मैं प्रिन्स निषाद अपने इस ब्लॉग में आपको यह बताने का प्रयत्न करूंगा कि हमारे शुभ कर्मों के फल से अशुभ कर्मों के फल को कभी नहीं घटाया जा सकता है । मेरे कहने का मतलब यह है कि हमें अपने अच्छे और बुरे कर्मों का फल अलग-अलग भोगना पड़ता है।
दुनिया में मनुष्य ही एकमात्र विवेकशील प्राणी है । इसी विवेक के प्रयोग से यह उसके हाथ में होता है कि वह अच्छा कर्म करे या बुरा कर्म । यह व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह लोक कल्याणकारी कार्य करे या परपीड़क बनकर दूसरे को दुख पहुंचाए और लोगों का उत्पीड़न करे । प्रायः यही देखने को मिलता है कि शक्तिसंपन्न होने पर लोग अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हैं और धर्म एवं नीतिशास्त्रों में पाप समझे जाने वाले कर्म करने लगते हैं । ऐसा करते हुए लोग भूल जाते हैं कि उन्हें अपने कर्म का फल भोगना होता है , चाहे वह शुभ हो या अशुभ । मनुष्य अपने शुभ और अशुभ कर्म के फल से कभी भी , किसी भी हालत में बच नहीं सकता है ।
भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए स्पष्ट रूप से कहा है कि इंसान को अपने शुभ और अशुभ कर्मों का फल अवश्य ही भोगना पड़ता है । रामचरितमानस में भी तुलसीदास जी ने लिखा है कि इस चराचर जगत में कर्म प्रधान है और जो जीव जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल भोगना पड़ता है । आमतौर पर समाज में देखा जाता है कि जब इंसान कोई अशुभ कर्म करता है तो उस पाप से बचने के लिए वह कुछ शुभ कर्म भी करता है , ताकि उसे अशुभ कर्म के पाप का सामना न करना पड़े । ऐसा करते हुए इंसान भूल जाता है कि शुभ और अशुभ कर्मों के अलग अलग फल भोगने पड़ते हैं । यहां पर जोड़ - घटाव नहीं चलता है । ऐसा नहीं होता है कि कि शुभ कर्म के फल से अशुभ कर्म के फल को घटा दिया जाए ।
धर्मशास्त्रों के मुताबिक सभी कर्मों का फल इसी जन्म में भोगना पड़ता है । ऐसे में इंसान को चाहिए कि वह अपने जीवन को खुशहाल और बेहतर बनाने के लिए कल्याण का काम करे । दूसरों को दुख न पहुंचाए । वैसे भी जीवात्मा को अगली बार मुनष्य का जीवन पता नहीं कब जाकर मिले । इसलिए हमें इस जीवन का अधिक से अधिक सदुपयोग कर उसे सार्थक बनाने के प्रयास में जुट जाना चाहिए ।
दुनिया में मनुष्य ही एकमात्र विवेकशील प्राणी है । इसी विवेक के प्रयोग से यह उसके हाथ में होता है कि वह अच्छा कर्म करे या बुरा कर्म । यह व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह लोक कल्याणकारी कार्य करे या परपीड़क बनकर दूसरे को दुख पहुंचाए और लोगों का उत्पीड़न करे । प्रायः यही देखने को मिलता है कि शक्तिसंपन्न होने पर लोग अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हैं और धर्म एवं नीतिशास्त्रों में पाप समझे जाने वाले कर्म करने लगते हैं । ऐसा करते हुए लोग भूल जाते हैं कि उन्हें अपने कर्म का फल भोगना होता है , चाहे वह शुभ हो या अशुभ । मनुष्य अपने शुभ और अशुभ कर्म के फल से कभी भी , किसी भी हालत में बच नहीं सकता है ।
भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए स्पष्ट रूप से कहा है कि इंसान को अपने शुभ और अशुभ कर्मों का फल अवश्य ही भोगना पड़ता है । रामचरितमानस में भी तुलसीदास जी ने लिखा है कि इस चराचर जगत में कर्म प्रधान है और जो जीव जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल भोगना पड़ता है । आमतौर पर समाज में देखा जाता है कि जब इंसान कोई अशुभ कर्म करता है तो उस पाप से बचने के लिए वह कुछ शुभ कर्म भी करता है , ताकि उसे अशुभ कर्म के पाप का सामना न करना पड़े । ऐसा करते हुए इंसान भूल जाता है कि शुभ और अशुभ कर्मों के अलग अलग फल भोगने पड़ते हैं । यहां पर जोड़ - घटाव नहीं चलता है । ऐसा नहीं होता है कि कि शुभ कर्म के फल से अशुभ कर्म के फल को घटा दिया जाए ।
धर्मशास्त्रों के मुताबिक सभी कर्मों का फल इसी जन्म में भोगना पड़ता है । ऐसे में इंसान को चाहिए कि वह अपने जीवन को खुशहाल और बेहतर बनाने के लिए कल्याण का काम करे । दूसरों को दुख न पहुंचाए । वैसे भी जीवात्मा को अगली बार मुनष्य का जीवन पता नहीं कब जाकर मिले । इसलिए हमें इस जीवन का अधिक से अधिक सदुपयोग कर उसे सार्थक बनाने के प्रयास में जुट जाना चाहिए ।
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