समकालीन हिंदी कविता की प्रवृत्तियाँ Samkalin yugeen hindi kavita ki pravrttiyaan
B.A. Program Delhi University Hindi bhasha aur sahitya Aनई कविता की प्रवृत्तियाँ Nai yugeen hindi kavita ki pravrttiyaan
B.A. Program Delhi University Hindi bhasha aur sahitya A1. नयी कविता का कवि जड़ीभूत सौंदर्याभिरुचियों पर प्रहार करती है।
2. नयी कविता जीवन की समस्याओं को बौद्धिक दृष्टि से देखने और मिटाने पर जोर देती है।
3. नयी कविता का कवि सामाजिक राजनीतिक स्थितियों तथा यौन कुंठा को बेबाक ढंग से अभिव्यक्त करता है।
4. वर्तमान क्षण के सघन और संपूर्ण अनुभूति को नयी कविता व्यक्त करती है।
5. नयी कविता आकर्षण को ही नहीं विकर्षण को भी व्यक्त करती है। यह अगर रिझाती है तो सताती भी कम नहीं है।
6. दो विश्वयुद्धों की विभीषिका और अनकही पीड़ा को भी नयी कविता व्यक्त करती है। संसार भर में सांस्कृतिक विघटन और मूल्यहीनता का जो दौर रहा उसे बहुत कुछ इसमें साकार किया गया है।
7. अस्तित्ववाद के प्रभाव में नयी कविता में अकेलापन, त्रास, आत्महत्या को चाह, बुरे सपने, सड़ांध भी कई वार आते हैं।
8. नयी कविता मोहभंग की कविता है। मोहभंग आजादी के दौरान जवां हुए सपनों से, आजाद भारत की राजनीतिक व्यवस्था से और आदमी की नयी निर्मित होती परिभाषा और उसके गिरते कद से।
प्रयोगवादी हिंदी कविता की प्रवृत्तियाँ Prayogwadi yugeen hindi kavita ki pravrttiyaan
B.A. Program Delhi University Hindi bhasha aur sahitya Aप्रगतिवादी हिंदी कविता की प्रवृत्तियाँ Pragatiwad yugeen hindi kavita ki pravrttiyaan
B.A. Program Delhi University Hindi bhasha aur sahitya A1. राष्ट्रीय स्वाधीनता के संघर्ष के निर्णायक काल में लिखी जा रही प्रगतिवादी कविता में स्वाधीनता के प्रति समर्पण और सहयोग का भाव विद्यमान है।
2. प्रगतिवादी हिंदी कविता राजनीतिक तौर पर मार्क्सवादी विचारधारा का साहित्यिक अवतार है।
3. प्रगतिवादी कविता में जनसामान्य की चिंता और जनसंघर्ष के प्रति समर्थन का स्वर प्रमुख है।
4. अन्य कलाओं की तरह कविता को भी जागरूकता और परिवर्तन का अस्त्र मानने वाले प्रगतिवादी कवियों के यहाँ शोषक वर्ग के प्रति घृणा और शोषितों के प्रति सहयोग, समर्थन तथा क्रांतिकारी बदलावों के प्रति एक उम्मीद मौजूद है।
5. यथार्थ की विडंबना के प्रति जागरूक इस दौर के कवि व्यंग्य में अग्रणी हैं।
6. आम जनजीवन के चित्र चाहे वह किसान हो, मजदूर हो, संघर्षशील स्त्री हो या दाने-दाने को मोहताज भिखारी- सब प्रगतिवादी हिंदी कविता के केंद्र में हैं।
7. गांव की चौपाल हो, खेत-खलिहान में कार्यरत किसान हो, फैक्ट्री या शहरी वातावरण में कार्यरत श्रमिक वर्ग हो या फटेहाल स्त्री हो या अवोध वचपन- ये सब प्रगतिवादी कविता की चिंता और चिंतन में महत्वपूर्ण हैं।
8. प्रतिवादी कविता प्राचीन और जर्जर रूढ़ियों को ध्वस्त कर एक नया समाज बनाने की इच्छुक है जहाँ मनुष्य द्वारा मनुरू को शोषण न हो, आर्थिक आधार पर शोषण न हो और हर मेहनतकश को उसका वाजिब हक मिले। शासन व्यवस्था तथा उत्पादन की साधनों पर राज्य और समाज का हक हो, व्यक्ति-विशेष का नहीं।
छायावादी हिंदी कविता की प्रवृत्तियाँ Chhayawad yugeen hindi kavita ki pravrttiyaan
B.A. Program Delhi University Hindi bhasha aur sahitya Aद्विवदी युगीन हिंदी कविता की प्रवृत्तियाँ
B.A. Program Delhi University Hindi bhasha aur sahitya A1. पद्य की भाषा के रूप में खड़ी बोली के प्रयोग को शुरू करने का हो प्रयास भारतेंदु युग में हुआ उसे इस युग के रचनाकारों ने महत्वपूर्ण दिशा दी।
2. राष्ट्रभक्ति का स्वर द्विवेदीयुगीन कविता का केंद्रीय स्वर है। पराधीनता को सबसे बड़ा अभिशाप बताते हुए इस युग के कवियों ने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए आत्मोत्सर्ग की प्रेरणा दी।
3. पौराणिक, ऐतिहासिक कथा प्रसंगों के माध्यम से लोकप्रिय चरित्रों को नये राष्ट्रीय कलेवर में पेश कर राष्ट्रीयता के संघर्ष को आमजन तक पहुँचाने का भरसक प्रयास इन कवियों ने किया।
4. मानवीय भावों को केन्द्र में रखते हुए उसके सुख-दुःख और संघर्षों को महत्व देकर मानव मात्र की वरावरी के नारे को प्रचारित किया गया। किसानों की दुर्दशा हो या विधवा का कष्टमय जीवन, ये सभी कवियों की चिंता के केंद्र में बने रहे।
5. द्विवेदी युग में वर्ण्य विषय में अपार वैविध्य और विस्तार आया। जीवन और जगत के सभी अवयव, सभी दृश्य और भाव कविता के विषय बने।
6. कविता को लोक शिक्षा का माध्यम मानने वाले द्विवेदी युगीन कवियों ने आदर्शवादी और नीतिपरक कथाओं और चरित्रों की उद्भावना की।