राष्ट्र निर्माण में नारी का योगदान पर निबंध लेखन । Essay writing on women's contribution to nation building

संकेत - बिंदु : 1 . नर - नारी एक समान 2 . भारतीय दृष्टिकोण 3 . नारी का शोषण 4 . नारी उत्थान 5 . कांतिकारी परिवर्तन , उपसंहार ।

नर - नारी एक समान - राष्ट्र निर्माण कार्य एक पुनीत कार्य है । राष्ट्र के हित में जो भी कार्य किया जाए कम है । राष्ट्र के लिए बलिदान होने वाले वीरों की गौरव गाथाओं से इतिहास के पृष्ठ रंगे हुए हैं । राष्ट्रीय सुरक्षा , विकास और प्रसिद्धि के लिए किए गए कार्यों में देश के सभी नागरिकों की सुरक्षा और उन्नति संभव है । राष्ट्रीय निर्माण कार्यों में फिर क्या पुरुष ? और क्या नारी ? भेदभाव करने की आवश्यकता ही कहाँ रह जाती है । राष्ट्रीय भावनाओं से ओत - प्रोत नारियों के बलिदान की गौरवगाथाएँ पत्येक देश के इतिहास को गौरवान्वित करती है । भारतीय नारियों ने भी राष्ट्रीय विकास और गौरव की श्री वृद्धि करने में पुरुषों का सदैव साथ दिया है । कई क्षेत्रों में तो पुरुषों को पोडे छोड़ गई हैं ।

भारतीय दृष्टिकोण - ममता , त्याग , पवित्रता , उदारता और सहनशीलता की देवी भारतीय नारियों को उनके उज्ज्वल कार्यों के कारण ही गृह - लक्ष्मी कहकर संबोधित किया जाता था । भारतीय संस्कृति में नारियों का आदर किया जाता रहा है । परिवार और समाज में उनका महत्वपूर्ण स्थान रहा है । मनु ने कहा है वास्तव में जहाँ नारी का सम्मान किया जाता है , उसे उसके उचित स्थान पर प्रतिष्ठापित किया जाता है वहाँ पर सुख , समृद्धि और विकास देखने को मिलता है । भारतीय नारियाँ आज भी अपनी परंपरागत भावनाओं को अपने साथ लिए हैं ।

नारी का शोषण - मध्ययुग में विदेशी आक्रमणकारियों और आंग्ल शासकों के समय में भारतीय नारियाँ अपने परंपरागत स्थान पर न रह सकीं । तत्कालीन राजनीतिक घोषणा और अत्याचारों के कारण उन्हें परदे के पीछे रहने को विवश किया गया । समाज में अशिक्षा , शोषण , बहुविवाह , बालविवाह , पर्दा प्रथा और दहेज जैसी कुप्रथाओं के कारण नारियों का परंपरागत रूप कहीं खो गया । भयंकर निर्धनता और शासक वर्ग के अत्याचारों से नारी की सामाजिक स्थिति को बहुत चोट पहुँची ।
भारतीय नारियों के उत्पीड़न के संबंध में यह उल्लेखनीय है कि प्रचार माध्यमों और स्त्रियों के राष्ट्रीय और अंतर्राष्टीय संगठनों ने समय - समय पर आवाज़ उठाई है और उसका परिणाम यह देखने को मिल रहा है कि स्त्रियों की स्थिति और उनके सामाजिक - आर्थिक उत्पीड़न के बारे में नये सिरे से सोचने का दौर शुरू हो गया है । लेकिन इसमें अभी वह तेजी नहीं आई है जिसकी आवश्यकता है । राष्ट्र निर्माण का कोई भी कार्य तब तक पूर्ण नहीं हो सकता जब तक स्थायी परिवर्तन लाने के प्रयास न किए जाएँ । अभी तक भी स्त्री स्वातंत्र्य केवल संपन्न वर्ग तक हो सीमित है । समाज के जिस वर्ग की नारियों ने शोषण का कडवा घुट सैकड़ों वर्षों तक पिया है , जब तक उस वर्ग की भागीदारी नहीं होगी . स्त्री स्वतंत्रता का स्वप्न अधरा ही होगा ।

