इस पंक्ति द्वारा लेखक ने मानव की उस स्वार्थी प्रवृत्ति की मानसिकता पर व्यंग्य किया है जिसमे उसे अपने सिवाय दूसरा कोई नजर ही नहीं आता | वर्तमान समय में व्यक्ति अपने क्रियाकलापों में ही इतना व्यस्त हो गया है कि दूसरे के बारे में सोचने का उसके पास वक्त भी नहीं है। इस प्रकार की प्रवृत्ति मनुष्य की संवेदनहीनता की परिचायक है।
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