अलंकार की परिभाषा और उसके प्रकार उदाहरण सहित । alankar in hindi with examples

अलंकार के भेद प्रकार की परिभाषा उदाहरण सहित


अलंकार के मुख्य भेद अलंकारों के मुख्यतः तीन वर्ग किए गए हैं -
( 1 ) शब्दालंकार ( 2 ) अर्थालंकार ( 3 ) उभयालकार । । इन्हीं तीन वर्गों के आधार पर अलंकारों का अध्ययन होता है ।

शब्दालंकार शब्द  के दो रूप हैं - ध्वनि और अर्थ । ध्वनि के आधार पर शब्दालंकार की सृष्टि होती है । इस अलंकार में वर्ण या शब्दों की लयात्मकता या संगीतात्मकता होती है , अर्थ का चमत्कार नहीं । शब्दालंकार
( 1 ) कुछ वर्णगत , ( 2 ) कुछ शब्दगत और ( 3 ) कुछ वाक्यगत होते हैं । अनुप्रास , यमक आदि अलंकार वर्णगत और शब्दगत हैं तो लाटानुप्रास वाक्यगत । प्रमुख शब्दालंकार ये हैं - अनुप्रास , यमक , पुनरुक्ति , पुनरुक्तवदाभास , वीप्सा , वक्रोक्ति , श्लेष आदि ।

 अर्थालंकार - अर्थ को चमत्कृत या अलंकृत करने वाले अलंकार अर्थालंकार हैं । जिस शब्द से जो अर्थालंकार सधता है , उस शब्द के स्थान पर दूसरा पर्याय रख देने पर भी वही अलंकार सधेगा , क्योंकि इस जाति के अलंकारों का संबंध शब्द से न होकर अर्थ से होता है । केशव ( 1600 ई० ) ने ' कविप्रिया ' में दंडी ( 700 ई . ) के आदर्श पर 35 अर्थालंकार गिनाए हैं । जसवंतसिंह ( 1643 ई० ) ने ' भाषाभूषण ' में 101 अर्थालंकारों की चर्चा की है । दलह ( 1743 ई . ) के ' कवि - कुलकंठाभरण ' , जयदेव ( 13वीं शताब्दी ) के ' चंद्रलोक ' और अप्पय दीक्षित ( 17वीं शताब्दी ) के ' कुवलयानंद ' में 115 अर्थालंकारों का विवेचन है ।

उभयालंकार - जो अलंकार शब्द और अर्थ दोनों पर आश्रित रहकर दोनों को चमत्कृत करते हैं , वे ' उभयालंकार ' कहलाते हैं । यहाँ हम पाठ्यक्रमानुसार सिर्फ निम्नलिखित अलंकार ही पढ़ेंगे : अनुप्रास , यमक , श्लेष , उपमा , रूपक , उत्प्रेक्षा , अतिशयोक्ति , मानवीकरण ।


1.  अनुप्रास: जहाँ किसी वर्ण की एक से अधिक बार आवत्ति हो , यहाँ अनप्रास अलंकार होता है ;
 जैसे
( क ) रघुपति राघव राजा राम । ( ' र ' वर्ण की आवृत्ति )
( ख ) मुदित महीपति मंदिर आए । ( ' म ' वर्ण की आवृत्ति )
( ग ) तरणि तनुजा तट तमाल तरुवर बहुछाए । ( ' त ' वर्ण की आवृत्ति )
( घ ) विमल वाणी ने वीणा ली कमल कोमल कर में सप्रीत । ( ' व ' और ' क ' वर्ण की आवृत्ति )
( ङ ) सुरभित सुंदर सुखद सुमन तुझ पर खिलते हैं । ( ' स ' वर्ण की आवृत्ति ) ।

2 . यमक : जहाँ एक शब्द दो या दो से अधिक बार आए तथा उनके अर्थ भिन्न हों , वहाँ ' यमक अलंकार ' होता है ।
जैसे
( क ) कहै कवि बेनी बेनी ब्याल की चुराय लीन्ही रति रति सोभा ( शोभा ) सब रति के सरीर की । ( ' बेनी ' तथा ' रति ' शब्दों के अर्थ भिन्न - भिन्न है । बेनी - कवि का नाम , बेनी - चोटी , रति - जरा . जरा - सी . रति - कामदेव की पत्नी )

