सभ्यता का रखवाला हिमालय

हिमालय न होता तो क्या होता ? शत्रुओं से बचाने के लिए एक सजग प्रहरी की तरह तैनात यह पर्वत अपने आप में जीवन का आधार है । इसके ग्लेशियर , इसकी नदियाँ , वनस्पति , जैव - विविधता आदि जीवन का आधार तैयार करते हैं , किन्तु अब ये खतरे में हैं । इसके प्राकृतिक रूप - स्वरूप को नष्ट किया जा रहा है । इसके ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं । जैव - विविधता नष्ट हो रही है । देश के कुल क्षेत्रफल के 12 फीसदी क्षेत्र में हिमालय स्थित है । जीवों की 30 , 377 प्रजातियाँ व उप प्रजातियाँ ( 30 फीसदी ) हिमालयी क्षेत्र में रहती हैं । इनमें 280 स्तनधारी , 940 पक्षी , 316 मत्स्य , 200 सरीसृप और 80 उभयचर प्रजातियाँ हैं । देश की कुल जैव विविधता में इसकी हिस्सेदारी 27 फीसदी है । धरती की छत तिब्बत को भारतीय उपमहाद्वीप के मैदानी भागों से अलग करने वाली यह पर्वतमाला इंडियन टेक्टोनिक प्लेट का यूरोशियन प्लेट से टकराहट के बाद बनी । 2400 किमी . विस्तार वाली इस पर्वत श्रृंखला में 50 से अधिक ऐसी चोटियाँ हैं जो 7200 मीटर से ज्यादा ऊँची हैं । दुनिया की 2000 मीटर से ऊँची 14 चोटियों में से 8 यही हैं । देश के छह राज्यों ( जम्म - कश्मीर , हिमाचल , उत्तराखण्ड , सिक्किम , पं0 बंगाल और अरुणाचल में यह फैला है । यह दो क्षेत्रों टांस हिमालय ओर हिमालय में बंटा हुआ है । पूरा क्षेत्रफल 3 . 95 लाख वर्ग किमी . में फैला है । हिमालय के पश्चिम से निकलने वाली नदियों , सिंधु नदी बोसिन में मिलती है । कुछ सहायक नदियों के साथ यह तिब्बत से निकलकर उत्तर - पश्चिम की ओर बढ़ते हुए भारत से पाकिस्तान जाती हैं । बाद में अरब सागर में मिल जाती हैं । हिमालय के दक्षिणी ढलान से निकलने वाली झेलम , चेनाब , रावी , व्यास और सतलज इसकी सहायक नदियाँ हैं । इसकी 
दूसरीना विवशताओं और दुर्बलताओं पर विजय प्राप्त कर सकते हैं । इसका कारण यह है कि आमतौर पर हर व्यक्ति को अपना बड़ा दोष भी छोटा और दूसरों का छोटा दोष भी बड़ा दिखाई पड़ता है । एक महान मनीषी ने लिखा है कि जब मैं अपने दोषों पर दृष्टि डालता हूँ तो मेरे नेत्र छोटे हो जाते हैं और जब मैं दसरों के दोष देखता है तो यही नेत्र विश जाते हैं और जब में दूसरों के दोष देखता हूँ तो यही नेत्र विशाल हो जाते । " दोष दर्शन के सम्बन्ध में राजनीति और धर्मनीति की दिशा बिल्कुल भिन्न हो जाती है । जो दूसरों के दोषों का दर्शन और विवेचन करने सक्षम होता है , वह राजनीति में पंडित समझा जाता है । परन्तु धर्मनीति के अनुसार विद्वान उसे ही समझा जाता है जो अपनी दुर्बलता का शोधन और विवेचन करने की क्षमता रखता है । इसीलिए एक साधक और आत्मान्वेषी से यही अपेक्षा की जाती है कि वह आत्मा की शुद्धि के लिए परदोष के मार्ग का परित्याग कर स्वदोष दर्शन के मार्ग का अनुगामी । बने । इसी में ही उसका कल्याण है । 

निन्दन्तु नीति निपुणाः यदि वा स्तुवन्तु , लक्ष्मी समाविशतु गच्छतु वा यथेष्ठम् । अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्तरेवा , न्यायातपथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः

बड़ी नदी प्रणाली , गंगा - ब्रह्मपुत्र बेसिन हैं । इसकी मुख्य नदी गंगा , ब्रह्मपत्र और यमना के साथ अन्य सहायक नदियाँ हैं । पश्चिमी तिब्बत से ब्रह्मपुत्र का उद्गम होता है । 2 , 525 किमी . लंबी गंगा गंगोत्री ग्लेशियर से निकलती है । देश की 43 फीसद आबादी उसके प्रवाह क्षेत्र में निवास करती है । करीब दो दर्जन सहायक नदियों के साथ यह राष्ट्रीय नदी करोड़ों लोगों की आजीविका का स्रोत है । दुनिया में अंटार्कटिका और आर्कटिका के बाद तीसरा सबसे बड़ा हिम भंडार है । करीब 15 हजार ग्लेशियर है किन्तु पर्यावरण और ग्लोबल वार्मिंग के चलते तेजी से ग्लेशियर पिघल रहे हैं । हिमालय क्षेत्र में सैकड़ों झीलें हैं । कैलाश पर्वत के पास मानसरोवर ताजे पानी की झील है जो 410 वर्ग किमी . में फैली है । हिमालय अपने विशालकाय आकार - प्रकार से बंगाल की खाड़ी और अरब महासागर से उठने वाले मानसून को रोककर देश के विभिन्न हिस्सों में भारी बारिश कराता है । हिमालय से निकलने वाली नदियाँ अपने साथ खनिज और उपजाऊ मिट्टी लाकर मैदानी भागों में जमा कर देती हैं । इसलिए इसे दुनिया का सबसे उपजाऊ मैदान का तमगा । हासिल है । यहाँ करीब 600 बाँध हैं जिनसे अनवरत बिजली पैदा की जा रही है । इसके अतिरिक्त वन से ढका यह क्षेत्र लकड़ी की जरूरतें पूरा कर रहा है साथ ही दुर्लभ जड़ी बूटियों का अपरिमित भंडार लोगों की चिकित्सा भी कर रहा है ।

No comments:

Post a Comment