नारी उत्थान - राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन नारियों की स्वतंत्रता के लिए भी वरदान बन गया । सामाजिक उत्पीड़न का निवारण करने के लिए राजा राममोहन राय , स्वामी दयानंद . महात्मा गांधी . महर्षि कर्वे जैसे महान विचारकों ने नारी की गरिमा पुनः प्रतिष्ठापित की । समाज से कुरीतियों का निवारण करने के लिए सतत संघर्ष किया , परिणामस्वरूप जन जागति आई । नारी शिक्षा के प्रति चेतना जागी और स्त्रियाँ परदे से निकलकर , घर की चारदीवारी को छोड स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़ी । पुरुषा के साथ कध - स - कधा मिलाकर सघर्ष किया । जेलों में गई . कष्ट सहे और अंत में स्वाधीनता की पहली किरण नारियों के जीवन में उन्नति और प्राचीन गरिमा को लेकर पुनः आ पहुंची । नारियों को अपने अस्तित्व का बोध हुआ और स्थिति में परिवर्तन आने लगा ।

क्रांतिकारी परिवर्तन - आज नारी स्वातंत्र्य का युग है । विश्व के प्रत्येक भाग में आज सदियों से उत्पीडित नारी परुष के सामने आ खडी हुई है । शिक्षा के विकास के साथ उनमें आत्मविश्वास बढ़ा है । आज इसी जागृति का परिणाम है कि प्रत्येक कठिन कार्य को भी नारियाँ उसी योग्यता से पूर्ण कर रही हैं जिस योग्यता से पुरुष करते हैं । महात्मा गांधी का कथन है , ' ऐसा कोई कार्य नहीं जिसे नारियाँ पूर्ण नहीं कर सकतीं ' । राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान भी नारियों के सहयोग के बिना पूर्ण नहीं हो सकता । महिलाओं का भी कर्तव्य है । कि वे जहाँ अपने अधिकारों के लिए लड़ रही हैं , वहाँ वे अपने कर्तव्यों के प्रति भी सदा सजग रहें । नवयुवकों को प्रेरणा और बच्चों को सही मार्ग दर्शन और प्रोत्साहन देने का कार्य उनका है , उससे वह समाज को वंचित न करें । प्राचीन काल में नारियाँ राष्ट्र निर्माण कार्यों में पीछे नहीं थीं । मध्यकाल में भी दुर्गावती , रजिया , नूरजहाँ , लक्ष्मीबाई जैसी नारियों ने अदम्य साहस का परिचय दिया है । आधुनिक स्वातंत्र्य आंदोलन के इतिहास में भी भारतीय नारियों ने पुरुषों का निरंतर साथ दिया । सरोजिनी नायडू , कस्तूरबा गांधी , सुचेता कृपलानी आदि नारियाँ त्याग और बलिदान में पीछे नहीं रहीं ।

उपसंहार - राष्ट्र निर्माण में आधुनिक युग में नारियाँ किसी से पीछे नहीं हैं । शिक्षा , चिकित्सा , प्रशासन , व्यापार , नृत्य , संगीत , पर्वतारोहण , खेलकूद , सिनेमा , राजनीति , न्यायालय , विश्वविद्यालय , ऐसा कौन - सा क्षेत्र है जहाँ नारियों का योगदान नहीं है । यदि श्रीमती थैचर , गोल्टामायर , मैडम क्यूरी आदि नारियाँ अपने देशों में नेतृत्व प्रदान कर सकती हैं तो भारतीय नारियाँ भी उसी लगन और मेहनत से भारतीय कीर्ति को चार चाँद लगा रही हैं । श्रीमती इंदिरा गाधी , पुलिस अधिकारी किरण बेदी , संगीतकार ऊषा खन्ना , गायिका लता मंगेशकर , एवरेस्ट विजेता कुमारी बछेद्री पाल , मैराथन रनर आशा अग्रवाल , खिलाड़ी गीता जुत्सी , पी०टी० ऊषा , बलसम्मा , इंगलिश चैनल तैराक आरती गुप्ता , महिला घुड़सवार रोशन सोढ़ी , दक्षिण ध्रुव जाने वाली महिला वैज्ञानिक सुदीप्ता सैन गुप्ता आज अंतर्राष्ट्रीय जगत में अपनी अच्छी पहचान बना चुकी हैं । राष्ट्र निर्माण का कोई भी क्षेत्र आज ऐसा नहीं है जहाँ भारतीय महिलाओं का योगदान कम हो ।

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