( ख ) तीन बेर खाती थीं वे तीन बेर खाती हैं । ( ' तीन बेर ' के अलग - अलग अर्थ हैं ) तीन बेर - तीन बार ; तीन बेर - बेर नामक फलों की तीन संख्या ।

( ग ) कनक - कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय इहि खाए बौरात जग उहि पाए बौरात । ( ' कनक ' शब्दों के दो अलग - अलग अर्थ हैं : कनक - धतूरा ; कनक - सोना )

( घ ) करका मनका डार दे मन का मनका फेर । ( मनका - शब्दों के दो अलग - अलग अर्थ हैं : मनका दाना , मनका हृदय का )

 3.श्लेष :- जहाँ एक शब्द एक ही बार प्रयोग किया गया हो , पर उसके अर्थ एक से अधिक हो : जैसे
( क ) सुबरन को ढूँढत फिरत कवि , व्यभिचारी , चोर ( सुबरन ' शब्द के तीन अर्थ हैं - अच्छे शब्द , संदर रंग - रूप , सोना )

( ख ) जो रहीम गति दीप की कुल कपूत गति सोय । बारे उजियारो करै , बढ़े अधेरो होय । । ( ' बारे ' और ' बढ़े ' - शब्दों के दो - दो अर्थ है ) ( बारे बचपन में ; जलाने पर ; बढ़े - बड़ा होने पर , बुझने पर ) ।

( ग ) पानी गए न ऊबरै मोती , मानुस , चून । ( पानी मोती के साथ ' चमक ' ; मनुष्य के साथ ' प्रतिष्ठा ' और चूर्ण ( आटे ) के साथ ' जल ' । ।

4 . उपमा : अत्यधिक समानता के कारण सर्वथा भिन्न होते हुए भी जहाँ एक वस्त या प्राणी किसी प्रसिद्ध वस्तु या प्राणी से की जाती है , वहाँ ' उपमा ' अलंकार होता है । उपमा अ होते हैं :
( क ) " उपमेय ' - जिसकी तुलना की जाए ।
( ख ) ' उपमान ' - जिससे तुलना की जाए ।
( ग ) ' साधारण धर्म ' - दोनों का वह गुण या विशेषता ।

( घ ) ' वाचक शब्द ' - जिस शब्द की सहायता से तुलना की जाए ; जैसे
 ' राधा का मुख चंद्र के समान सुंदर है । ' यहाँ राधा का मुख - उपमेय है । चंद्रमा - उपमान है । सुंदर साधारण धर्म है । समान वाचक शब्द है ।
 उदहारण

 ( क) मखमल से झूले पड़े हाथी - सा टीला ( यहाँ टीला - उपमेय है , हाथी - उपमान है , ' सा ' - वाचक शब्द है । इस पंक्ति में साधारण धर्म लुप्त है । )

 ( ख ) प्रात नभ था बहुत नीला शंख ; जैसे . . . ( नभ - उपमेय , शंख - उपमान , नीला - साधारण धर्म , जैसे - वाचक शब्द )

( ग ) हरिपद कोमल कमल से । ( हरिपद - उपमेय , कोमल - साधारण धर्म , कमल - उपमान , से - वाचक शब्द )

 ( घ ) यह देखिए अरविंद से शिशुवृंद कैसे सो रहे
( शिशुवृंद - उपमेय , अरविंद - उपमान , से - वाचक शब्द )

 5 . रूपक : जहाँ गुण की अत्यधिक समानता के कारण उपमेय में ही उपमान का अभेद आरोप कर दिया गया हो , वहाँ ' रूपक अलंकार ' होता है , अर्थात् उपमेय और उपमान को एक कर दिया गया हो ; जैसे

( क ) मैया मैं तो चंद्र - खिलौना लैहों । ( चंद्र में खिलौने का आरोप कर दिया गया है । )

