साक्षरता अभियान पर निबंध लेखन । Essay writing on literacy campaign

संकेत बिंदु : 1. शिक्षा का प्रभाव 2. प्रौढ़ शिक्षा केंद्र 3. योजना की असफलता 4. अनुदेशकों की नियुक्ति 5. भ्रष्ट व्यवस्था

शिक्षा का प्रभाव - आधुनिक जीवन में शिक्षा का महत्व बहुत अधिक हो गया है । अशिक्षित व्यक्ति अपने जीवन को अर्थहीन समझने लगा है । शिक्षा के द्वारा व्यक्ति के जीवन से अज्ञान रूपी अंधकार मिट जाता है । शिक्षित व्यक्ति जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में शीघ्र सफलता प्राप्त करता है । अशिक्षित व्यक्ति जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में असफलता प्राप्त करता है । अशिक्षित व्यक्ति प्रायः हीनता की भावना से ग्रस्त होते हैं । उन्हें कई बार ऐसा अनुभव होता है कि उनकी स्थिति पशुओं से बेहतर नहीं है । हमारे देश का यह बहुत बड़ा दुर्भाग्य है कि यहाँ निवास करने वाले लोगों में लगभग दो - तिहाई लोग अशिक्षित हैं ।

प्रौढ़ शिक्षा केंद्र - स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत सरकार का ध्यान इस समस्या की ओर भी गया । देश के कुछ गाँवों में कुछ प्रौढ़ शिक्षा केंद्रों की स्थापना की गई है । गाँव के अधेड़ तथा बड़ी आयु वाले व्यक्तियों को साक्षर बनाने का प्रयास आरंभ किया गया । प्रारंभ में इस कार्यक्रम में अधिक सफलता नहीं मिली । प्रौढ़ व्यक्ति छोटे बच्चों के साथ अ - आ - इ - ई सीखने में संकोच का अनुभव करते थे परंतु धीरे - धीरे प्रौढ़ शिक्षा का प्रचार बढ़ता गया । वर्तमान प्राढ़ शिक्षा योजना का प्रारंभ 2 अक्तूबर , 1978 से किया गया है । इस योजना के अंतर्गत निरक्षर प्रौढ़ एवं युवक ग्रामीणों को साक्षर बनाने की व्यवस्था की गई है । प्रौढ़ शिक्षा का उद्देश्य अनपढ़ ग्रामीणों को केवल साक्षर बनाने तक ही सीमित नहीं है , बल्कि इस कार्यक्रम के अंतर्गत प्रौढ़ों को व्यावहारिक ज्ञान देने का भी प्रयास किया जाएगा ।

योजना की असफलता - प्रौढ़ शिक्षा योजना का कार्यक्रम निश्चय ही अत्यंत महत्वपूर्ण है , परंतु इस योजना को अपेक्षित सफलता प्राप्त नहीं हो रही है । सरकारी योजना में प्रायः बहुत अधिक धनराशि व्यय की जाती है , परंत उनमें प्राय : उतनी सफलता नहीं मिलती । प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम को सही रूप में क्रियान्वित करने में अनेक बाधाएँ हैं । ग्रामीण अनपढ़ प्रौढ़ शिक्षा केंद्रों में जाने के लिए अधिक उत्साहित प्रतीत नहीं होते क्योंकि दिन भर की कड़ी मेहनत के पश्चात वे इतने थक जाते हैं कि उनमें शिक्षा जैसे गंभीर विषय के प्रति कोई उत्साह नहीं रह जाता । हमारे देश के अधिकांश राज्यों में बिजली की आँख - मिचौनी चलती रहती है । दिन में कई - कई घंटे तक बिजली नहीं आती । बिजली के अभाव में ट्यूबवैल कार्य नहीं करते । किसानों का सारा ध्यान उधर ही केंद्रित रहता है । संध्या के समय जैसे ही बिजली आती है वैसे ही किसान प्रशिक्षण केंद्रों से भाग खड़े होते हैं और अपने खेत की सिंचाई की ओर ध्यान देते हैं । प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम में आशातीत सफलता न मिलने का एक महत्वपूर्ण कारण निष्ठावान कार्यकर्ताओं का अभाव भी है ।

अनुदेशकों की नियुक्ति - प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम के अंतर्गत प्रायः ऐसे अनुदेशकों की नियुक्ति की गई है जिनके मन में अनपढ़ ग्रामीणों के प्रति सहानुभूति की भावना नहीं है । प्रौढ़ों को साक्षर बनाने वाली अधिकांश अनुदेशिकाएँ नित्य नई - नई साड़ियाँ पहनकर निर्धन ग्रामीणों के बीच चर्चा का विषय बनी रहना चाहती हैं । हमारे विचार में इस कार्यक्रम के अंतर्गत ऐसे अनुदेशकों की नियुक्ति होनी चाहिए जो सादा जीवन उच्च विचार के सिद्धांत में विश्वास रखते हों । जिन्हें ग्रामीण भाषा तथा स्थानीय रीति - रिवाजों की जानकारी हो । जो केवल धन को ही अपना लक्ष्य न मानते हों बल्कि जिनके मन में अनपढ किसानों के प्रति सच्ची सहानुभूति की भावना हो । इस कार्यक्रम में तमा सफलता मिल सकती है जब इसमें विभिन्न क्षेत्रों के लोकप्रिय कार्यकर्ताओं तथा स्वयंसेवी को पूरा सहयोग प्राप्त हो ।

भ्रष्ट व्यवस्था - प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम सरकारी आँकड़ेबाज़ी का शिकार तथा वास्तविकता से दूर होता जा रहा है । हमारे देश में इस प्रकार के कार्यक्रम का संबंध भ्रष्ट राजनीति से जुड़ जाता है । अवसरवादी नेता अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए इन कार्यक्रमों के धन का दुरुपयोग करते हैं । दिग्गज नेताओं को प्रसन्न करने के लिए सरकारी अधिकारी झूठे और मोहक चित्र प्रस्तुत करते हैं । यदि किसी क्षेत्र में बीस प्रौढ़ शिक्षा केंद्र चलाए जाते हैं तो सरकारी फ़ाइलों में उनकी संख्या 200 से कम नहीं दिखाई जाती । यदि कार्यक्रम के द्वारा कुछ लाख लोगों को लाभ मिलता है तो करोड़ों लोगों को लाभ मिलने की बात कही जाती है । सरकार को इस संबंध में पर्याप्त सतर्क रहना चाहिए । प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम से अनपढ़ ग्रामीणों को निश्चय ही कुछ लाभ मिला है परंतु इस दिशा में बहुत कुछ करना बाकी है ।

Comments

Popular posts from this blog

"उनका बेटा बीमार है, इसकी खबर रखने की लोगों को कहाँ फुरसत ? पंक्ति में आधुनिक युग के मानव की किस मानसिकता पर व्यंग्य किया गया है?