अपठित गद्यांश class 9 cbse board hindi

एक बार काशी के राजा सुशर्मा से उनके दरबार में एक व्यक्ति ने प्रश्न किया , " राजन् , मनुष्य के जीवन में भक्ति का महत्व अधिक है या सेवा का ? " काशी नरेश असमंजस में पड़ गए । उन्होंने उसका कोई जवाब नहीं दिया लेकिन वह इस पर लगातार सोचते रहे । कुछ समय बाद राजा शिकार के लिए जंगल में अकेले गए । घने जंगल में वे रास्ता भटक गए । शाम हो गई । उन्हें न तो शिकार मिला और न ही जंगल से निकलने का रास्ता सूझा । प्यास से उनका बुरा हाल हो गया था । काफ़ी देर भटकने के बाद उन्हें एक कुटिया दिखाई पड़ी । वह किसी संत की कुटिया थी । राजा किसी तरह कुटिया में गए और ' पानी - पानी ' चिल्लाते हुए मूच्छित हो गए । कुटिया में । संत समाधि में लीन थे । वह अपना आसन छोड़ राजा के पास गए और उन्हें पानी पिलाया । पानी पीकर राजा की चेतना लौट आई । राजा को जब मालूम हुआ कि संत समाधिस्थ थे तो उन्होंने कहा , " मुनिवर , मेरी वजह से आपके ध्यान में खलल पड़ा । मैं दोषी हूँ । मुझे प्रायश्चित्त करना होगा । " । संत ने कहा , “ राजन् , आप दोषी नहीं हैं इसलिए प्रायश्चित्त करने का प्रश्न ही नहीं है । प्यासा पानी माँगता है और प्यास बुझाने वाला पानी देता है । आपने अपना कर्म किया है और मैंने अपना । यदि आप पानी की पुकार नहीं करते तो आपका जीवन खतरे में पड़ जाता और यदि मैं समाधि छोड़कर आपको पानी नहीं पिलाता , तब भी आपका जीवन खतरे में पड़ता । इस समय मुझे आपको पानी पिलाकर जो संतुष्टि मिल रही है , वह कभी समाधि की अवस्था में नहीं मिलती । भक्ति और सेवा दोनों ही मोक्ष के रास्ते हैं । यदि आप आज प्यासे रह जाते , तो मेरी अब तक की सारी साधना व्यर्थ हो जाती । " राजा को उस प्रश्न का उत्तर स्वतः मिल गया कि भक्ति का महत्व अधिक है या सेवा का ।
(क) मनुष्य के जीवन में किसका महत्व अधिक है?
 (ख) संत कौन से कार्य में लीन थे? 
 (ग) राजा के मौच्छित होने का क्या कारण था?  (घ) राजा क्यों प्रायश्चित्त करना चाहते थे?
 (ड़) संत को किस कार्य से अधिक संतुष्टि मिली और क्यों?

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