टी० तक का था जो कि हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए बमों के समान शक्तिशाली था । इस प्रयोग से रेडियो - धर्मिता का वातावरण में फैलाव इतना कम हुआ कि मात्र 30 मीटर की ऊँचाई से हेलीकॉप्टर उस स्थान का निरीक्षण कर पाए । 11 मई और 13 मई , 1998 को भारत द्वारा पाँच परमाणु परीक्षण और किए गए । भारत ने भूगर्भ में यह विस्फोट इतनी कुशलता से किए कि परमाणु शक्तियाँ बौखला उठीं । भारत ने यद्यपि यह सर्वथा स्पष्ट कर दिया था कि यह धमाका सैनिक उद्देश्यों के लिए नहीं अपितु शांतिमय उद्देश्यों के लिए है । कनाडा ने भारत को परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में सहायता बंद कर दी । अमेरिका और फ्रांस ने भारत से किए परमाणु अनुसंधान सहायता के वायदे तोड़ दिए । इसने भी परमाणु संयंत्रों के लिए आवश्यक सामग्री देने में आनाकानी की । भारत पर कई तरह के आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए गए । परिणामस्वरूप भारत को एक बार फिर अपने साधनों और अपनी तकनीकी कुशलता पर निर्भर होने के लिए विवश होना पड़ा ।
उपयोगिता - 3 अक्तूबर , 1985 का दिन भारत के परमाणु अनुसंधान कार्यक्रमों की दृष्टि से स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा । कलपक्कम , मद्रास में 14 मैगावाट के ' फ़ास्ट ब्रीडिंग टैस्ट रिएक्टर ' के चालू हो जाने से विश्व की परमाण शक्तियाँ आश्चर्य चकित रह गई । यूरेनियम के साथ - साथ प्लूटोनियम को ईंधन के रूप में प्रयोग करके भारत ने सिद्ध कर दिया कि उसके वैज्ञानिक किसी भी महाशक्ति के वैज्ञानिकों से पीछे नहीं हैं ।
उपसंहार - परमाणु ऊर्जा के विविध उपयोगों को दृष्टिगत रखते हुए जहाँ विश्व के वैज्ञानिक अत्यंत उत्साहित एवं भविष्य के प्रति आशावान हैं , वहीं पर परमाणु संयंत्रों में होने वाली दुर्घटनाओं से त्रस्त भी हैं । परमाणु शक्ति के क्षेत्र में भारत की प्रगति को देखते हुए अंततः यह कहा जा सकता है कि भारत इस क्षेत्र में अग्रणी राष्ट्र है । उसके विकास कार्यक्रमों में परमाणु ऊर्जा महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है । डॉ . होमी जहाँगीर भाभा से लेकर डॉ० एच०एन० सेठना , डॉ० राजा रामन्ना तथा डॉ० ए०पी०जे० अब्दुल कलाम तक भारत के सभी वैज्ञानिक इस बात पर एकमत रहे हैं कि परमाणु ऊर्जा के शांति पूर्ण प्रयोग की दिशा में विश्व का मार्ग - दर्शन भारत ही कर सकता है ।