 ( ख ) चरण कमल बंदौं हरिराई । ( हरि के चरणों में ' कमल ' का आरोप है । )

 ( ग ) उदित उदयगिरिमंच पर रघुवर बाल पतंग ।
 विकसे संत सरोज सब , हरषे लोचन शृंग । । 

( यहाँ उदयगिरि पर मंच का , रघुवर पर बाल पतंग का , संतों पर सरोज ( कमल ) का और लोचनों ( नेत्रों ) पर भृगों ( भौंरों ) का आरोप है ।

( घ ) विज्ञान यान पर चढ़ी हुई सभ्यता डूबने जाती है । ( यहाँ विज्ञान पर ' यान ' का आरोप है । )

6 . उत्प्रेक्षा : जहाँ उपमेय में उपमान की संभावना या कल्पना कर ली गई हो , वहाँ ' उत्प्रेक्षा ' अलंकार होता है । उत्प्रेक्षा अलंकार में मनो , मनहु , जानो , जनह , जनों जैसे शब्दों का प्रयोग होता है । जैसे

( क ) उस का मारे क्रोध के तन काँपने लगा ।
 मानो हवा के वेग से सोता हुआ सागर जगा । 
( अर्जुन के क्रोध से काँपते शरीर में सागर के तुफ़ान की संभावना )

( ख ) कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए । हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए ।
 ( उत्तरा के अश्र पूर्ण नेत्रों में ओस - जल - कण यक्त पंकज की संभावना ) ।

( ग ) सोहत ओढ़े पीत पट , स्याम सलौने गात । मनहु नीलमणि सैल पर , आतप परयौ प्रभात ।
 ( कृष्ण के श्याम रंग के शरीर में नील मणि पर्वत की और उनके शरीर पर शोभित पीतांबर में प्रभात के सूर्य की धूप की संभावना )
 ( घ ) फूले कास सकल महि छाई । जनु वरसा रितु प्रकट बुढ़ाई । ।
 ( यहाँ वर्षा ऋतु के बाद शरद के आगमन का वर्णन हुआ है ) । 

7 . अतिशयोक्ति : जहाँ किसी गुण का इतना बढ़ा - चढ़ाकर वर्णन किया जाए कि लोक - सीमा का अतिक्रमण होने लगे , तो अतिशयोक्ति अलंकार होता है । जैसे

 ( क ) पानी परात को हाथ छुओ नहीं । नैनन के जल सों पग धोए । । यहाँ श्रीकृष्ण द्वारा अपने मित्र सुदामा के पैर अश्रुजल से धोने को लेकर लोक - सीमा का उल्लंघन किया गया है , अत : अतिशयोक्ति अलंकार है ।

 ( ख ) हनुमान की पूंछ में लग न पाई आग । ।
 सारी लंका जरि गई गए निसाचर भाग । ।
 यहाँ हनमान की पंछ जो लंका दहन का हेतु थी , में आग लगने से पहले ही सारी लंका का जल जाना वर्णित है । अत : अतिशयोक्ति अलंकार है ।

 8 . मानवीकरण : जहाँ जड़ पर चेतन का आरोप हो ; अर्थात् प्रकृति के जड़ तत्वों पर मानवीय भावनाओं का आरोप हो , वहाँ ' मानवीकरण ' अलंकार होता है ; जैसे 

( क ) अंबर पनघट में डुबो रही ताराघट उषा नागरी । ।
[उषा ( प्रातः काल की लाली ) पर नागरी ( चतुर स्त्री ) होने के कारण मानवीकरण अलंकार है ।]

 ( ख ) मेघ आए बन - ठन के संवर के । ( ' मेघ ' पर बन - ठन कर आने की क्रियाओं का आरोप )

 ( ग ) मेघमय आसमान से उतर रही संध्या सुंदरी परी - सी धीरे - धीरे । ( ' संध्या ' पर ' परी ' की मानवीय क्रियाओं का आरोप )
Thanks for read here

No comments:

Post a Comment